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Thursday, August 16, 2018

परिचय की वो गांठ....त्रिलोचन

1917-2007

यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!

था पथ पर मैं भूला भूला 
फूल उपेक्षित कोई फूला 
जाने कौन लहर ती उस दिन 
तुमने अपनी याद जगा दी। 


कभी कभी यूं हो जाता है 
गीत कहीं कोई गाता है 
गूंज किसी उर में उठती है 
तुमने वही धार उमगा दी। 


जड़ता है जीवन की पीड़ा 
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा 
छवि के शर से दूर भगा दी।
-त्रिलोचन

Thursday, March 8, 2018

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार....त्रिलोचन


खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया
अपने पन में जीवन आया 
-त्रिलोचन