Showing posts with label सोच की गुलामी. Show all posts
Showing posts with label सोच की गुलामी. Show all posts

Thursday, August 21, 2025

सोच की गुलामी

 सोच की गुलामी



दुनिया बदल रही है, लोगों की सोच की 
तालमेल उसमें बैठ रहा है या नहीं,
यह व्यवहार से झलक जाता है

  रे !! जरा रास्ता छोड़कर बैठो, मेरा पैर लगा तो सारा मोगरा ट्रेन में बिखर जाएगा
" मालन " को इतना कह वो किन्नर मुंबई लोकल के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में चढ़ गया।

जीन्स पर लम्बा कुर्ता और खादी की कोटी पहने वो किन्नर मेरे करीब आने लगा, 
उसकी वेशभूषा देख मामाला कुछ अलग लग रहा था, परन्तु यह सोच हावी रही 
ये पैसे मांगेगा ज़रूर, यही सोचते हुए मांगे उसे रुपए देने के लिए अपने 
पर्स में हाथ डाला इससे पहले मैं उसे रुपए देती इससे पहले उसने अपने 
कंधे पर झूलते हुए झोले से तीन साड़ियां निकाली और कहने लगा रु. नहीं 
चाहिए दीदी, हो सके तो इसमें से एक साड़ी खरीद लीजिए, 
मुझे ताली बजा कर मांगने वाली छवि से निकलने में मदद मिलेगी।

उसके अनुरोधित स्वाभिमान के आगे 
मेरी ग़लत सोच लड़खड़ा गई और 
मैंने वे तीनों साड़ियां उससे खरीद ली

-डॉ. वर्षा महेश
16 जुलाई की मधुरिमा से