नमक की डली
जैसी होती है प्रेम-संगिनी
प्रेम करने वाली
पल में गुस्सा हो
बन जाती है कठोर
फिर पिघल भी जाती है दूसरे ही पल
जीवन के हर साग में
डलकर पिघलती-घुलती रहती है
बेस्वाद जीवन को
स्वादिष्ट बनाने के लिए...
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प्रेम में
दर्द झेलती हैं
परन्तु दवा प्रेम की ही पीती हैं
वो जीती जाती है
चेहरे पर अभिमान लिए
साबित करने
जुनूनी प्रेम की महत्ता
जो होता है उसके लिए
आरती के सजे थाल सा सुंदर
कुरान की आयतों सा पाक...
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आकार हो
या निराकार
सजीव हो
या निर्जीव हो
जीव हो
या जन्तु
सब जगह हर सूरत में
हर मूरत में
दिखती है उसे छवि
अपने मन में बसे पुरूष की...
-डॉ. शालिनी यादव