आओ उन्हें
मीठे सपने उधार दे दें,
जो अपनी ही आँखों में
गिर गए थे
बहुत दिन पहले।
आओ उन्हें
मुक्त करायें,
जो कुंठाओं में कैद
ग्रंथियों से घिरे,
अपना अस्तित्व
खोने ही वाले हैं।
आओ उन्हें
सुबह का
स्वप्न दें,
अदृश्य जिन्हें
अँधेरे में, जब वे
स्वप्निल लोक में खोए रहते
निगलना ही चाहता है।
-पुष्प राज चसवाल