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Thursday, December 31, 2020
टाट का परदा ...परवीन शाकिर
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Wednesday, December 30, 2020
कोई दुःख इतना बड़ा नहीं होता...अकिञ्चन धर्मेन्द्र
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Tuesday, December 29, 2020
सोच की परिधि ....डॉ. ऋतु नरेन्द्र
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Monday, December 28, 2020
प्रभात-सौंदर्य ....कौशल शुक्ला
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प्रसन्न चित्त भावना, विषाद को निगल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
निरख सुबह कि लालिमा, निशा प्रछन्न हो गयी
गगन की ओर देखकर, धरा प्रसन्न हो गयी
प्रभात में तरंग का, प्रवाह तेज हो गया
उषा ने आँख खोल दी, भ्रमर कली में खो गया
चमन में फूल खिल गया, बहार फिर मचल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
किरण चली दुलारने, नए नए विहान को
खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को
पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय
उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
सुगंध संग ले पवन, कली को छू निकल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
- कौशल शुक्ला
Sunday, December 27, 2020
जो जलने के अभ्यस्त हैं.. ...अकिञ्चन धर्मेन्द्र
©अकिञ्चन धर्मेन्द्र
Saturday, December 26, 2020
प्यार का गणित ...रुचि बहुगुणा उनियाल
नरेंद्र नगर
Friday, December 25, 2020
हम हैं, हम रहेंगे, यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा ..अटलबिहारी वाजपेई
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आज भारतरत्न अटल जी का जन्मदिन है
शत-शत नमन
..
पढ़िए उनकी एक रचना
जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।
-अटलबिहारी वाजपेई
Thursday, December 24, 2020
रूह हूं मैं ...नीलम गुप्ता
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNY0JE6W_yMANRfm184yLF6m0MHQj2xQgsv-JVFU17JkkkYqq568RV3bl4F0FuaeJr1VOAqmtOU7UGGMl7_Z1D1N70q2rKC7AAeXcgqCEzZwzhVgjTMIPqTfwfwiA42ixfJthLDQC1tXE/s320/%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%259D%25E0%25A5%2587+%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25A6+%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE.jpg)
Wednesday, December 23, 2020
बह चली नेह गंगा ....डॉ. अंशु सिंह
तुमको बाँहों के बन्धन में मैं बाँध लूँ
नेह से तेरे मस्तक पर मैं चूम लूँ
शुभ दिवस पर तुम्हें क्या मैं अर्पण करूँ
धड़कनों की मधुर तान पर झूम लूँ
अपनी झोली भरूँ तेरे आशीष से
भर दूँ तेरे हृदय को अमर प्यार से
मन तो आकुल बहुत है तेरी याद में
बाँध लू चाँद अंबर में मनुहार से
नव सृजन से मैं तेरी करूँ अर्चना
शब्द हैं मौन कह दूँ इशारों से मैं
तुम तो नयनों से उतरे हृदय में बसे
कल्पना को सजाती सितारों से मैं
चूम कर तेरे माथे की उलझी लटें
भर दिया प्यार से सांध्य आकाश है
बिखरी अलकों को सुलझा रही हूँ तेरी
भर गया आज तन मन में मधुमास है
बह चली नेह गंगा नयन कोर से
भीगते छोर आँचल किनारों से हैं
प्रीति भरके प्रवाहित हुई एक नदी
