Thursday, January 31, 2019

याद.....शबनम शर्मा

बरसों बाद
पीहर की दहलीज़,
आँख भर आई, 
सोच 
बेसुध सीढ़ियाँ चढ़ना 
पापा के गले लग 
रो देना, 
हरेक का उनके 
आदेश पर गिर्द घूमना, 
खूँटी पर टंगा काला कोट, 
मेज़ पर चश्मा, ऐश-ट्रे,
घर के हर कोने में 
रौबीली गूँज।
आज घूरती आँखें, 
रिश्तों को निभाती आवाज़ें, 
समझती बेटी को बोझ, 
हर तरफ़ परायापन
एक आवाज़ बुलाती, 
जोड़ती उस पराये 
दर से ‘पापा बुआ 
आई हैं।’
-शबनम शर्मा

5 comments:

  1. सार्थक और सत्य चुभता सा।

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  2. बहुत खूब .......आज घूरती आँखें,
    रिश्तों को निभाती आवाज़ें....

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-02-2019) को "ब्लाॅग लिखने से बढ़िया कुछ नहीं..." (चर्चा अंक-3234)) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. शबनम जी, पीहर सी प्यारी कविता. स्मृति जल से सराबोर.
    पढ़ कर अच्छा लगा.

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