Friday, November 30, 2018
Thursday, November 29, 2018
आवाज़.....दीप्ति शर्मा
आवाज़ जो
धरती से आकाश तक
सुनी नहीं जाती
वो अंतहीन मौन आवाज़
हवा के साथ पत्तियों
की सरसराहट में
बस महसूस होती है
पर्वतों को लाँघकर
सीमाएँ पार कर जाती हैं
उस पर चर्चायें की जाती हैं
पर रात के सन्नाटे में
वो आवाज़ सुनी नहीं जाती
दबा दी जाती है
सुबह होने पर
घायल परिंदे की
अंतिम साँस की तरह
अंततः दफ़न हो जाती है
वो अंतहीन मौन आवाज़
-दीप्ति शर्मा
Wednesday, November 28, 2018
25 त्रिपदियाँ......गुलजार
त्रिपदियाँ
१.
मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने
रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे
२.
सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा(भिक्षापात्र)
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।
३.
सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।
४.
शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?
'५.
ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!
६.
लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा
दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर
यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?
७.
आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!
चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खू़न आ जायेगा
८.
पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं
घर जाने का वक़्त हुआ है,पाँच बजे हैं
सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!
९.
बे लगाम उड़ती हैं कुछ ख़्वाहिशें ऐसे दिल में
‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।
थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख़्वाहिशें मुझ से।
१०.
तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे
हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!
कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!
११.
कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है
क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे
ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।
१२.
वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन
जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था
फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।
१३.
वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा
दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने
कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा!
१४.
कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा
कोई साथ आया था,उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे
शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है!
१५.
इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा
छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!
१६.
बुड़ बुड़ करते लफ़्ज़ों को चिमटी से पकड़ो
फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से ।
अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है।
१७.
चूड़ी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला
नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में
बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी!
१८.
चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं
रोड़े, पत्थर और गु़ल्लों से दिन भर खेला करता था
बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!
१९.
कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं
आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुये हैं कब से
टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को!
२०.
कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं
पिछले चन्द महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं
क्लर्क हैं दोनों,लगता है अब शादी करने वाले हैं
२१.
कुछ इस तरह ख़्याल तेरा जल उठा कि बस
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में
अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!
२२.
कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं
ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है
क्यों इस फौ़जी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।
२३.
आओ ज़बानें बाँट लें अब अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।
दो अनपढ़ों कि कितनी मोहब्बत है अदब से
२४.
नाप के वक़्त भरा जाता है ,रेत घड़ी में-
इक तरफ़ खा़ली हो जबफिर से उलट देते हैं उसको
उम्र जब ख़त्म हो ,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता?
२५.
तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं
इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे
ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिये कब से?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwFNPy7WM8oEn0yIx1IiNIgfLKqoY3Y2ivyGO3zlH8EtOc7ITxO-_GSN0XavMV2Ubn8wwgxkfFjbrxiCq6i15Eu_dbBVhAV1Q8tAj5Tsey5aepcFCaRUgyrNM611A3C5vKXpU31vxggwM/s1600/GULZAR.jpg)
-गुलजार
Tuesday, November 27, 2018
अक्स तुम्हारा (हाइकु)............डॉ. सरस्वती माथुर
अक्स तुम्हारा (हाइकु)
1
मोर है बोले
मेघ के पट जब
गगन खोले
2
वक्त तकली
देर तक कातती
मन की सुई l
3
यादों के हार
कौन टाँक के गया
मन के द्वार
4
अक्स तुम्हारा
याद आ गया जब
मन क्यों रोया ?
