
बापू
अच्छा ही हुआ
जो आप नहीं हैं आज
अगर होते तो
रो रहे होते खून के आंसू
गणतंत्र को गनतंत्र बना देने वाले
क्या रत्ती भर भी समझ पाये हैं
आपके स्वराज का अर्थ ...
नहीं वो तो बस नाम को
चढ़ा देते हैं चार फूल
राजघाट पर और
कर लेते हैं फर्ज पूरा
दुनिया को दिखाने को
कि बापू आज भी हमारी यादों में हैं
जबकि असलियत तो ये है कि
आप उनकी यादों में नहीं
सिर्फ जेबों में रह गए हैं
नोटों पर छपी रंगीन तस्वीर बन कर
-मंजू मिश्रा
( "गणतंत्र / गनतंत्र" शब्द मित्र कवि कमलेश शर्मा जी की पोस्ट पर पढ़ा था, इस अद्बभुत खयाल का श्रेय उनको ही जाता है, उनको धन्यवाद सहित उनकी पोस्ट से साभार )
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