एक हसीन ख़्वाब
काग़ज़ की तरह मोड़कर
दिल के कमरे में बने
यादों के दरीचे पर मैंने
रख दिया है
धूमिल न हो जाए वो पन्ना
इसलिए अक्सर उसे अपने
आँसुओं से धोता हूँ
उस ख़्वाब को सजाने में
वक़्त की कितनी सीमाएँ लाँघी हमने,
ये सोचता हूँ
उस पन्ने पर अपने ख़्वाब मैं
और लिखना चाहता था
पर ज़माने की पैदा की हुई ठण्ड ने
मेरी लेखनी की स्याही को जमा डाला
मैं बेबस लाचार अब उस ख़्वाब को
लिख नहीं सकता
पर जब वक़्त के झोंकों से
वो पन्ना
यादों के दरीचे से हिलता है
तो मैं उस लिखे हुए ख़्वाब को पढ़ लेता हूँ
-अर्जित पाण्डेय
बहुत सुन्दर... लाजवाब...।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-02-2019) को "हिंदी की ब्लॉग गली" (चर्चा अंक-3235) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
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