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Monday, August 26, 2019

गाँठ सुलझा रफ़ू..... विभा रानी श्रीवास्तव


प्रेम का धागा नहीं टूटता 
जब तक उसमें शक का दीमक
या
अविश्वास का घुन ना जुड़ता 
खोखला होगा तभी तो टूटेगा 
मैं जब कढ़ाई या बुनाई करती हूँ ...... तो जब गाँठ डालना होता है 
गाँठ डालना होगा न ... क्योंकि लम्बे धागे उलझते हैं 
और उलझाव से धुनते धुनते कमजोर भी होने लगते हैं 
और ऊन का 25 या 50 ग्राम का गोला होता है 
400 से 600 ग्राम का गोला तो 
मिलता नहीं ना 
जहाँ खत्म हुआ सिरा और शुरू होने वाला सिरा के पास
थोड़ा थोड़ा उधेड़ती हूँ 
फिर दोनों के दो दो छोर हो चार छोर हो जाते हैं 
दो दो छोर सामने से मिला बाट लेती हूँ
फिर गाँठ का पता नहीं चलता है
क्या रिश्ते के गाँठ को यूँ नहीं छुपाया 
जा सकता है 
कुछ कुछ छोर तक उधेड़ डालो न मन को 
हर गाँठ को सुलझाया जा सकता है
रफ़ू से चलती है जिंदगी


-- विभा रानी श्रीवास्तव 

Tuesday, July 23, 2019

उड़ेगी बिटिया.....विभा रानी श्रीवास्तव


नीतू भतीजी , डॉ. बिटिया महक , 
प्रीती दक्ष , स्वाति , मोनिका 
संग
बहुत सी बिटिया 
रब ने दिलाई
कोखजाई एक भी नहीं
ना इनमें से किसी से 
मेरा गर्भनाल रिश्ता है
लेकिन जो रिश्ता है
उसके लिए गर्भ का
होना न होना मायने नहीं रखता है
हम एक दूसरे के आंसू 
शायद ना पोछ पायें
लेकिन आंसू दिखलाने में
कमजोर महसूस नहीं करते हैं
खुशियाँ बांटने के लिए भी
बच्चों की तरह उछलते हैं .......

आप सोच रहे होंगे , आपको बता बोर क्यों कर रही हूँ ......

बेटिया वो ही नहीं होती , जिसे हम जन्म देते हैं ....
तब तो प्यारा तोता पिंजरा में हो गया
सिंधु कुँए में कैद हो गया
सोच का दायरा बढ़ना चाहिए

बेटा जोरू का गुलाम 
समझा नहीं जाना चाहिए
दमाद बेटी को खुश रखता है
आप खुश होती हैं न

 बेटा को ही प्यार करने से , यशोदा को नहीं जाना जाता !


Friday, January 12, 2018

त्रिवेणी.....विभा रानी श्रीवास्तव

बड़ी दीदी की लिखी त्रिपदियाँ
चातक-चकोर को मदमस्त होते भी सुना है !
ज्वार-भाटे को उसे देख उफनते भी देखा है !

यूँ ही नहीं होता माशूकों को चाँद होने का गुमाँ !!
......
रब एक पलड़े पर ढेर सारे गम रख देता है !
दूसरे पलड़े पर छोटी सी ख़ुशी रख देता है !

महिमा तुलसी के पत्ते के समान हुई !!
......
टोकने वाले बहुत मिले राहों के गलियारों में !
जिन्हें गुमान था कि वही सयाने हैं टोली में !

कामयाबी पर होड़ में खड़े दे रहे बधाई मुझे !!
......
नफ़रत सुलगाती हैं ख़ौफ़ ए मंज़र
उल्फ़त मोड देती है नोक ए खंजर

क्यूँ बुनता है ताने बाने साज़िशों के हरदम

- विभारानी श्रीवास्तव

Monday, January 8, 2018

छह हाइकु.....विभा रानी श्रीवास्तव

1
ठूँठ का मैत्री
वल्लरी का सहारा
मर के जीया।
2
शीत में सरि
स्नेह छलकाती स्त्री
फिरोजा लगे।
3
गरीब खुशियाँ
बारम्बार जलाओ
बुझे दीप को।
4
क्षुधा साधन
ढूंढें गौ संग श्वान
मिलते शिशु।
5
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानन्दी स्त्री।
सर्वानन्दी = जिसको सभी विषयों में आनंद हो 
6
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।
-विभा रानी श्रीवास्तव