
शाम-ए -महफ़िल है-
मेरे दिल के मेहमान हो तुम।
मेरी चाहत है समंदर!
फिर क्यों परेशान हो तुम?
सबने मुख मोड़ लिया,
आँखें हैं नम,व्याकुल मन
दीप आँधी में जला लूँगी
कि मेरे भगवान हो तुम।
आके मिल जाओ-बादलों से
गिर रही रिमझिम,
जानेमन, जानेचमन,
जानेवफ़ा, मेरी जान हो तुम।
प्रियतम! दीपों की टोली,
तुम रंग भी हो रंगोली।
थाल पूजा का हो पावन कि
मेरे घनश्याम हो तुम।
डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'