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Sunday, December 10, 2017

अमलतास....श्वेता मिश्र


छुवन तुम्हारे शब्दों की 
उठती गिरती लहरें मेरे मन की 
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास 
साक्षी बन खड़ा है 
मेरे आँगन का ये 
अमलतास......
गुच्छे बीते लम्हों की 
तुम और मैं धार समय की 
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले 
धूप में ठंडी छाया 
नहीं मुरझाया 
मेरे आँगन का 
अमलतास..........
सावन मेरे नैनों का 
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का 
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल 
स्नेह भर आँखों में 
फिर मुस्काया मेरे आँगन का 
अमलतास............

-श्वेता मिश्र