Saturday, August 31, 2019

अंकों का मिलन .....डॉ. कौशल श्रीवास्तव

एक चतुर शिक्षक ने पूछा 
“एक प्लस एक का मान बताओ।” 
बेंच पर सामने बैठे विद्यार्थी ने कहा “दो” 
“तुम गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनोगे 
सच्चाई के वृत्त में भ्रमण करोगे।” 
उन्होंने पुनः पूछा “कोई दूसरा उत्तर?” 
किसी ने सकुचाते हुए कहा “तीन” 
“तुम व्यापारी बनने के क़ाबिल हो 
मौक़ा मिले तो इसे आज़माओ।” 
उन्होंने फिर कहा “कोई अन्य उत्तर?” 
पिछली बेंच से आवाज़ आयी “एक” 
शिक्षक ने पूछा “इसका क्या अर्थ?” 
उस विद्यार्थी ने कहा 
“यह प्रश्न आपके लिए है 
आप सोचिये, यह आपकी परीक्षा भी है 
यदि आप फ़ेल हो गए 
तो कल मैं क्लास में उत्तर बताऊँगा।” 

शिक्षक चतुर थे, सोचते रहे 
किन्तु किसी तार्किक निष्कर्ष से दूर रहे 
इसी चिन्तन में रात बिताई 
दूसरे दिन क्लास में जल्दी पहुँच गए 
“हाँ, बताओ अपने उत्तर का अर्थ 
मुझे समझ लो असमर्थ।” 
विजयी स्वर में विद्यार्थी ने कहा 
“एक जोड़ एक से बनता है एक 
जब हो प्यार का अभिषेक 
प्रेमी और प्रेमिका हो जाते हैं एक 
यह है श्रृंगार रस का विवेक 
किन्तु गणित या व्यापार से बहुत दूर।” 

शिक्षक महोदय ने निर्णय दिया 
“तुम एक कवि बनोगे 
जो कल्पना की दुनिया में जीते हैं 
बिना व्यापार किये ही 
साधन संपन्न होना चाहते हैं 
गणित को अपना दुश्मन समझते हैं।”   

क्लास की गम्भीरता को चीरते हुए 
एक साहसी विद्यार्थी ने पूछा 
“मैंने कहते सुना है 
एक और एक बनाते हैं ग्यारह 
जिसका अर्थ है मेरी समझ से बाहर 
क्या डालेंगे प्रकाश इस पर?” 
कोई मजाकिया विद्यार्थी बोल उठा 
“जब किसी पति-पत्नी ने नौ बच्चे पैदा किये 
तो एक और एक मिलकर बन गए ग्यारह 
राजनीति में यह आज भी चर्चित है 
क्योंकि प्रजातन्त्र में संख्या महत्वपूर्ण है।” 
हँसी की गूँज क्लास में फैल गई  
आज की पढ़ाई ख़त्म हुई!! 
-डॉ. कौशल श्रीवास्तव

Friday, August 30, 2019

उदास चाँद ....मंजू मिश्रा

आज रात चाँद
ज़रा देर से
खिड़की पर आया
था भी कुछ अनमना सा
पूछा .... तो कुछ बोला नहीं
शायद उसने सुना नहीं
या फिर अनसुनी की
राम जाने....
लेकिन ये तो तय है
था उदास, चेहरा भी
कुछ पीला पीला सा ही लगा
यूँ ही थोड़ी देर
इधर उधर पहलू बदलते
बादलों की ओट में
छुपते छुपाते
न जाने कब
चुपके से नीचे उतर
झील में जा बैठा शायद रो रहा था
-मंजू मिश्रा
मूल रचना


Thursday, August 29, 2019

हौले से कदम बढ़ाए जा....सुधा देवरानी


अस्मत से खेलती दुनिया में
चुप छुप अस्तित्व बनाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाये जा.....

छोड़ दे अपनी ओढ़नी चुनरी,
लाज शरम को ताक लगा
बेटोंं सा वसन पहनाऊँ तुझको
कोणों को अपने छुपाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा....

