Showing posts with label अनीता लागुरी "अनु". Show all posts
Showing posts with label अनीता लागुरी "अनु". Show all posts

Wednesday, July 22, 2020

वो नन्हा अंकुर ....अनु

बारिश की बूंदों ने 
सहला दिया,प्यासी धरती के
तन को,नम होकर,
बूंदे जब समा गई,
धरती के आगोश में,
अंकुरो की कुलबुलाहट से,
माटी हुवी बैचेन,
फाड़ धरती का सीना,
वो नन्हा अंकुर, 
निकल आया बाहर,
मगर कुछ लोग,
खड़े थे,
हाथों ‌में फवाड़े,
दिमाग में शोर मचाते,
वो भेड़िए नुमा शक्ल वालों ने,
तबाड़ -तोड़ हमले कर,
उसे मार गिराया,
बस सिर्फ इसलिए कि,
जहां गर्भ से उत्पन्न हुआ,
वो जमीन एक आदिवासी की
ज़मीन थी,क्या....?
तुम देख नहीं सकते,
उनको,फलते फुलते,
वो अपने जंगल, जमीन पर
उग आए,
अंकुरो को सहेज नहीं सकते,
अपने ही अस्तित्व को बचाए रखने के लिए,
हर सुबह गीली आंखों से,
सुखी हो चुकी,
धरती पर जीवन तलाशते
अंकुर की लंबी उम्र की दुआ करते
वो तमाशबीन क्यूं  बने ...??
क्यूं खड़े रहे कतारों में,
अपने हिस्से की जमीन के लिए..!!
 -अनु,, 

Thursday, February 27, 2020

एक ज़िंदा भारतीय....अनीता लागुरी "अनु"


क्यों   दिखता  नहीं 
एक  ज़िंदा  भारतीय
क्यों दिखती  नहीं
भूख  से कुलबुलाती
उसकी  अतड़ियाँ  ..!
उसकी  आशायें ,
उसकी हसरतें  ,
दिखती  कब  हैं 
  जब .....?
 वो  मर  जाता  है  !
लोगों  की  आँखों  पर 
चढ़   जाता है  ..
एक  अंजुरीभर  चावल  के  बदले ..!
घर  बोरों   से  भर   जाता   है ...
टूटी खाट आँगन  में  सज  ज़ाती है 
बन  सूर्खियां अख़बारों  की
बाक़ियों  की जुगाड़ कर जाता है !!


लेखिका परिचय - अनीता लागुरी "अनु"