शाहजहां ने बनवाकर ताजमहल
याद मे मुमताज के,
डाल दिया आशिकों को परेशानी मे।
आशिक ने लम्बे "इंतजार" के बाद
किया "इजहारे" मुहब्बत
"नशा" सा छाने लगा था दिलो दिमाग पर
कह उठी महबूबा अपने माही से
कब बनेगा ताज हमारे सजदे में
डोल उठा! खौल उठा!! बोला
ये तो निशानियां है याद में
बस जैसे ही होगी आपकी आंखें बंद
बंदा शुरू करवा देगा एक उम्दा महल
कम न थी जानेमन भी
बोली अदा से लो कर ली आंखें बंद
बस अब जल्दी से प्लाट देखो
शुरू करो बनवाना एक "ख्वाब" गाह
जानु की निकल गई जान
कहां फस गया बेचारा मासूम आशिक
पर कम न था बोला
एक मकबरे पे क्यों जान देती हो
चलो कहीं और घूम आते हैं
अच्छे से नजारों से जहाँ भरा है,
बला कब टलने वाली थी
बोली चलो ताज नही एक फ्लैट ही बनवादो
चांद तारों से नही" गुलाबों" से ही सजा दो
"उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई"
अब खुमारी उतरी सरकार की बोला
छोड़ो मैं पसंद ही बदल रहा हूं
आज से नई गर्लफ्रेंड ढूंढता हूं
मुझमे शाहजहां बनने की हैसियत नही
तुम मुमताज बनने की जिद पर अड़ी रहो
देखता हूं कितने और ताजमहल बनते हैं
हम गरीबों की "वफा" का माखौल उडाते है
जीते जी जिनके लिए सकून का
एक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं।
-कुसुम कोठारी