छोड़ दे बिंंदिया चूड़ी कंगना
अखाड़ा बनाऊँ अब घर का अँगना
कोमल नाजुक हाथों में अब 
अस्त्र-शस्त्र पहनाए जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

तब तक छुप-छुप चल मेरी लाडो
जब तक तुझमेंं शक्ति न आये
आँखों से बरसे न जब तक शोले
किलकारी से दुश्मन न थरथराये
हर इक जतन से शक्ति बढ़ाकर
फिर तू रूप दिखाए जा...
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढाए जा....।।

रक्तबीज की इस दुनिया में
रक्तपान कर शक्ति बढ़ा
चण्ड-मुण्ड भी पनप न पायेंं
ऐसी लीला-खेल रचा  
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....

रणचण्डी दुर्गा बन काली
ब्रह्माणी,इन्द्राणी, शिवा....
अब अम्बे के रूपोंं में आकर 
डरी सी धरा का डर तू भगा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे 
हौले से कदम बढ़ाए जा...।

लेखिका परिचय -  सुधा देवरानी   

Wednesday, August 28, 2019

विजयी के सदृश जियो रे... रामधारी सिंह दिनकर

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो 
चट्टानों की छाती से दूध निकालो 
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो 
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो 

चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे 
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे! 

जब कुपित काल धीरता त्याग जलता है 
चिनगी बन फूलों का पराग जलता है 
सौन्दर्य बोध बन नयी आग जलता है 
ऊँचा उठकर कामार्त्त राग जलता है 
अम्बर पर अपनी विभा प्रबुद्ध करो रे 
गरजे कृशानु तब कंचन शुद्ध करो रे! 
-रामधारी सिंह दिनकर

Tuesday, August 27, 2019

आती थी याद पहले पर ...कुसुम सिन्हा


हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी

ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी

फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी

यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी
-कुसुम सिन्हा

Monday, August 26, 2019

गाँठ सुलझा रफ़ू..... विभा रानी श्रीवास्तव


प्रेम का धागा नहीं टूटता 
जब तक उसमें शक का दीमक
या
अविश्वास का घुन ना जुड़ता 
खोखला होगा तभी तो टूटेगा 
मैं जब कढ़ाई या बुनाई करती हूँ ...... तो जब गाँठ डालना होता है 
गाँठ डालना होगा न ... क्योंकि लम्बे धागे उलझते हैं 
और उलझाव से धुनते धुनते कमजोर भी होने लगते हैं 
और ऊन का 25 या 50 ग्राम का गोला होता है 
400 से 600 ग्राम का गोला तो 
मिलता नहीं ना 
जहाँ खत्म हुआ सिरा और शुरू होने वाला सिरा के पास
थोड़ा थोड़ा उधेड़ती हूँ 
फिर दोनों के दो दो छोर हो चार छोर हो जाते हैं 
दो दो छोर सामने से मिला बाट लेती हूँ
फिर गाँठ का पता नहीं चलता है
क्या रिश्ते के गाँठ को यूँ नहीं छुपाया 
जा सकता है 
कुछ कुछ छोर तक उधेड़ डालो न मन को 
हर गाँठ को सुलझाया जा सकता है
रफ़ू से चलती है जिंदगी


-- विभा रानी श्रीवास्तव 

Sunday, August 25, 2019

नया जूता ....ओंकार


नया जूता थोड़ा-बहुत काटता है,
पर लगातार पहनते रहो,
तो ठीक हो जाता है,
छोड़ दो, तो और अकड़ जाता है.

कुछ जूते बहुत ज़िद्दी होते हैं,
कई दिनों तक काटना नहीं छोड़ते,
पर आखिर में ठीक हो जाते हैं,
बस थोड़ी तकलीफ़ सहना,
थोड़ा सब्र करना पड़ता है.

कुछ लोग भी जूतों की तरह होते हैं,
काटने से बाज नहीं आते,
उनसे वैसे ही निपटना पड़ता है,
जैसे जूतों से निपटा जाता है !!