झूमती दस दिशाऐं बहारों से हैं
तब प्रणय गीत अधरों पे सजने लगे
बन्द पलकें सजल डबडबाने लगीं
लेखनी चल पड़ी तेरे अहसास कर
शब्द दर शब्द भर कंपकंपाने लगी
-डॉ. अंशु सिंह
Tuesday, December 22, 2020
सकुची, लिपटी, शरमाई सी रचना ..कवि कुलवंत सिंह
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मधुर रागिनी सजी हुई
जाग जाग है प्रात हुई ।
अंशु-प्रभा पा द्रुम दल दर्पित
धरती अंचल रंजित शोभित
भृंग-दल गुंजन कुसुम-वृंद
पादप, पर्ण, प्रसून, प्रफुल्लित ।
उनींदी आँखे अलसाई
जाग जाग है प्रात हुई ।
रमणीय भव्य सुंदर गान
प्रकृति ने छेड़ी मद्धिम तान
शीतल झरनों सा संगीत
बिखरते सुर अलौकिक भान ।
छोड़ो तंद्रा प्रात हुई
जाग जाग है प्रात हुई ।
उषा धूप से दूब पिरोती
ओस की बूँदों को सँजोती
मद्धम बहती शीतल बयार
विहग चहकना मन भिगोती ।
देख धरा है जाग गई
जाग जाग है प्रात हुई ।
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-कवि कुलवंत सिंह
Monday, December 21, 2020
देर ना हो जाए ...नीलम गुप्ता
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देर ना हो जाए
सिगरेट फूंकती लड़की
बदचलन कहलाती
और लड़का मर्द
कहा जाता
दोनों के गुर्दे क्या
अलग अलग ब्रांड के है
लड़की का भूगोल नापतें नापतें
इतिहास पर नजर अटक जाती
उसका कौमार्य ही
उसकी पहचान कहलाती
बड़े अजीब नजारे दुनिया ने दिखाए है
मर्द सुबह का भूला शाम को भी ना आता
फिर भी लड़की पर इल्जाम लग जाता
कैसी पत्नी, रूप में ना फंसा सकी
पति के दिल में ना समा सकी
इल्जाम हर बार आना ही है
बिना गुहार सुने, फैसला सुनाना ही है
तो फिर चोला क्यों हम पहन घूमते रहे
क्यों और कब तक बिना वजह सहे
बस यही से कहानी बदल गईं
आज लड़की हावी हो रही
जितना दबाया सताया था उसे
आज उतना ही वो भारी हो रही
समझ लो कहीं देर ना हो जाएं
आपका लडका भी कहीं
चाय की ट्रे लेकर ना जाए
ओर लड़की उसके
कौमार्य पर सवाल उठाएं
स्वरचित
-नीलम गुप्ता
कविताएं डॉ अंशु के साथ
Sunday, December 20, 2020
शीशा चुभे या कांटा ...पावनी दीक्षित जानिब
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गंवार हूं मेरा दर्द कुछ खास नहीं होता
शीशा चुभे या कांटा मुझे अहसास नहीं होता।
जब भी लगी ठोकर हम रोकर संभल गए
गैर क्या अपना भी कोई पास नहीं होता।
मुझे किसी के साने की कीमत क्या पता
गवार न होते तो ये कच्चा हिसाब नहीं होता।
महफिल थी काबिलों की हम खामोश हो गए
दिल है के नहीं दिलमें ये आभास नहीं होता।
ये हम मानते हैं अब हम मगरूर हो गए हैं
के मुझको ही मेरे दर्द पे विश्वास नहीं होता।
जानिब ये एक बात है अब भी कहीं दिल में
धरती अगर न होती तो आकाश नहीं होता।
-पावनी दीक्षित जानिब
सीतापुर
Saturday, December 19, 2020
उसकी जुल्फों का था साया दोस्तों ..नवीन मणि त्रिपाठी
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हासिल ग़ज़ल
2122 2122 2112
कर के वादा वो निभाया दोस्तो ।
बा वफ़ा फिर याद आया दोस्तो ।।
वो नज़र पढ़ कर गयी जब से मुझे ।
नूर रुख़ पर लौट आया दोस्तो ।।
हैं बहुत मग़रूर जानां हुस्न पर ।
आइना किसने दिखाया दोस्तो ।।
अब मुहब्बत है ज़रूरी मुल्क में ।
मत कहो अपना पराया दोस्तो ।।
इश्क़ में मत पूछना ये बात अब ।
दिल ने कितना ज़ख्म खाया दोस्तो ।।
हाले दिल की है ख़बर सबको यहां ।
किसने कितना है रुलाया दोस्तो ।।
