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Sunday, April 22, 2018

जीवन के प्रति श्रद्धा...उर्मिला सिंह

दिल के  समन्दर  में भावों की  कश्ती  होती है!
उठती गिरती लहरें जीवन की कहानी कहती है!!
सुख दुख है जीवन माना ,पर पार उसे है करना,
सघर्षों से लड़ कर ही अपनी पहचान बनानी है!!

ज्ञान तुम्हें मिलता है किताबों से, सच है माना
अनुभव राह दिखाता है ,जब छाये घोर अँधेरा
जितने गहरे जाओगे मोती ढूंढ तभी पाओगे
जग में पदचिन्ह तभी तुम अपने दे जाओगे

जीवन के प्रति श्रद्धा ही ध्येय तुम्हें बनाना है
कर्म शक्ति सर्वदा तुम्हे, उसी से पाना है
यदि साध्य तुम्हारा उज्ज्वल होगा जीवन में
साधन अवश्य मिलेगा तुमको मन्जिल पाने में
-उर्मिला सिंह

Thursday, April 19, 2018

पाषाण यहाँ बसते.....उर्मिला सिंह

कैसे मन्जिल तक पहुँचे, छाया  घोर अँधेरा है!
कदम कदम यहाँ दरिंदो का लगा हुआ मेला है!

मन  कहता  सपनो  को  पूरा  कर लूँ,
डर कहता दरिंदो से अपने को बचालूँ,
      
कैसे अर्जुन बन लक्ष्य साधू हाँथों से तीर सरकता है!
कदम-कदम पर यहाँ  दरिंदो का लगा हुआ मेला है!  
  
मन कहता सघर्षों से डरो नही तुम,
तन कहता नर भक्षी से दूर रहों तुम,
        
 किस को मन की व्यथा सुनाऊँ पाषाण यहाँ बसते!
 काँटो से रुह जख्मी होती मानव पाषाण बने हँसते!   

नारी सदियों से अग्नि परीक्षा से है गुजरी , 
जीने का मोल चुकाया माँ बहन पत्नी बनी,
        
बाजी जब भी हारी रिश्तों के भाओं में बहते-बहते!   
कामी बहसियों की दरिंदगी कदम नारियों के रोकते!
    
 प्रदूषित हो  रहा शहर-शहर व्यभिचार से,
डरी है बच्चियाँ माँ बाप देश के माहौल से,
       
काँटों से रूह जख्मी होती मानव पाषाण बनेहंसते!
किसको मन की  व्यथा सुनाऊँ  पाषाण यहाँ बसते! 
-उर्मिला सिंह