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Friday, September 23, 2016

फल्गु के तट पर !!!!!.............सदा














फल्गु के तट पर
पिण्डदान के व़क्त पापा
बंद पलकों में आपके साथ
माँ का अक्स लिये
तर्पण की हथेलियों में
श्रद्धा के झिलमिलाते अश्कों के मध्य
मन हर बार
जाने-अंजाने अपराधों की
क्षमायाचना के साथ
पितरों का तर्पण करते हुये
नतमस्तक रहा !
...
पिण्डदान करते हुये
पापा आपके साथ
दादा का परदादा का
स्मरण तो किया ही
माँ के साथ
नानी और परनानी को
स्मरण करने पे
श्रद्धा के साथ गर्व भी हुआ
ये 'गया' धाम निश्चित ही
पूर्वजों के अतृप्त मन को
तृप्त करता होगा !!
...
रिश्तों की एक नदी
बहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!

-सीमा सिंघल "सदा"

Tuesday, August 23, 2016

आप यूं ही अपना आशीष देते रहना.........सदा










पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है
हर बरस की तरह 
आज फ़िर ...
ये तिथि जब भी आती है
बिना कुछ कहे
मन चिंहुक कर
बाते करने लगता है आपकी 
कुछ उदासियां 
ठहरी हैं मन के पास ही
कुछ ख़्याल बैठे हैं
गुमसुम से !
.....
कितना कुछ बदला
पर ये मन आज भी 
आपके कांधे पे 
सिर टिकाये हुए है 
आप यूं हीं रहेंगे
साथ मेरे जानती हूँ
आपका चेहरा बार -बार
सामने आ रहा है
नहीं संभाल पाती जब 
तो उठाकर क़लम
शब्दों के श्रद्धासुमन 
अर्पित कर देती हूँ
जहाँ भी हों आप यूं ही
अपना आशीष देते रहना !!!
- सीमा सदा सिंघल

Friday, July 29, 2016

खिलखिलाहटें लबों पर मचलती थीं..... सीमा सदा














ये गलियाँ हैं 
उस बचपन की जहाँ 
मन अक्सर ठहर जाता है 
जहाँ कड़ी धूप में भी 
छाया होती थी स्नेह की 
और बारिश की बूंदों में 
खिलखिलाहटें लबों पर मचलती थीं 
... 
मेरी आदत में 
शामिल था पापा का साथ 
वो भी शाम को 
जब आफिस से लौटते तो 
कुछ पल बचाकर लाते थे 
जेब में मुस्कराहटों के 
कभी ले जाते घुमाने 
कभी खेलते 
मेरी पसंद का कोई खेल 
जिसमें तय होती थी जीत मेरी 
हार के पलों का 
उदास चेहरा उन्हें मायूस कर जाता था 

-सीमा सदा 

Thursday, July 7, 2016

कुछ हाईकू.........सदा




एक मिठास

मन की मन से है
जश्‍न ईद का







ईदी ईद की
संग आशीषों के ये
जो नवाजती




चाँद ईद का
नज़र जब आये
ईद हो जाए




पाक़ीजा रस्‍म
निभाओ गले मिल 
ईद  के दिन




नेकअमल
रोज़ेदार के लिए
जश्‍न ईद का 





दुआ के संग
जब भी ईदी मिले
चेहरा खिले





-सीमा सिंघल "सदा"

Friday, January 1, 2016

उम्मींदों की पोटली है मेरे काँधे पे.....सदा










सिमट रहे हैं 
कुछ लम्हे उसके आगोश में 
कुछ उस तक 
पहुँचने की फि़राक़ में हैं 
कुछ कद के छोटे हैं 
तो दबे हैं भीड़ में 
पर सब साथ हैं उसके
क्यूं कि उसने सबको
कुछ न कुछ दिया है !
.. 
खुशियों और गम के आँसू 
झिलमिलाये हैं उसकी पलकों पर भी 
अतीत के पन्नों में कैद हो 
इससे पहले वो 
कहना चाहता है तुम्हे 
मुबारक हो नया साल 
जो मिला उसे तक़दीर समझना 
जो चाहते हो 
उसके लिये दुआयें हैं मेरी 
उम्मींदों की पोटली है मेरे काँधे पे 
दिन तारीख वर्ष 
फिर गवाह बनेंगे 
इन्ही शुभकामनाओं के साथ 
मेरा हर दिन लम्हा 
तुम्हारे लिये है !!

-सीमा सदा