5
यादों से अब
मेरा बंधक मन
रिहाई माँगे
6
यादों की बाती
मन की चौखट को
रोशनी देती l
7
साँझ होते ही
आकाश से उतरी
धूप चिरैया
8
धरा अँगना
चंचल बालक सी
चलती धूप
9
भोर की धूप
जल दर्पण देख
सजाती रूप
10
मेघ की बूँदें
धरा से मिल कर
मयूरी हुई
-डॉ. सरस्वती माथुर
Monday, November 26, 2018
सूरज तुम जग जाओ न.....श्वेता सिन्हा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQkL44ARJiCcCZJ14wfaNwthPk92dp_tl5QAMW8kSaqiGFi536oMZVNUSpbCnglCt6-0zaFC7jmR7cp8JMPJhOn6h27COmlRYzd43glvrdW5zbCb7FNs1NP0FE7HEUHyeWhjbA3wpmHbI/s320/images+%25285%2529.jpeg)
धुँधला धुँधला लगे है सूरज
आज बड़ा अलसाये है
दिन चढ़ा देखो न कितना
क्यूँ न ठीक से जागे है
छुपा रहा मुखड़े को कैसे
ज्यों रजाई से झाँके है
कुछ तो करे जतन हम सोचे
कोई करे उपाय है
सूरज को दरिया के पानी मे
धोकर आज सुखाते है
चमचम फिर से चमके वो
वही नूर ले आते है
सब जन ठिठुरे उदास है बैठे
गुनगुनी धूप भर जाओ न
देकर अपनी मुस्कान सुनहरी
कलियों के संग गाओ न
नील गगन पर दमको फिर से
संजीवन तुम भर जाओ न
मिलकर धरती करे ठिठोली
सूरज तुम जग जाओ न
- श्वेता सिन्हा
Sunday, November 25, 2018
Saturday, November 24, 2018
तन्हा चाँद जाने किस ख़्याल में गुम है.....श्वेता सिन्हा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2aqI1MWPdjKzqqzC_D3K4CGj7iWpOknbJiPBQ9DXGTWjXydE74OOwrkS2LKwZ5-iL0NeJ40P9VxMR90z6Ly8cJx3Sb_bqJ_cujES_EYc4LNEDQsAjOHESqIZDocM2GktH8MZ_WjfUCrY/s320/2225854eca92e0a80ee936a89bd51224.jpg)
सर्द रात की
नम आँचल पर
धुँध में लिपटा
तन्हा चाँद
जाने किस
ख़्याल में गुम है
झीनी चादर
बिखरी चाँदनी
लगता है
किसी की तलाश है
नन्हा जुगनू
छूकर पलकों को
देने लगा
हसीं कोई ख़्वाब है
ठंडी हवाएँ भी
पगलाई जैसे
चूमकर आयीं
तेरा हाथ हैं
सिहरनें तन की
भली लग रहीं
गरम दुशाला लिए
कोई याद है
असर मौसम का
या दिल मुस्काया
लगे फिर
चढ़ा ख़ुमार है
सितारे आज
बिखरने को आतुर
आग़ोश में आज
मदहोश रात है
-श्वेता सिन्हा
Friday, November 23, 2018
Thursday, November 22, 2018
सेल्फ पोर्ट्रेट.....गुलजार
नाम तो सोचा ही न था, है कि नहीं
'अमा' कहकर बुला लिया इक ने
'ए जी' कहके बुलाया दूजे ने..
'अबे ओ' यार लोग कहते हैं..
जो भी यूँ जिस किसी के जी आया
उसने वैसे ही बस पुकार लिया..
तुमने इक मोड़ पर अचानक जब
मुझको 'गुलजार' कहके दी आवाज
एक सीपी से खुल गया मोती..
मुझको इक मानी मिल गये जैसे..
आह, यह नाम ख़ूबसूरत है..
फिर मुझे नाम से बुलाओ तो !
