जो न कर पाए वो कर जाना है
आज हर हद से गुज़र जाना है
इस दफा युद्ध में होगा निर्णय
मुझको जीना है या मर जाना है
कोई जाता न जिधर भूले से भी
मेरी जिद है कि उधर जाना है
मिल गया प्यार, जियेंगे अब तो
हमको मरने से मुकर जाना है
स्वर्ण हूँ फिर भी तपाओ मुझको
बन के कुन्दन-सा निखर जाना है
अब तलक है जो शिखर खाली
वो जगह मुझको ही भर जाना है
घर से सिद्धार्थ गए, बुद्ध हुए
अब कहां लौट के घर जाना है
राम हूँ, पूर्ण हुई सब लीला
अब तो सरयू में उतर जाना है
-चंद्रसेन विराट
.....तरंग, नईदुनिया से