क़ानून से हमारी वफ़ा दो तरह की है
इंसाफ दो तरह का, सज़ा दो तरह की है
एक छत पे तेज़ धूप है, एक छत पे बारिशें
क्या कहिये आसमाँ में घटा दो तरह की है
किस रुख से तुम को चाहें भला किस पे मर मिटें
सूरत तुम्हारी जलवानुमा दो तरह की है
काँटों को आब देती है फूलों के साथ साथ
अपने लिए तो बाद-ए-सबा दो तरह की है
खुश एक को करे है, करे है एक को नाखुश
महबूब एक ही है, अदा दो तरह की है
ऐसा करें कि आप कहीं और जा बसें
इस शहर में तो आब-ओ-हवा दो तरह की है
- फ़े सीन एजाज़
मूल रचना उर्दू व रोमन अंग्रेजी मे पढ़ने के लिए पधारें