-गुलज़ार
Wednesday, November 21, 2018
तेरे नेह में....श्वेता सिन्हा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSft3fQik0DjmEW4ja0PPHClqaDSv1_QbawnqBf1bc11KX7AgiAOnzuATX_jXGPjcW3EIguKaF7h0fY_BQ4pjk1m5GKxbmb_GBLq9xcYatXwhxfDhKBitbJn8DucGNmp6Din6galMCyA4/s320/image.jpg)
तुमसे मिलकर कौन सी बातें करनी थी मैं भूल गयी
शब्द चाँदनी बनके झर गये हृदय मालिनी फूल गयी
मोहनी फेरी कौन सी तुमने डोर न जाने कैसा बाँधा
तेरे सम्मोहन के मोह में सुध-बुध जग भी भूल गयी
मन उलझे मन सागर में लहरों ने लाँघें तटबंधों को
सारी उमर का जप-तप नियम पल-दो-पल में भूल गयी
बूँदे बरसी अमृत घुलकर संगीत शिला से फूट पड़े
कल-कल बहती रसधारा में रिसते घावों को भूल गयी
तुम साथ रहो तेरा साथ रहे बस इतना ही चाहूँ तुमसे
मन मंदिर के तुम ईश मेरे तेरे नेह में ईश को भूल गयी
-श्वेता सिन्हा
Tuesday, November 20, 2018
लिबास....गौरव धूत
लिबास जो पहना था साल भर,
उम्र ने अब उतार कर रख दिया,
और साथ में उतार दिए,
वो गिनती के दिन, जो मुझे दिए थे,
कह कर के ये तेरा हिस्सा है,
इनको जिस मर्ज़ी खर्च कर।
बचा तो ना पाया मैं एक दिन भी,
पर जाने कहाँ उनको दे आया हूँ।
खुशियाँ तो नहीं खरीदी मैंने उनसे,
ना ही किसी के दुख बाँटे मैंने,
हाँ, कभी निकाले थे कुछ दिन,
किसी आरज़ू के लिए,
शायद बाक़ी किश्तें भरता रहा हूँ,
उसके पूरी होने के इंतज़ार में।
-गौरव धूत
Monday, November 19, 2018
नन्ही ख़्वाहिश....श्वेता सिन्हा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDiCCkMpNbgTy6PnWra_bBNKP1hlpsPmmUy8UuDKGapM7sqQUE6ijaj1ZplA4Hx0MZ4vdDno5tcu8UHqjGO580pXFj0gjt0ypkTQb-rLSi6ZHkdQ6fPjD_fmQXWRGefB6xlnOEZztWq-Y/s320/1d6515813220ff0f873c49ac5d2a1a9c.jpg)
एक नन्ही ख़्वाहिश
चाँदनी को अंजुरी में भरने की,
पिघलकर उंगलियों से टपकती
अंधेरे में ग़ुम होती
चाँदनी देखकर
उदास रात के दामन में
पसरा है मातमी सन्नाटा
ठंड़ी छत को छूकर सर्द किरणें
जगाती है बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफिला आकर
ठहरा है गलियों में
पीली रोशनी में
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला
तन पर लिपटाये
मौसम की बेरूखी से सहमे
शबनमी सितारे उतरे हैं
फूलों के गालों पर
भींगी रात की भरी पलकें
सोचती है
क्यूँ न बंद कर पायी
आँखों के पिटारे में
कतरनें चाँदनी की,
अधूरी ख़्वाहिशें
अक्सर बिखरकर
रात के दामन में
यही सवाल पूछती हैं।
-श्वेता सिन्हा
Sunday, November 18, 2018
क्षणिकाएँ..... पुरूषोत्तम व्यास
-१-
बैठा रहता
बहती धारा...
जिसको कविता कहता
दूर न पास
अंदर न बाहर
अपने आप में पूर्ण..
चलना कितना
दूर उसको ले आता
दरवाज़े के उस पार
आसमान नीलम-सा
मौन..
कविता गाता...।
-२-
प्रेम-कहानी
पढ़ने में
मुझें डर लगता...
क्योंकि
चमकते हुये तारों
और-
टूट के गिरते तारों में
फरक समझता हूँ...।
-३-
प्रेम...
कहते है ...
हर एक को होता और..
वह उड़ता रहता उसी
डगर में..
एक झलक ..देख
खिल उठता ..
इंद्रधनुष!
