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Wednesday, March 20, 2019

सात सालों के बाद इस शुभ संयोग में मनेगी होली, होलिका दहन का यह है शुभ समय

रंगों का त्योहार होली इस बार चैत कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार 21 मार्च को मनेगी। इससे एक दिन पूर्व 20 मार्च को होलिका दहन होगा। होलिका दहन पर इस बार दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। इन संयोगों के बनने से कई अनिष्ट दूर होंगे। दूसरी ओर फाल्गुन कृष्ण अष्टमी14 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो गयी है। होलाष्टक आठ दिनों को होता है। ज्योतिषाचार्य प्रियेंदू प्रियदर्शी ने धर्मशास्त्रों के हवाले से बताया कि लगभग सात वर्षों के बाद देवगुरु बृहस्पति के उच्च प्रभाव में गुरुवार को होली मनेगी। इससे मान-सम्मान व पारिवारिक शुभ की प्राप्ति होगी। राजनीति की वर्ष कुंडली के अनुसार नए वर्ष में नए नेताओं को लाभ मिलेगा। 

हिन्दू नववर्ष के पहले दिन मनेगी होली 

ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार हिन्दू नव वर्ष के पहले दिन होली मनायी जाएगी। उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में होली मनेगी। यह नक्षत्र सूर्य का है। सूर्य आत्मासम्मान, उन्नति, प्रकाश आदि का कारक है। इससे वर्षभर सूर्य की कृपा मिलेगी। आचार्य के मुताबिक जब सभी ग्रह सात स्थानों पर होते हैं वीणा योग का संयोग बनता है। होली पर ऐसी स्थिति से गायन-वादन व नृत्य में निपुणता आती है।

सौभाग्य देनेवाली है होलिकाभस्म

ज्योतिषाचार्य युग ने बताया कि होलिका दहन इस बार पूर्वा फाल्गुन नक्षत्र में है। यह शुक्र का नक्षत्र है जो जीवन में उत्सव, हर्ष,आमोद-प्रमोद, ऐश्वर्य का प्रतीक है। भस्म सौभाग्य व ऐश्वर्य देने वाला होता है। होलिका दहन में जौ व गेहूं के पौधे डालते हैं। फिर शरीर में ऊबटन लगाकर उसके अंश भी डालते हैं। ऐसा करने से जीवन में आरोग्यता और सुख समृद्धि आती है।

होलिका दहन का यह है शुभ समय 

20 मार्चकी रात्रि 8.58 से रात 12.05 बजे। भद्रा का समय, भद्रा पुंछ : शाम 5.24 से शाम 6.25 बजे तक। भद्रा मुख : शाम 6.25 से रात 8.07 बजे तक। 

अगजा धूल से शुरू होती है होली 

ज्योतिषी इंजीनियर प्रशांत कुमार के अनुसार अगजा की धूल से होली की शुरुआत होती है। होलिका दहन की पूजा और रक्षो रक्षोघ्न सूक्त का पाठ होता है। अगजा की तीन बार परिक्रमा की जाती है। अगजा में लोग गेहूं,चना व पुआ-पकवान अर्पित करते हैं। अगजा के बाद सुबह में उसमें आलू, हरा चना पकाते और ओरहा खाते हैं। नहा धोकर शाम में मंदिर के पास जुटते हैं। नए कपड़े पहनकर भगवान को रंग-अबीर चढ़ाते हैं। 


Friday, March 10, 2017

आओ होली जम कर खेलें....अर्चना सक्सेना



आओ होली जम कर खेलें
गिले-शिकवे सब को भूलें
और जीवन रंगीन बनाएं
सबको ऐसे गुलाल लगाऐं


क्यों ना आने-जाने वालों को हम
आज अपनी पिचकारी से नहलाऐं
भांग की ठंडाई इतनी पिलाए कि
वो झूमता दिन भर  ही जाये

आज पड़ोस की भाभी से भी
थोड़ी हँसी ठिठोली कर आयें
मेक अप के ऊपर थोड़ा सा
गोल्डन कलर का टच दे आयें

डाँटने वाले अँकल से हम
बॉल नहीं आशीष ले आयें
बहुत सताया हमने साल भर
रंग लगा के आज पैर छू आयें

गली के छोटे- छोटे बच्चों की
आज बड़ी- बड़ी मूँछ बनाये
पर याद रहे कि गुब्बारे से 
चोट किसी को ना लग पाये

गुजिया और दही भल्ले खाकर
हंसी-खुशी सब होली को मनाऐं
तो फिर बहुत मजा आ जाये
तो फिर बहुत मजा आ जाये

Friday, March 6, 2015

होली की शुभकानाएं.....यशोदा


होली की शुभकानाएं


होली मनाए शान से
पानी बचाए
स्वच्छता रखें
और स्वस्थ रहें
-यशोदा

Sunday, March 16, 2014

होली के मौसम में.............पूर्णिमा वर्मन


होली के मौसम में रंगो के सपने
सपनों के रंगों में भींगे सब अपने
नयनों में आंज गए सुरमे सी शाम
कानों में खनक रही मीठी सी झांझ
फगुनाहट लिपट रही आंचल सी तमनें
बाहर परदेस मगर नंदग्राम मन में

डूब रहा सूरज औ सांझ लगी छिपने
आसमान होली के खेल रहा सपने
चार दिवस साथ गए आठ बिरह बीते
तीज,चौथ, पूनो सब चले गए रीते
खेत सभी सरसों है टेसू सब जंगल
पुरवाई गाती है आंगन में मंगल

बौराए आमों पर कूक रखी पिक ने
देहरी पर डाल दिए एपन के लिखने
पाती में प्रिय जन को रस रंजन पहुंचे
फगणा चौताल साथ मन रंजन हुए
अनियारे फागुन का अभिनंदन पहुँचे

सुख आएं दुख जाएं बने रहे अपने
अपनो के साथ सदा सजे रहे सपने

पूर्णिमा वर्मन
जन्मः 27 जून, 1955, पीलीभीत


रविवारीय रसरंग मे छपी रचना

Thursday, March 13, 2014

देख बहारें होली की.............नज़ीर अकबराबादी


जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।

हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की

गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।

और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।

ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।। 

नज़ीर अकबराबादी
जन्म: 1735
निधन: 1830
उपनाम    अकबराबादी
जन्म स्थान    आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत