ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं,
बिन छुये एहसास जगाते हो
मौजूदगी तेरी लम्हों में,
पाक बंदगी में दिल की
तुम ही हो ख़ुदा नहीं।
ज़िस्म के दायरे में सिमटी
ख़्वाहिश तड़पकर रूलाती है,
तेरी ख़ुशियों के सज़दे में
काँटों को चूमकर भी लब
सदा ही मुसकुराते हैं
तन्हाई में फैले हो तुम ही तुम
क्यों तुम्हारी आती सदा नहीं।
बचपना दिल का छूटता नहीं
तेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
दिल तुझसे रूठता नहीं
क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
हरेक शय में तस्वीर तेरी
ReplyDeleteउफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं....!भावनाओं का अपरिमेय विस्तार, कल्पनाओं के पार!!! आभार!!!!
बचपना दिल का छूटता नहीं
ReplyDeleteतेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
दिल तुझसे रूठता नहीं
क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
उफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं....बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय श्वेता जी
सादर
बहुत ख़ूब श्वेता, एक पुराना नग्मा याद आ गया -
ReplyDelete'मैं जब भी अकेली होती हूँ,
तुम चुपके से याद आते हो----.'
वल्लाह लाजवाब .
ReplyDeleteलेखनी हिय पर चली
भाव भाव गति देय
कतरा कतरा इश्क का
खुद स्वरूप भर लेय ॥
डॉ इन्दिरा गुप्ता
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!!
हरेक शय में तस्वीर तेरी
ReplyDeleteउफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं..
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
क्यों ख़्यालों से कभी
ReplyDeleteख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं,
बिन छुये एहसास जगाते हो
मौजूदगी तेरी लम्हों में,
पाक बंदगी में दिल की
तुम ही हो ख़ुदा नहीं।
प्रिय श्वेता रूहानी प्रेम का चरम !!!! सुंदर सार्थक रचना | शुभकामनायें और मेरा प्यार |