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Wednesday, June 27, 2018

उम्र लंबी तो है मगर बाबा .....शीन काफ़ निज़ाम


उम्र लम्बी तो है मगर बाबा
सारे मंज़र हैं आँख भर बाबा

जिंदगी जान का ज़रर बाबा
कैसे होगी गुज़र बसर बाबा

और आहिस्ता से गुज़र बाबा
सामने है अभी सफ़र बाबा

तुम भी कब का फ़साना ले बैठे
अब वो दीवार है न दर बाबा

भूले बिसरे ज़माने याद आए
जाने क्यूँ तुमको देख कर बाबा

हाँ हवेली थी इक सुना है यहाँ
अब तो बाकी हैं बस खँडहर बाबा

रात की आँख डबडबा आई
दास्ताँ कर न मुख़्तसर बाबा

हर तरफ सम्त ही का सहरा है
भाग कर जाएँगे किधर बाबा

उस को सालों से नापना कैसा
वो तो है सिर्फ़ साँस भर बाबा

हो गई रात अपने घर जाओ
क्यूँ भटकते हो दर-ब-दर बाबा

रास्ता ये कहीं नहीं जाता
आ गए तुम इधर किधर बाबा
-शीन काफ़ निज़ाम



Tuesday, January 2, 2018

एक सौदा था जिसने सर छोड़ा....शीन काफ़ निज़ाम

अक्स ने आईने का घर छोड़ा
एक सौदा था जिसने सर छोड़ा

भागते मंज़रों ने आंखों में
ज़िस्म को सिर्फ़ आंख भर छोड़ा

हर तरफ़ रोशनी फैल गई
सांप ने जब खंडहर छोड़ा

धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आंसुओं का घर छोड़ा

खिड़कियाँ पीटती है सर शब भर
आखिरी फ़र्द ने भी घर छोड़ा

क्या करोगा निज़ाम रातों में
ज़ख़्म की याद ने अगर छोड़ा
-शीन काफ़ निज़ाम