-पुरुषोत्तम व्यास
Saturday, November 17, 2018
अनायास ही गुम हो जाते हैंं...श्वेता सिन्हा
साँझ को नभ के दालान से
पहाड़ी के कोहान पर फिसलकर
क्षितिज की बाहों में समाता सिंदुरिया सूरज,
किरणों के गुलाबी गुच्छे
टकटकी बाँधें खड़े पेड़ों के पीछे उलझकर
बिखरकर पत्तों पर
अनायास ही गुम हो जाते हैंं,
गगन के स्लेटी कोने से उतरकर
मन में धीरे-धीरे समाता विराट मौन
अपनी धड़कन की पदचाप सुनकर चिंहुकती
अपनी पलकों के झपकने के लय में गुम
महसूस करती हूँ एकांत का संगीत
चुपके से नयनों को ढापती
स्मृतियों की उंगली थामे
मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ
एक पल स्वच्छंद हो
निर्भीक उड़कर
सारा सुख पा लेती हूँ,
नभमंडल पर विचरती चंचल पंख फैलाये
भूलकर सीमाएँ
कल्पवृक्ष पर लगे मधुर पल चखती
सितारों के वन में भटकती
अमृत-घट की एक बूँद की लालसा में
तपती मरुभूमि में अनवरत,
दिव्य-गान हृदय के भावों का सुनती
विभोर सुधि बिसराये
घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
एकाकार हो जाती हूँ
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
सोमरस के मधुमय घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
Friday, November 16, 2018
नई आस्तीन - शकील आज़मी
न मेरे ज़हर में तल्ख़ी रही वो पहली सी
बदन में उस के भी पहला सा ज़ाइक़ा/ज़ायका न रहा
हमारे बीच जो रिश्ते थे सब तमाम हुए
बस एक रस्म बची है शिकस्ता पुल की तरह
कभी-कभार जवाब भी हमें मिलाती है
मगर ये रस्म भी इक रोज़ टूट जाएगी
अब उस का जिस्म नए साँप की तलाश में है
मिरी हवस भी नई आस्तीन ढूँढती है
- शकील आज़मी
Thursday, November 15, 2018
नदिया, ताल, समंदर आए....सिब्बन बैजी
कुछ फिकरे, कुछ पत्थर आए
सच कहकर हम जब घर आए
हमसे लोटा डोर मांगने
नदिया, ताल, समंदर आए
मलबों की मातमपुर्शी को
कितने ही बुलडोजर आए
शिकरों की दावत में अक्सर
तीतर, बया, कबूतर आए
'सिब्बन' की रातों से मिलने
सूफी शाह कलंदर आए.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivfXy7Y2vQ8fCZFoXUfkXxNnC0iPbmcixCj-J8DLAMScJPlnwd7tycyFlAcbQlQBlx8NdvpE1K4L3DHqTaBiWgRaavaDEtA1M_OvQxWv5sSO9y04A_0aAFL-x_7pBQRvFYmrIAClJjRDU/s320/sibban+compressed.jpg)
-सिब्बन बैजी
Wednesday, November 14, 2018
लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे......श्वेता सिन्हा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAYvTUdbuR5LcYqhoZR6ZM9ko496hU2QfLElQZKg-uhtQgxWSEeeA_vAkAIhUu-6wEtxn9X9Rik9k4Lhakaiii2AikC_r-yyYnOSjNHj9QVtNwiFvIibrl2XKHPKtJBqk7yzn23KHDi4w/s320/images+%252812%2529.jpeg)
अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।
पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के ख़्वाब सारे डोलने लगे।।
ख़ुश देखकर मुझे वो परेश़ान हो गये।
फिर यूँ हुआ हर लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे।।
मैंने ज़रा-सी खोल दी मुट्ठी भरी हुई।
तश्ते-फ़लक पर तारे रंग घोलने लगे।।
सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।।
#श्वेता सिन्हा
शिग़ाफ़े-लब=होंठ की दरार, उम्रे-रवाँ=बहती उम्र
तश्ते-फ़लक=आसमां की तश्तरी
Tuesday, November 13, 2018
सामने कारनामे जो आने लगे - अर्पित शर्मा "अर्पित"
आईना लोग मुझको दिखाने लगे |
जो समय पर ये बच्चे ना आने लगे,
अपने माँ बाप का दिल दुखाने लगे |
फ़ैसला लौट जाने का तुम छोड़ दो,
फूल आँगन के आँसू बहाने लगे |
फिर शबे हिज़्र आँसूं मेरी आँख के,
मुझको मेरी कहानी सुनाने लगे |
आईने से भी रहते है वो दूर अब,
जाने क्यू खुदको इतना छुपाने लगे |
कोई शिकवा नही बेरुखी तो नही,
हम अभी आये है आप जाने लगे |
तेरी चाहत लिए घर से अर्पित चला,
सारे मंज़र नज़र को सुहाने लगे
- अर्पित शर्मा "अर्पित"
- अर्पित शर्मा "अर्पित"
परिचय
अर्पित शर्मा जी अर्पित उपनाम से रचनाये लिखते है आपके पिता का नाम कृष्णकांत शर्मा है |
आपका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में
28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप
शाजापुर में रहते है | आपसे इस मेल sharmaarpit28@gmail.com
पर संपर्क किया जा सकता है |
आपका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में
28 अप्रैल, 1992 को हुआ | फिलहाल आप
शाजापुर में रहते है | आपसे इस मेल sharmaarpit28@gmail.com
पर संपर्क किया जा सकता है |
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