उम्रेदराज़ काट रहा हूँ तेरे बगैर
गुलों से खार छांट रहा हूँ तेरे बगैर
हंसने को जी करे है न, रोने को जी करे
मुर्दा शबाब काट रहा हूँ तेरे बगैर
क्या जुर्म किया था जो, हिज़्र की सजा मिली
नाकरदा गुनाह को छांट रहा हूँ तेरे बगैर
ज़ख़्मों को सी लिया है, होंठों को सी लिया,
फिर भी खुद को डांट रहा हूँ तेरे बगैर
चंद लम्हें फुरसत के अब नसीब हुए हैं
गैरों के बीच बांट रहा हूँ तेरे बगैर
-निकेत मलिक
.....परिवार, पत्रिका
गुलों से खार छांट रहा हूँ तेरे बगैर
हंसने को जी करे है न, रोने को जी करे
मुर्दा शबाब काट रहा हूँ तेरे बगैर
क्या जुर्म किया था जो, हिज़्र की सजा मिली
नाकरदा गुनाह को छांट रहा हूँ तेरे बगैर
ज़ख़्मों को सी लिया है, होंठों को सी लिया,
फिर भी खुद को डांट रहा हूँ तेरे बगैर
चंद लम्हें फुरसत के अब नसीब हुए हैं
गैरों के बीच बांट रहा हूँ तेरे बगैर
-निकेत मलिक
.....परिवार, पत्रिका