जश्न है हर सू , साल नया है
हम भी देखें क्या बदला है
गै़र के घर की रौनक है वो
अब वो मेरा क्या लगता है
दुनिया पीछे दिलबर आगे
मन दुविधा मे सोच रहा है
तख्ती पे 'क' 'ख' लिखता वो-
बचपन पीछे छूट गया है
नाती-पोतों ने जिद की तो
अम्मा का संदूक खुला है
याद ख्याल आई फिर उसकी
आँख से फिर आँसू टपका है
दहशत के लम्हात समेटे
आठ गया अब नौ आता है
-सतपाल 'ख़याल'
वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-01-2019) को "वक़्त पर वार" (चर्चा अंक-3206) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुन्दर शानदार यथार्थ ।
ReplyDeleteसटीक ।