Saturday, August 24, 2019

व्यस्तताओं के जाल में...संजय भास्कर



अक्सर हो जाती है 
इकट्ठी
ढेर सारी व्यस्तताएँ
और आदमी 
फस जाता है इन व्यस्तताओं 
के जाल में  
पर आदमी सोचता जरूर 
है की छोड़ आएँ
व्यस्तताएँ कोसो दूर अपने से 
पर जब हम निकलते 
व्यस्तताओं को 
दूर करने के लिए 
तब लाख कोशिशों 
के बाद पीछा नहीं छोड़ती 
ये व्यस्तताएँ हमारा  
और हमे 
मजबूरन जीना पड़ता है 
ये व्यस्तताओं भरा जीवन 
और लड़ना पड़ता है अपने आपसे 
और व्यस्तताओं से 
तब इन व्यस्तताओं से बचने के बहाने
तलाशता आदमी 
हमेशा व्यस्त नजर आता है  !!

- संजय भास्कर 

Friday, August 23, 2019

अवकाश ....मोनिका जैन ‘पंछी’


वह कुछ जो विचलित कर रहा था 
उसी में शांति का आकाश था मेरे लिए। 

वह कुछ जो अजनबी था 
चिर जुड़ाव का अहसास था मेरे लिए।  

वह कुछ जिसे नकारा जा सकता था 
पर फिर भी कहीं स्वीकार था मेरे लिए।  

वह कुछ जिसे देखना और देखते जाना 
अपना ही साक्षात्कार था मेरे लिए।  

कुछ दिन आत्म अवलोकन के 
मैंने गुजारे थे जिसके तले।  

वह कुछ जो मुझे समझ न पाया (आया)
उसे समझना ही अवकाश था मेरे लिए। 
-मोनिका जैन ‘पंछी’

Thursday, August 22, 2019

सलाह....इन्द्रा

प्यार है तो जताया भी करो 
दर्द है तो बताया भी करो 
रूठे हुओं को मनाया भी करो 
जज़्बात छिपाये तो 
टीस उठेगी 
छिपाने की जगह दिखाया भी करो 
ज्यादा दिन दूर रहने से 
दूरियां बढ़ जाती हैं 
कभी कभी दोस्तों से मिल आया भी करो 
बिन मांगी सलाह बहुत देते हो मेरी जान
कभी अपनी सलाह पर भी अमल कर आया करो
-इन्द्रा
वर्डप्रेस

Wednesday, August 21, 2019

जब समय न मिले तब भी आना ...केदारनाथ सिंह

आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना

आना
जैसे हाथों में
आता है जाँगर
जैसे धमनियों में
आता है रक्त
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आँच

आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए काँटे

आना जैसे मंगल के बाद
चला आता है बुध
आना
~ केदारनाथ सिंह

Tuesday, August 20, 2019

इबादत मेरी ...मुदिता

नवाजिश करम और इनायत तेरी
तुमको जीना हुआ इबादत मेरी ...

हँसी होठों पे दिल में दर्द लिए
क़ाबिले दाद है लियाकत मेरी ...

रोकना कश्ती को ना है बस में उसके
मौजे सागर से अब है बगावत मेरी ...

लाख आगाह किया वाइज़ ने मुझको
डूबना इश्क में ठहरी थी रवायत मेरी....

हर इक इल्ज़ाम पे सर झुकता है
देगी गवाही खुद ही सदाक़त मेरी...

नाम शामिल था वफादारों में मेरा
आँखों में छलक आयी अदावत मेरी...
-मुदिता

मायने:
इनायत-मेहरबानी/कृपा, इबादत-पूजा, 
लियाकत-योग्यता, बग़ावत-विद्रोह,
वाइज़ - उपदेशक, रवायत-परंपरा,
सदाक़त-सच्चाई, अदावत-दुश्मनी


Monday, August 19, 2019

बाकि है तन्हा सफ़र तेरा ...पूजा प्रियंवदा

कितनी अँधेरी रातों के बाद 
कितने अकेले सफ़र तमाम 
परिंदे ने कहीं फ़िर 
आसरे की उम्मीद कर ली थी


घर ने कहा तू लौट जा 

कोई और अब रहता है यहाँ 
बाकि है तन्हा सफ़र तेरा !


