Wednesday, January 27, 2021

याद के पहरों में जीते हैं ...अस्तित्व "अंकुर"

तुम्हारे साथ गुज़री याद के पहरों में जीते हैं,
हमें सब लोग कहते हैं कि हम टुकड़ों में जीते हैं,

हमें ताउम्र जीना है बिछड़ कर आपसे लेकिन,
बचे लम्हों की सौगातें चलो कतरों में जीते हैं,

वही कुछ ख्वाब जिनको बेवजह बेघर किया तुमने,
दिये उम्मीद के लेकर मेरी पलकों पे जीते हैं,

तुम्हारी बेरुखी पत्थर से बढ़कर काम आती है,
मेरे अरमान फिर भी काँच के महलों में जीते हैं,

जमाने की नज़र में हो चुके हैं खाक हम लेकिन,
हमें मालूम है हम आपकी नज़रों में जीते हैं,

मेरे हर शेर पर “अंकुर” यहाँ कुछ दिल धड़कते हैं,
यहाँ सब ज़िंदगी को हो न हो खतरों में जीते हैं,

-अस्तित्व "अंकुर"

 

Tuesday, January 26, 2021

काव्य ककहरा ....डॉ. अंशु सिंह


काव्य ककहरा जिससे सीखा
भूल गई उन हाथों को
स्वार्थ सिद्धि के खातिर अपनी
तोड़ दिया सब नातों को
कलम पकड़ना नहीं जानती
शब्द शब्द सिखलाये थे
हर पल हर क्षण साथ निभाकर
अक्षर ज्ञान कराये थे
जब-जब उसने काव्य रचा
वो पल पल साथ निभाये थे
शब्द शब्द को सदा सुधारे
अतुलित नेह दिखाये थे
मान दिया समकक्ष सुता के
गुरु सम ज्ञान सिखाये थे
स्वागत किया बहन सा घर में
सारा फ़र्ज़ निभाये थे
प्रथम बार जब मान वो पाई
गर्व सहित मुसुकाये थे
जिन गीतों में मान मिला था
वो भी वही सिखाये थे
फिर भी छोड़ चली चुपके से
दर्द से अति सकुचाये थे
काश वो हमसे कह कर जाती
हम ही समझ न पाये थे
बहुरूपिया के संग गई वो
कुछ भी न कर पाये थे
कह कर अपना सिक्का खोटा 
बहुत बहुत पछताये थे 

-डॉ. अंशु सिंह 

Monday, January 25, 2021

मैं अच्छी नहीं हूं ...पूजा गुप्ता


मैं अच्छी नहीं हूं
मुझे मेहँदी लगानी नहीं आती।
ना ही रंगोली बनानी आती।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमानी नहीं आती।
ना कभी व्रत की पति के लिए।
ना कभी बेटा के लिए।
मैं सब जैसी औरत नहीं।
मुझे गढ़ी कहानी नहीं आती।
मुझे ढोल बजाना नहीं आता।
ना नाचना गाना आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
लोगो के हँसी का पात्र हूँ।
मुझे अंदाज में रहना नहीं आता।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमाना नहीं आता।
सब कहते हैं भजन करो।
पर मुझे पुण्य कमाना नहीं आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
कुछ खूबी हो तो मैं लिखूँ।
मुझे अच्छा बन जाना नहीं आता।
घर की लक्ष्मी हूँ मैं।
पर मुझे नारायण को मनाना नहीं आता।
साधारण हूँ बेबाक भी हूँ मैं।
मुझे किसी को जलाना नहीं आता।
अंतर्मन की अंतर्वेदना हूँ मैं।
मुझे मजाक बनाना नहीं आता।
मैं बंद बोतल के ढक्कन जैसी।
मुझे दही जमाना नहीं आता।
मैं अल्हड़ सी मस्तानी हूँ।
कोई हुनर जमाना नहीं आता।
[स्वरचित]
-पूजा गुप्ता  

मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश) 

Friday, January 22, 2021

मरने की चाहत होती जाती है ...अँजू डोकानिया

मुहब्बत क्या हुई  जैसे  इबादत होती जाती है|
कि सजदे में झुकने की आदत होती जाती है||

चलाओ तीर कितने भी सितम चाहे करो जितने|
जो उल्फत हो गई इक बार तो बस  होती जाती है ||

