परखेगा ये ज़माना
धोखे में आ न जाना
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दिलचस्प तज्रबा है
दुनिया से दिल लगाना
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'हाँ ' भी छिपी थी उसमें
जब उसने कह दिया 'ना'
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साक़ी का हुक्म है ये
पीना , न डगमगाना
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सब लोग याद रक्खें
ऐसा कहो फ़साना
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मेरी - - वही गुज़ारिश
उसका - - वही बहाना
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समझो तो क़ीमत इसकी
है ज़िन्दगी खज़ाना
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शायद वो आ गए हैं
मौसम हुआ सुहाना
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रास आ रहा है "दानिश"
लफ़्ज़ों को गुनगुनाना
-दानिश
शायद वो आ गए हैं
ReplyDeleteमौसम हुआ सुहाना ...बेहतरीन रचना👌
आभार
सादर
समझो तो क़ीमत इसकी
ReplyDeleteहै ज़िन्दगी खज़ाना
बहुत खूब..., अत्यन्त सुन्दर ।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-01-2019) को "पहन पीत परिधान" (चर्चा अंक-3223) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूब
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