लौटा है सफ़र में 

अकेला परिंदा 
फ़कीर रूह न किसी की 
न कहीं इसका बसेरा
- पूजा प्रियंवदा

Sunday, August 18, 2019

ख़याल ही सबूत है...गुलज़ार

बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे,
दुआ में जब,
जम्हाई ले रहा था मैं--
दुआ के इस अमल से थक गया हूँ मैं !
मैं जब से देख सुन रहा हूँ,
तब से याद है मुझे,
खुदा जला बुझा रहा है रात दिन,
खुदा के हाथ में है सब बुरा भला--
दुआ करो !
अजीब सा अमल है ये 
ये एक फ़र्जी गुफ़्तगू,
और एकतरफ़ा--एक ऐसे शख्स से,
ख़याल जिसकी शक्ल है 
ख़याल ही सबूत है.
-गुलज़ार

Saturday, August 17, 2019

स्वर्ग होता है कहाँ..... अरुण

मुझसे..
मत पूछिये.
कि मैं क्या लाया.
पालकी प्यार की.
सजा  लाया | 
..........
जागता है वो   
अब मेरी तरह.
नींद उसकी.
आँखों से ही 
चुरा लाया |
..............

उसने..
पूछा कि..   
चाँद कैसा है
आइना उसे   
बस दिखा दिया |
................
स्वर्ग....
होता है कहाँ.....,
बताना था उसे
मैं गाँव अपना...
उसे घुमा लाया...
..............
गम नहीं है 
हमें जुदाई का 
आपसे, 
फिर मिलेंगे  
अगर खुदा चाहे |
-अरुण

Friday, August 16, 2019

समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में...यशोदा अग्रवाल

क्या है...
ये कविता..
क्यों लिखते हैं....
झांकिए भीतर
अपने जिन्दगी के
नजर आएगी  एक
प्यारी सी कविता
सुनिए ज़रा
ध्यान से...
क्या गा रही है 
ये कविता....
देखिए इस नन्हें बालक
की मुस्कुराहट को
नज़र आएगी एक
प्यारी सी
मुस्काती कविता....
दिखने वाली
सभी कविताएँ
जिनमें..
हर्ष है और
विषाद भी है
सर्जक है
विध्वंसक भी है
इसमे संयोग है...
और वियोग भी है
है पाप भी 
और प्रेम का
प्रदर्शन का
संगम है
समाई हुई हैं
इसी जिन्दगी में
ये प्यारी सी 
कविता...!!

लेखिका परिचय - यशोदा अग्रवाल 

Thursday, August 15, 2019

सुख की परछाई है पीड़ा....अनीता जी


सुख की चादर ओढ़ी ऐसी
धूमिल हुई दृष्टि पर्दों में,
सच दिनकर सा चमक रहा है
किन्तु रहा ओझल ही खुद से !

सुख मोहक धर रूप सलोना
आशा के रज्जु से बांधे,
दुःख बंधन के पाश खोलता
मन पंछी क्यों उससे भागे ?

सुख की परछाई है पीड़ा
दुःख जीवन में बोध जगाता,
फिर भी अनजाना भोला मन
निशदिन सुख की दौड़ लगाता !

क्यों उस सुख की चाह करें जो
दुःख के गह्वर में ले जाये,
अभय अंजुरी पीनी होगी
तज यह भय सुख खो ना जाये !!