वृहद सरिता  प्रेम मेरा लहर सा इश्क़ है तेरा|
जो उतरोगे तले इसके कयामत होती जाती है||

मैं मुजरिम हूँ करो पेशी मेरी इश्क़ ए अयानत में|
किया है जुर्म उल्फत का ये तोहमत होती जाती है||

मुहब्बत नाम है "अँजू" शिद्दत का, वफाओं का|
चले जो इस डगर मरने की चाहत होती जाती है||

-अँजू डोकानिया 

Thursday, January 21, 2021

लड़की और चांद ...ज्याति खरे


चाँद
चुपके से 
खिड़की के रास्ते 
कमरे में
रोज आता है 
लड़की 
अपने करीब आता देख
मुस्कुराती है
देखती है देर तक 
छू लेती है
मन ही मन उसे
चाँद 
लड़की से कुछ कहने का
साहस नहीं जुटा पाता
लड़की 
संकोच की जमीन पर
चुपचाप बैठी रहती है
चाँद और लड़की
युगों युगों से
ऐसे ही मिलते हैं
खिड़की के रास्ते
प्रेम
ऐसा ही खूबसूरत होता है
-"ज्योति खरे " 



Tuesday, January 19, 2021

रंगों का मौसम ...मंजू मिश्रा

रंगों का मौसम 

पतंगों का मौसम 

तिल-गुड़ की सौंधी मिठास का मौसम 

लो शुरू हुआ नया साल  ।१।


मौसम का मिज़ाज बदला

हवा का अन्दाज़ 

और बदली सूर्य की चाल 

लो शुरू हुआ नया साल ।२।


उड़ती पतंगें यूँ लगें 

मानो आसमाँ पे बिछ गयी 

रंगों की तिरपाल 

लो शुरू हुआ नया साल ।३।

-मंजू मिश्रा

Monday, January 18, 2021

रज़ा ...डॉ. नवीनमणि त्रिपाठी


जिनको तेरी रज़ा नहीं मिलती ।
आशिक़ी को हवा नहीं मिलती ।।
इश्क़ गर बेनक़ाब होता तो।
हिज्र की ये सज़ा नहीं मिलती ।।
ज़ीस्त है जश्न की तरह यारो ।
ज़िन्दगी बारहा नहीं मिलती ।।
कितनी बदली है आज की दुनिया ।
आंखों में अब हया नहीं मिलती ।।
नेकियाँ डाल दे तू दरिया में ।
बेवफ़ा से वफ़ा नहीं मिलती ।।
कुछ तो महफ़िल का रंग बदला है ।
घुँघरुओं की सदा नहीं मिलती ।।
मैं ख़तावार तुझको कह देता ।
क्या करूँ जब ख़ता नहीं मिलती ।।
छोड़ हर काम बस इबादत हो ।
यूँ ख़ुदा की दया नहीं मिलती ।।
वक्ते रुख़सत जहाँ हो तय साहब ।
माँगने पर क़ज़ा नहीं मिलती ।।
कब से क़तिल हुआ ज़माना ये ।
जुल्म की इब्तिदा नहीं मिलती ।।
वो तो नाज़ुक मिज़ाज थी शायद ।
आजकल जो खफ़ा नहीं मिलती ।।
- डॉ.नवीनमणि त्रिपाठी

2122 1212 22 

Sunday, January 17, 2021

स्त्री विमर्श ...निधि सक्सेना

एक युवा पुरुष को
अलग अलग उम्र की स्त्रियां
अलग अलग स्वरूप में देखेंगी..
नन्ही बच्ची उसे पिता या भाई सा जानेगी..
युवा होगी तो झिझकेगी सकुचायेगी
उसमें सखा या मित्र खोजेगी..
प्रौढ़ा होगी तो उसे अनायास ही वो अपने पुत्र सा दिखाई देगा..
और वृद्धा हुई तो उसे देखते ही उसका पोपला मुख कह उठेगा
बिल्कुल मेरे पोते सा है ..
परंतु एक युवा स्त्री
अलग अलग उम्र के पुरुषों को
केवल एक स्वरूप में दिखाई देगी
स्त्री स्वरूप में
विशुद्ध स्त्री स्वरूप...
कि स्त्रियां उम्र के हिसाब से परिपक्व होना जानती हैं..
- निधि सक्सेना