बाद मुद्दत मैक़दे में आज फिर ।
मुझको साकी ने पिलाया दोस्तो ।।
चीज़ क्या है मैकशी समझा तभी ।
जब लबों तक जाम लाया दोस्तो ।।
ख़ुद को बस तन्हा ही पाया भीड़ में ।
जब भी तुमको आजमाया दोस्तो ।।
चांदनी रोशन हुई महफ़िल में तब।
चाँद जब भी मुस्कुराया दोस्तो ।।
दिन अंधेरी रात सा लगने लगा ।
उसकी जुल्फों का था साया दोस्तों ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
Friday, December 18, 2020
उठ समाधि से ध्यान की, उठ चल .... जौन एलिया
उठ समाधि से ध्यान की, उठ चल
उस गली से गुमान की, उठ चल
मांगते हो जहाँ लहू भी उधार
तुने वां क्यों दूकान की, उठ चल
बैठ मत एक आस्तान पे अभी
उम्र है यह उठान की, उठ चल
किसी बस्ती का हो न वाबस्ता
सैर कर इस जहाँ की, उठ चल
जिस्म में पाँव है अभी मौजूद
जंग करना है जान की, उठ चल
तू है बेहाल और यहाँ साजिश
है किसी इम्तेहान की, उठ चल
है मदारो में अपने सय्यारे
ये घड़ी है अमान की, उठ चल
क्या है परदेस को देस कहाँ
थी वह लुकनत जुबां की, उठ चल
हर किनारा खुर्म मौज थे
याद करती है बान की, उठ चल
- जौन एलिया
Thursday, December 17, 2020
दुश्मनों के लिए तलवार बने बैठे ..... "मेहदी हल्लौरी "
अपनी क़ब्रों के ज़मीदार बने बैठे हैं,
बेनियाज़ी में भी दिलदार बने बैठे हैं।
उन को ग़द्दारी की ऐनक से न देखो प्यारे,
जो अज़ल से ही वफ़ादार बने बैठे हैं।
आंधी तूफ़ान में भी सीना सिपर रहते हैं,
दुश्मनों के लिए तलवार बने बैठे।
सारी तामीर की तहरीर को पढ़ कर आओ,
हर ज़माने के ही मेमार बने बैठे हैं।
चाहने से तेरे ग़रक़ाब नहीं हो सकते,
डूबती कश्ती के पतवार बने बैठे हैं।
जो कि सन्नाटे में घुंघुरू से डरे रहते हैं,
सहमी पाज़ेब की झंकार बने बैठे हैं।
प्यार की बात समझ मे नहीं आती जिनको,
राहे उलफ़त में वो दीवार बने बैठे हैं।
मुंह की खाते रहे मैदान में जो जा जा कर,
दीन व दुनिया के वो सरदार बने बैठे हैं।
सिर्फ़ बदकारी के अफ़सानों में मिलते हैं जो,
' मेहदी ' अब साहबे किरदार बने बैठे हैं।
- मेहदी अब्बास रिज़वी
" मेहदी हल्लौरी "
Wednesday, December 16, 2020
हर इरादा मोहब्बत का नाकाम आया है .....पावनी जानिब
हर इरादा मोहब्बत का नाकाम आया है
राहें अपनी जुदा हुई हैं वो मकाम आया है।
सुना है दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता
मेरे दुश्मनों में दोस्तों का ही नाम आया है।
वो ख़त जो हमने लिखेथे उनको बेकरारी में
जवाब में हमारी मौत का फरमान आया है।
गुनाह ए इश्क दोनों ने ही किया था कभी
बस मुझपे ही क्यों इश्क का इलज़ाम आया है।
यह आखिरी है मुलाकात इसे कुबूल करो
बेवफा तेरे लिए आखिरी सलाम आया है।
मुझे हर हाल में जीना गंवारा है जानिब
जब जिसकी जरूरत थी वो कब काम आया है।
- पावनी जानिब सीतापुर
Tuesday, December 15, 2020
नेज़ों पे दौड़ने का हुनर ढूंढता रहा ....सचिन अग्रवाल
Monday, December 14, 2020
समर्पण ....अजनबी
अपनी मोहब्बत को इक नाम यह भी दे दो-
ये अजनबी सी आंखों का समर्पण है बस
- "अजनबी"
Sunday, December 13, 2020
क्यूं रूठे है सनम आप हमसे ....प्रीती श्रीवास्तव
नजरो से अपनी पिलाइये तो जरा।
हस कर करीब मेरे आइये तो जरा।।
Saturday, December 12, 2020
तुम कैसी हो कुछ हाल कहो ..अमित 'केवल'
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