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Saturday, April 27, 2019

कूकती कोयल ....सीमा 'सदा' सिंघल

हर बार मेरे हिस्से
तुम्हारी दूरियाँ आईं
नजदीकियों ने हँसकर जब भी
विदा किया
एक कोना उदासी का लिपट कर
तुम्हारे काँधे से सिसका पल भर को
फिर एक थपकी हौसले की
मेरी पीठ पर तुम्हारी हथेलियों ने
रख दी चलते-चलते !
.....
मेरे कदम ठिठक गए पल भर
कितने कीमती लम्हे थे
उस थपकी में
जिनका भार मेरी पीठ पर
तुम्हारी हथेली ने रखा था
भूलकर जिंदगी कितना कुछ
हर बार मुस्कराती रही
उम्मीद को हँसने की वजह
नम आँखों से भी बताती रही
गले लगती जो कभी
सुबककर रात तो
उसे भोर में चिडि़यों का चहचहाना
सूरज की किरणें दिखलाती रही !!
....
कूकती कोयल 
अपनी मधुरता से
आकर्षित करती सबको
भूल जाते सब उसके काले रंग को
मीठा राग है जिंदगी भी
बस तुम्हें हर बार इसे
भूलकर मुश्किलों को
गुनगुनाना होगा पलकों पे
इक नया ख्वाब बुनकर
उसे लम्हा-लम्हा सजाना होगा !!!

-सीमा 'सदा' सिंघल

Sunday, May 6, 2018

शब्‍दों के रिश्‍ते....सीमा 'सदा' सिंघल


शब्‍दों के रिश्‍ते हैं 
शब्‍दों से 
कोई चलता है उँगली पकड़कर 
साथ - साथ 
कोई मुँह पे उँगली रख देता है 
कोई चंचल है इतना 
झट से जुबां पर आ जाता है 
कोई मन ही मन कुलबुलाता है
किसी शब्‍द को देखो कैसे खिलखिलाता है !
.... 
दर्द के साये में शब्‍दों को 
आंसू बहाते देखा है 
शब्‍दों की नमी 
इनकी कमी 
गुमसुम भी शब्‍दों की द‍ुनिया होती है 
कुछ अटके हैं ... कुछ राह भटके हैं 
कितने भावो को समेटे ये 
मेरे मन के आंगन में
अपना अस्तित्‍व तलाशते
सिसकते भी हैं !!
.... 
जब भी मैं उद‍ासियों से बात करती हूँ, 
जाने कितनी खुशियों को 
हताश करती हूँ 
नन्‍हीं सी खुशी जब मारती है किलकारी, 
मन झूम जाता है उसके इस 
चहकते भाव पर 
फिर मैं शब्‍दों की उँगली थाम 
चलती हूँ हर हताश पल को 
एक नई दिशा देने 
कुछ शब्‍द साहस की पग‍डंडियों पर 
दौड़ते हैं मेरे साथ-साथ 
कुछ मुझसे बातें करते हैं 
कुछ शिकायत करते हैं उदास मन की 
कुछ गिला करते हैं औरों के बुरे बर्ताव का 
मैं सबको बस धैर्य की गली में भेज 
मन का दरवाजा बंद कर देती हूँ !!!
- सीमा 'सदा' सिंघल

Thursday, February 22, 2018

आँगन की चिड़िया....सीमा 'सदा' सिंघल

बेटी बाबुल के दिल का टुकड़ा भैया की मुस्कान होती है, 
आँगन की चिड़िया माँ की परछाईं घर की शान होती है !
..
खुशियों के पँख लगे होते हैं उसको घर के हर कोने में
रखती है अपनी निशानियां जो उसकी पहचान होती हैं !
..
माँ की दुलारी पापा की लाडली भैया की नखरीली वो
रूठती झगड़ती इतराती हुई करुणा की खान होती है !
..
भाई की राखी दूज का टीका मीलों दूर होकर भी जब
वो सजल नयनों से भेजकर हर्षाये तो सम्मान होती है !
..
संध्या वंदन कर एक दिया आँगन की तुलसी पे रखती,
मानो ना मानो बेटी तो सदा दिल का अरमान होती है !
- सीमा 'सदा' सिंघल

Tuesday, August 15, 2017

ऊँगली मत छोड़ना....सीमा 'सदा' सिंघल


कुछ मुस्कराहटों को 
आज मैंने देखा 
उदासियों के दरवाजे पे
दस्तक़ देते हुए
खुशियों ने
आना शुरू किया
ये कहते हुए
हम तो बस यूं ही
बिना बुलाये चले आते है
तुम हौसले की
ऊँगली मत छोड़ना !!
- सीमा 'सदा' सिंघल

Friday, November 18, 2016

स्‍मृतियों को कभी जगह नहीं देनी पड़ती... सीमा 'सदा' सिंघल



बड़ी तीक्ष्‍ण होती है
स्‍मृतियों की
स्‍मरण शक्ति
समेटकर चलती हैं
पूरा लाव-लश्‍कर अपना
कहीं‍ हिचकियों से
हिला देती हैं अन्‍तर्मन को
तो कहीं खोल देती हैं
दबे पाँव एहसासों की खिड़कियाँ
जहाँ से आकर 
ठंडी हवा का झोंका
कभी भिगो जाता है मन को
तो कभी पलकों को
नम कर जाता है 
...
कुछ रिश्‍तों को
कसौटियों पर
परखा नहीं जाता
इन्‍हें निभाया जाता है
बस दिल से
स्‍मृतियों को कभी
जगह नहीं देनी पड़ती
ये खुद-ब-खुद
अपनी जगह बना लेती हैं
एक बार जगह बन जाये तो
फिर रहती है अमिट
सदा के लिए
-सीमा 'सदा' सिंघल

Friday, November 4, 2016

कोई इन्‍द्रधनुष जब बनता है ... सीमा 'सदा' सिंघल



प्रेम सब कुछ छोड़ देता है 
पर भरोसा करना नहीं छोड़ता 
जिस दिन वह भरोसा करना छोड़ देगा 
यकीं मानो 
उसे कोई प्रेम नहीं कहेगा !!!
.... 
टटोल कर देखो कभी रिश्‍तों में प्रेम 
बिना ठहरे पल-पल का हिसाब 
करती यादों के साथ 
अपने सम्‍बंधों का 
बाईस्‍कोप तैयार करता मिलेगा मन तुम्‍हें
जो वक्‍़त-बेवक्‍़त एक अदद तस्‍वीर 
बड़ी ही तन्‍मयता से चिपका लेता था !
.... 
ना कोई आवाज लगाता 
कि तुम पलटकर देखो ना ही तुमसे दूर जाता, 
बसकर रह जाता रूह में सदा के लिए 
खामोशियों में भी धड़कन का गति में रहना
दिखाता है प्रेम के रंग 
कोई इन्‍द्रधनुष जब बनता है 
सारे रंग मन के संगी हो जाते हैं !!
......
मन की मुंडेर पर जब भी 
प्रेम आकर चहका है 
हर बुरे विचार को 
बड़े स्‍नेह से चुगता चला गया 
इसकी चहचहाहट के स्‍वर
आत्‍मा में उतरते चले जब 
भरोसे की एक थपकी 
यकीन की पगडंडियों पर 
मेरे साथ-साथ चलती रही !!!

-सीमा 'सदा' सिंघल