Saturday, January 16, 2021

बहुत कमा लिया .....नीलम गुप्ता

बहुत कमा लिया
सब कहते है
कितना लिखती हो?
इतना क्यों लिखती हो?
लिख कर क्या कमा लिया?
कौन सा खेत उखाड़ लिया?
शायद सच ही कहते होंगे
ये उनके तजुर्बे होंगे
हर चीज में नफा
नुकसान देखते है
हर किसी को
तराजू में तोलते है
तो बता दूं हमनें भी बहुत
दौलत रख ली
जेबें दुआओं से भर लीं
कितनों के चेहरे पर मुस्कान ला दी
कितनो की जिंदगी दुहरा दीं
कितनों के दिल में बस गई
उनको मेरी आदत सी लग गई
कविता ही मेरी, जिंदगी हो गई
अब ये असल में मायने हो गई
जिस दिन दुनिया से जाऊंगी
कुछ दुआएं भी ले जाऊंगी
लोग कमा लिए इतने
कि कुछ तो मेरे जाने
से गमगीन रहेंगे
मेरी कविता को ही
मेरे लिए गुनगुना देंगे
स्वरचित

-नीलम गुप्ता 

Friday, January 15, 2021

क्या फायदा......डॉ. अंशु सिंह

 
बोझ लगता हो ग़र जिंदगी मे कोई 
यादें उसकी सजाने से क्या फ़ायदा 

चुभ रहा हो जो बन करके तीखा सुआ 
प्यार उस पर लुटाने से क्या फ़ायदा 

जिसको पल भर मे बाहर किया झाड़ के 
कविता उस पर बनाने से क्या फ़ायदा 

कच्चा धागा ही था , टूट पल में गया 
प्यार को फिर बढ़ाने से क्या फ़ायदा 

अर्थ समझे न जब ज़िन्दगी के कभी 
व्यर्थ  जीवन गँवाने  से क्या फ़ायदा 

मित्र बन मोल आँसू के समझो कभी 
बात केवल बनाने से क्या फ़ायदा 

सार जीवन के तुम यदि समझ न सके 
स्वप्न गिरवी रखाने से क्या फ़ायदा 

जिसने जीवन की निस्सारता जान ली 
त्याग कर उसको जाने से क्या फ़ायदा 

मोह माया ही जब जग के रिश्ते अगर 
जग के रिश्ते  निभाने से क्या  फ़ायदा 

जग को मानो ना मानो ख़ुशी आपकी 
जग से ग़ुस्सा दिखाने से क्या फायदा .
-डॉ. अंशु सिंह

Thursday, January 14, 2021

बदलाव..... संजय भास्कर

घर से दफ्तर के लिए
निकलते समय रोज छूट
जाता है मेरा लांच बॉक्स और साथ ही
रह जाती है मेरी घड़ी
ये रोज होता हो मेरे साथ और
मुझे लौटना पड़ता है उस गली के
मोड़ से
कई वर्षो से ये आदत नहीं बदल पाया मैं
पर अब तक मैं यह नहीं
समझ पाया
जो कुछ वर्षों से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!
- संजय भास्कर

Wednesday, January 13, 2021

हम भी कहां सुधरते हैं .....मेजर (डॉ.)शालिनी सिंह

वो नहीं बदलता तो हम भी कहां सुधरते हैं
वो घात करता है तो हम ऐतबार करते हैं
उकता गये हैं अब उन्हीं पुराने जख्मों से
तुम नया वार करो हम नईं आह भरते हैं
उसकी हर चाल में कई चाल छुपी होती हैं
समझते हैं हम पर कहां बचाव करते हैं
ठगे जाते हैं हर बार इक ही तरीके से
कमाल उसका है या हम कमाल करते हैं
राज़ जान लेते हैं उसकी आंखें पढ़ कर
फिर क्यूं उससे फिजूल सवाल करते हैं
हर फसाद की जड़ है जिद्दी यह दिल मेरा
लौटा लाता है जब भी उससे तौबा करते हैं
झूठे इकरार की फितरत है या फिर लत उसको
हर किसी से कहता है सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं
काश आ जाये दर्द महसूस करने की सलाहियत उसे
समझ जायेगा खुद कि आखिर मुहब्बत किसे कहते हैं
- मेजर (डॉ.)शालिनी सिंह

