परिवार की धुरी का एक पहिया है पिता,
जो कभी रुकता नही है।
रहता हमेशा चलायमान,
जो कभी थकता नही है।
कंधे पर जिम्मेदारियां लाख होने पर भी,
माथे पर शिकन कभी रखता नही है।
दुःख कितने भी हो उसपर,
पर उनको कभी गिनता नही है।
संतान की खुशियों के खातिर,
आंखों को कभी नम करता नही है।
पिता वो स्तंभ है,
जो संकट की आँधियों में कभी गिरता नही है।
रह हिमालय सा अडिग,
सारे तूफानों से लड़ता वही है।
पिता वो धुरी है जो कभी रुकता नही है।
लेखिका - निधि अग्रवाल