ख़्वाब मेरी आँख में पलते रहे हैं।
अहर्निश हर-पल वही सजते रहे हैं।।
मोतियों से जो सितारे आसमां में,
आँख से मेरी ही तो झरते रहे हैं।
रेत के टीले पे जा के देखिये, वो
कल्पना की मृगतृषा रचते रहे हैं।
वो न इन अश्कों से भीगेंगे कभी भी,
जिनके मन पर-पीर से बचते रहे हैं।
'प्रेम' के परवाज़ से मत पूछिए, क्यों
हौंसले उनको हसीं लगते रहे हैं।।
-डॉ. प्रेम लता चसवाल ''प्रेमपुष्प''