उनके चेहरे से जो मुस्कान चली जाती है,
मेरी दौलत मेरी पहचान चली जाती है।
जिंदगी रोज गुजरती है यहाँ बे मक़सद,
कितने लम्हों से वो अंजान चली जाती है।
तीर नज़रों के मेरे दिल में उतर जाते हैं,
चैन मिलता ही नहीं जान चली जाती है।
याद उनकी जो भुलाने को गए मैखाने,
वो तो जाती ही नहीं शान चली जाती है।
एक रक़्क़ासा घड़ी भर में तेरी महफ़िल से,
तोड़कर कितनो के ईमान चली जाती है।
खोए रह जाते हैं हम उसके तख़य्युल में 'मिलन',
और वो 'नरगिस-ए-रिज़वान' चली जाती है।
- मिलन 'साहिब'
- मिलन 'साहिब'
मायने
बेमक़सद = लक्ष्यहीन, मैखाना = शराब घर, रक़्क़ासा = नाचने वाली, तख़य्युल = याद, नरगिस-ए-रिज़वान = स्वर्ग सुंदरी