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Sunday, September 21, 2014

ख़्वाब में कल डाँट कर गए...........आलोक श्रीवास्तव



अब तो ख़ुशी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा
आसूदगी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा

सब लोग जी रहे हैं मशीनों के दौर में
अब आदमी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा

आई थी बाढ़ गाँव में, क्या-क्या न ले गई
अब तो किसी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा

घर के बुज़ुर्ग लोगों की आँखें ही बुझ गईं
अब रौशनी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा

आए थे मीर ख़्वाब में कल डाँट कर गए
‘क्या शायरी के नाम पे कुछ भी नहीं रहा?’

- आलोक श्रीवास्तव

प्राप्ति स्रोतः काव्यांचल

Thursday, September 18, 2014

नाम से जिसके मेरी पहचान होगी..........आलोक श्रीवास्तव




  ले गया दिल में दबाकर राज़ कोई,
पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई.

बांधकर मेरे परों में मुश्किलों को,
हौसलों को दे गया परवाज़ कोई.

नाम से जिसके मेरी पहचान होगी,
मुझमें उस जैसा भी हो अंदाज़ कोई.

जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
अब कहां करता है मुझपे नाज़ कोई.

 रोज़ उसको ख़ुद के अंदर खोजना है,
रोज़ आना दिल से इक आवाज़ कोई.

-आलोक श्रीवास्तव 
प्राप्ति स्रोत : वेब दुनिया