कॉलेज को छोड़े करीब
नौ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब नौ साल बाद
देखा तो
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं
हमेशा उसकी और
खिचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा
खूबसूरत लग रही थी
पर मुझे विश्वास नहीं
हो रहा था !
की वो मुझे देखते ही
पहचान लेगी !
पर आज कई सालो बाद
उसे देखना
बेहद आत्मीय और आकर्षण लगा
मेरी आत्मा के सबसे करीब ........!!
- संजय भास्कर
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteविचरण करते ख्याल कब जवाँ हुए, पता ही नहीं चला, देखा फिर से आपको, खुद से हुआ गिला।
ReplyDelete👌👌👌
बहुत सुन्दर 👌
ReplyDeleteसादर
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ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव विभोर करती सृजनात्मकता । विगत से जुड़े प्रसंग पुनः सामने प्रकट हो तो अहसास अविस्मरणीय होते हैं ।
ReplyDeleteबड़ा दर्द छुपा हुआ है संजय भास्कर जी आपकी कविता में !
ReplyDeleteगोद में प्यारा सा बच्चा लिए पूर्व-प्रेमिका आपको आकर्षक लगी, इस से अधिक दरियादिली और किसकी हो सकती है?
वैसे आपकी कविता पढ़कर मुकेश का एक पुराना गाना याद आ गया -
'दिल जलता है तो जलने दे ---'
आदरणीय ये बच्चा कहाँ से बीच में लेकर आ गये आप?
Deleteसुशील बाबू, 9 साल बाद भी मिलेगी तो क्या उनका इंतज़ार करती हुई ही मिलेगी?
Deleteआदरणीय गोपेश जी, आपकी बातें सुनकर मेरी हंसी नहीं थमती। एक कवि ने आपको दर्देदिल सुनाया और आपने यहाँ भी हास्य रस की गंगा बहा दी। वाह कविवर !!आपकी कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं!!
Deleteसभी पहले यशोदा दी आपका बहुत आभारी हूँ...
ReplyDeleteइस साल के शुरुआती पहले त्योंहार के दिन मेरी धरोहर ब्लॉग पर शामिल होना संजय भास्कर के लिए मूल्यवान हैं, मेरा आभार भी स्वीकारें....
मेरी और से परिवार सहित
मकर संक्रांति की शुभकामनाये !!
बधाई संजय।
Deleteबहुत सुन्दर भाव सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह!!संजय जी ,बहुत ही खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-01-2019) को "कुछ अर्ज़ियाँ" (चर्चा अंक-3210) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
उत्तरायणी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कम ही कविताएं होती हैं जिसके शब्दों को पढ़कर पढ़ने वाला उन शब्दों से अपने आप को जोड़ लेता है। उन्हीं में से एक कविता ये भी है। साधुवाद संजय भास्कर जी .....सृजन जारी रखिये
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 17 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1280 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत सुंदर भाव,यादें कहाँ बूढ़ी होती हैं।
ReplyDeleteलेखन से पाठक खुद को जोड़ने लगे, लेखक की जाँच-पड़ताल शुरू हो जाये समझलो सार्थक लेखन
ReplyDeleteसस्नेहाशीष
प्रिय संजय जी, जब किसी से सघन अनुराग व गहन आत्मीयता हो तो वो इंसान हर हाल में खूबसूरत लगताहै। अत्यंत दिल से लिखी गई भावपूर्ण रचना। हर्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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