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Tuesday, June 23, 2015

अब कहां घर जाना है....चंद्रसेन विराट



जो न कर पाए वो कर जाना है
आज हर हद से गुज़र जाना है

इस दफा युद्ध में होगा निर्णय
मुझको जीना है या मर जाना है

कोई जाता न जिधर भूले से भी
मेरी जिद है कि उधर जाना है

मिल गया प्यार, जियेंगे अब तो
हमको मरने से मुकर जाना है

स्वर्ण हूँ फिर भी तपाओ मुझको
बन के कुन्दन-सा निखर जाना है

अब तलक है जो शिखर खाली
वो जगह मुझको ही भर जाना है

घर से सिद्धार्थ गए, बुद्ध हुए
अब कहां लौट के घर जाना है

राम हूँ, पूर्ण हुई सब लीला
अब तो सरयू में उतर जाना है

-चंद्रसेन विराट

.....तरंग, नईदुनिया से

Sunday, June 21, 2015

.....चलो प्यार बोएं...कविता विकास

















इक-दूजे के विश्वास बोएं
चलो, कुछ प्यार बोएं

नफरत नें सरहदें बांटी
दरक रही रिश्तों का घाटी
खिड़कियों से अपने झांकते
पराए जब ज़नाज़ा उठाते

मायूस हो क्यों हम रोएं
चलो, कुछ प्यार बोएं

कुछ स्मृतियां अभी है शेष
मज़हबों नहीं था द्वेष
मन से मन का तार मिलाते
लगकर गले से गम भुलाते

दिन सुनहरे हम क्यों खोएं
चलो, कुछ प्यार बोएं

नस्लें हमारी बदल गई
मौजें मातम में ढल गईं
रस्मो-रिवाज़ सब खटक रहे
निरुद्देश्य हम भटक रहे

सब मिल मन का मैल धोएं
चलो, कुछ प्यार बोएं

-कविता विकास

आज....
तबियत भी ठीक है
मन में शान्ति  है
घर में एकान्त भी है
काफी दिनों से अलगाव की
आग में जल भी रही थी...
और आज फिर मन हो आया
सो उसी का प्रतिफल आपको
सादर समर्पित....
कविता विकास की एक कविता...

सादर....
यशोदा दिग्विजय अग्रवाल