Tuesday, January 12, 2021

सुख - दुःख ....अकिञ्चन धर्मेन्द्र

जीवन में
दुःख के विकल्प
इतने अनिर्णीत नहीं रहे..;
जितना
सुख की वस्तुनिष्ठता में
भयग्रस्त रहा-मन..!
एक अकेली वेदना
इतनी प्रभावी,
व्याकुल और आच्छादक हो सकती है..;
कभी सोचा नहीं था..!
इस बहते हुए जीवन में
खुलते रहे..
सुख के इतने स्रोत कि-
दिन-रात सहमा किया..;
अकेला दुःख..!
पहाड़ की
किसी निर्जन ऊँचाई पर बैठे
किसी अवधूत की साधना ढूँढ़ती रही..;
निर्द्वन्द्वता के जटिल सूत्र..!
इस विकट जंगल में
'गूलर का फूल'
यदि कहीं दिख जाए..;
तो वह आँखों का भ्रम है..!
वे पागल रहे होंगे-
"सुख 'हाथ का कपूर' है"-
जो रटते रहे-अभी तक..!
कभी नहीं होती-
पूर्णिमा..;इधर..!
इस ध्रुव पर
बारहों महीने
अँधेरी रात का नियम है..!
सुख
'ईद का चाँद' नहीं..;
अमावस का ताप है..!
मैंने
इस संसार से
कभी नहीं नहीं माँगा-सुख..!
फिर भी कभी
टस से मस नहीं हुआ-'काश'..!
काश!
सूख जाता-
पीर का अंकुर..;
माटी के बाहर झाँकने से पहले..!
काश!
मन मरु-थल ही बना रहता..!
काश!
दुःख के चुनाव के लिए
सब स्वतन्त्र रहते..!
काश!
सुख
सहज,तन्मय,एकाग्र और एकनिष्ठ रहता..!
कब तक
भरेंगे-
बाँसुरी में स्वर..;
जले हुए कण्ठ..?
सुधे!
गरल की उत्कण्ठा लिए
तृषित रखना-यह मन..;
जीवन-भर..!
दुःख!
अब यदि तुम भी नहीं रहे..;
कुछ भी नहीं बचेगा..!
©अकिञ्चन धर्मेन्द्र

Monday, January 11, 2021

शुरू ही कहां हुआ ....नीलम गुप्ता


शुरू ही कहां हुआ

लोग कहतें हैं कि
बक्त नहीं कटता
हम कहते कि
बक्त ही नहीं मिलता
लोग कहते हैं
उम्र हो गई
हम कहते
अब जिंदगी
शुरू हो गई
लोग कहे बच्चों को
सैटल करना है
हम कहे, हमें
अब मजे करना है
लोग बुढ़ापे से
डर रहे
हम जवानी के
मजे कर रहे
उन्हें भविष्य
डरा रहा
हमे वर्तमान में
मजा आ रहा
उन्होंने जीना
छोड़ दिया
हमनें तो अब जाके
शुरू किया
वो कहते
बहुत हुआ
हम कहते
शुरू ही
कहां हुआ...???
स्वरचित

- नीलम गुप्ता

Sunday, January 10, 2021

सुबह फिर मिलेंगें ......प्रीती श्री वास्तव


 
122. 122. 122. 12

गजब की गजल तूने तैयार की।
गुंजाइश नही इसमे इंकार की।।
तभी तो फिदा हो गया मन मेरा।
ये दावत अभी मैने स्वीकार की।।
सदियों तलक ये कही जायेगी।
लिखी है गजल तूने जो प्यार की।।
न हो काफिया है जरूरत नही।
मुहब्बत है काफी मेरे यार की।।
बड़ा दर्द था उस गजल में तेरी।
जो लिखी सनम तूने मनुहार की।।
जमाना पढ़ा साथ मेरे उसे।
मुहब्बत मेरी सबने अखबार की।।
देखो बैठे हैं आज मिलकर सनम।
नही करो तुम बातें संसार की।।
होने है लगी शब हमें जाने दो।
होंगी बातें कल इश्के इजहार की।।
सुबह फिर मिलेंगें ये वादा रहा।
जमेंगी ये महफिल करतार की।।
-प्रीती श्री वास्तव।।