Wednesday, August 14, 2019

मौन रह कर मैं मुखर होना सीख रही हूँ....मीना भारद्वाज

मौन रह कर मैं ,
मुखर होना सीख रही हूँ ।
समझदारी के बटखरों से ,

 शब्दों का  वजन ।
मैं भी आज कल ,
तौलना सीख रही हूँ ।
रिक्त से कैनवास पर ,

इन्द्रधनुषी सी कोई तस्वीर ।
बिना रंगों की पहचान ,
उकेरना सीख रही हूँ ।
घनी सी उलझन की ,

उलझी सी गाँठों को ।
मन की अंगुलियों से ,
खोलना सीख रही हूँ ।
भ्रमित हूँ , चकित हूँ ,


दुनिया के ढंग देख कर ।
बन रही हूँ  कुशल ,
नये कौशल सीख रही हूँ ।
भौतिक नश्वरता के दौर में ,
मैं भी आज कल ;
दुनियादारी सीख रही हूँ ।

लेखक परिचय - मीना भारद्वाज 

Tuesday, August 13, 2019

हसरतों की इमलियाँ ....नीरज गोस्वामी

याद करने का सिला मैं इस तरह पाने लगा
मुझको आईना तेरा चेहरा ही दिखलाने लगा


दिल की बंजर सी ज़मी पर जब तेरी दृष्टि पड़ी

ज़र्रा ज़र्रा खिल के इसका नाचने गाने लगा



ज़िस्म के ही राजपथ पर मैं जिसे ढूँढा सदा

दिलकी पगडंडी में पे वोही सुख नज़र आने लगा


हसरतों की इमलियाँ गिरती नहीं हैं सोच से

हौसला फ़िर पत्थरों का इनपे बरसाने लगा


रोक सकता ही नहीं हों ख्वाइशें जिसकी बुलंद

ख़ुद चढ़ा दरिया ही उसको पार पहुँचने लगा


तेरे घर से मेरे घर का रास्ता मुश्किल तो है

नाम तेरा ले के निकला सारा डर जाने लगा


बावरा सा दिल है मेरा कितना समझाया इसे

ज़िंदगी के अर्थ फ़िर से तुझ में ही पाने लगा


सोचने में वक्त "नीरज" मत लगाना भूल कर

प्यार क़ातिल से करो गर वो तुम्हे भाने लगा 

-नीरज गोस्वामी


Monday, August 12, 2019

मुझको ही ढूंढा करोगे ...रश्मि शर्मा

बेसबब आवारा
आख़िर कब तक फिरोगे
हुई शाम जो
घर को ही लौटोगे !

जागी रातों की
तन्हाइयों का हिसाब
अब किसे देना
है किससे लेना ?

दिल की रखो
अपने ही दिल में
कह गये तो देखना
फिर एक बार फँसोगे !

इतनी सी बात पे जो गये
उसे आवाज क्यों देना
कर लो किसी से भी मोहब्बत
उसमें मुझको ही ढूँढा करोगे...।
-रश्मि शर्मा


Sunday, August 11, 2019

अस्तित्व.... रीना मौर्य 'मुस्कान'


मेरा अस्तित्व मेरे साथ है 
वो किसी के नाम का मोहताज नहीं 
पर हाँ 
जब मेरे नाम के साथ 
मेरे पिता का नाम होता है 
मुझे ख़ुशी होती है
उनका मेरे साथ होना
उनका अहसास 
उनका आभास ....
और जब नाम के साथ
जुड़ता है पति का नाम 
तब भी नहीं खोता 
मेरा अस्तित्व 
ये तो बंधन है प्यार का 
मेरा स्त्री होना ही
मेरा अस्तित्व है 
और इस अस्तित्व से 
मैंने रचा है कई रिश्ता 
मेरे नाम के साथ किसी का नाम
या किसी के नाम के साथ मेरा नाम
ये कोई वजह नहीं 
अस्तित्व के होने न होने में
या अस्तित्व के खोने में
ये नाम तो हमें रिश्ते देते है
पर अस्तित्व की असली पहचान 
हमारा कर्म है 
हमारा लक्ष्य है
और एक स्त्री होना ही 
अपने आप में पूर्ण 
अस्तित्व है... 


लेखिका परिचय - रीना मौर्य मुस्कान