जिसे मैंनें अधूरा रख दिया पढ़कर
मैं उस किताब के पन्ने पलटता हूँ
मुझे उसमें तुम्हारा दिया एक ताना रखा मिलता है
मेरी सभी किताबों का यही हाल है
तुम्हारे दिये तानों से भरी है वे.
मैंनें जिसे पहना नहीं कई दिनों से
उस शर्ट को अलमारी से निकालता हूँ
देखता हूँ कि उसकी जेब में तुम्हारा दिया
एक ताना मुस्करा रहा है
पहनने के जितने कपड़े मेरे पास
उनकी एक भी जेब ऐसी नहीं
जिसमें तुम्हारा दिया ताना मौजूद न हो.
तुझसे बहुत दूर जाकर भी देख लिया
तुम्हारे तानों में कभी एक भी नही हुआ कम
जहां रुका मैं तुमसे दूर उस कमरे
या फिर यात्रा में बस या सीट पर ट्रेन की
एक भी नहीं छूटा कभी.
तुमसे प्रेम करना आसान नहीं रहा
तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे तानों से भी
करना पड़ा मुझे बराबर प्रेम.
-पवन करण
pawankaran64@gmail.com
जन्म : 18 जून, 1964, ग्वालियर मध्यप्रदेश
......रसरंग से