Sunday, January 20, 2019

शायद वो आ गए हैं ...दानिश भारती


परखेगा ये ज़माना 
धोखे में आ न जाना 
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दिलचस्प तज्रबा है 
दुनिया से दिल लगाना 
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'हाँ ' भी छिपी थी उसमें 
जब उसने कह दिया 'ना'
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साक़ी का हुक्म है ये 
पीना , न डगमगाना 
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सब लोग याद रक्खें 
ऐसा कहो फ़साना 
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मेरी - - वही गुज़ारिश 
उसका - - वही बहाना 
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समझो तो क़ीमत इसकी 
है ज़िन्दगी खज़ाना 
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शायद वो आ गए हैं 
मौसम हुआ सुहाना 
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रास आ रहा है "दानिश" 
लफ़्ज़ों को गुनगुनाना 
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-दानिश 

4 comments:

  1. शायद वो आ गए हैं
    मौसम हुआ सुहाना ...बेहतरीन रचना👌

    आभार
    सादर

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  2. समझो तो क़ीमत इसकी
    है ज़िन्दगी खज़ाना
    बहुत खूब..., अत्यन्त सुन्दर ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-01-2019) को "पहन पीत परिधान" (चर्चा अंक-3223) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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