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Sunday, June 25, 2017

ऐसा प्रेम मिला ही नहीं..........वन्दना गुप्ता

प्रेम के पनघट पर सखी री
कभी गागर भरी ही नही
मन के मधुबन मे
कोई कृष्ण मिला ही नही

जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
किस प्रीत की अलख जगाऊँ
ऐसा देवता मिला ही नही

किस नाम की रट्ना लगाऊँ
कोई जिह्वा पर चढा ही नही
कौन सी कालिन्दी मे डूब जाऊँ
ऐसा तट मिला ही नही

जिसके नाम का गरल पी जाऊँ
ऐसा प्रेम मिला ही नहीं
वो जोगी मिला ही नही
जिसकी मै जोगन बन जाऊँ

फिर कैसे पनघट पर सखी री
प्रीत की मैं गागर भर लाऊँ
- वन्दना गुप्ता

Friday, November 28, 2014

मैं अनाथ हूँ तो क्या.........वन्दना गुप्ता

 












मैं अनाथ हूँ तो क्या
मुझे न मिलेगा प्यार कभी
किसी की आँख का तारा कभी
क्या कभी बन पाऊँगा
किसी के घर के आँगन में
फूल बनकर महकूंगा कभी

ओ दुनिया वालों
मैं भी तो इक बच्चा हूँ
माना कि तुम्हारा खून नहीं हूँ
न ही संस्कार तुम्हारे हैं
फिर भी हर बाल सुलभ
चेष्टाएं हैं तो मेरी भी वही
क्या संस्कार ही बच्चे को
माँ की गोद दिलाते हैं
क्या खून ही बच्चे को
पिता का नाम दिलाता है
क्या हर रिश्ता केवल
खून और संस्कार बनाता है

तुम तो सभ्य समाज के
सभ्य इंसान हो
फिर क्यूं नही
मेरी पीड़ा समझ पाते हो
मैं भी तरसता हूँ
माँ की लोरी सुनने को
मैं भी मचलना चाहता हूँ
पिता की उँगली पकड़
मैं भी चलना चाहता हूँ

क्या दूसरे का बच्चा हूँ
इसीलिए मैं बच्चा नहीं
यदि खून की बात है तो
ईश्वर ने तो न फर्क किया
फिर क्यूँ तुम फर्क दिखाते हो
लाल रंग है लहू का मेरे भी
फिर भी मुझे न अपनाते हो
अगर
खून और संस्कार तुम्हारे हैं
फिर क्यूँ आतंकियों का बोलबाला है

हर ओर देश में देखो
आतंक का ही साम्राज्य
है
अब कहो दुनिया के कर्णधारों
क्या वो खून तुम्हारा अपना नहीं

एक बार मेरी ओर निहारो तो सही
मुझे अपना बनाओ तो सही
फिर देखना तुम्हारी परवरिश से
ये फूल भी खिल जाएगा
तुम्हारे ही संस्कारों से
दुनिया को जन्नत बनाएगा
बस इक बार
हाथ बढ़ाओ तो सही
हाथ बढ़ाओ तो सही


-वन्दना गुप्ता
.....सुरुचि, नवभारत से