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Thursday, September 17, 2020

चाँद की बन्दगी नहीं होती..डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी

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तुमसे गर आशिक़ी नहीं होती ।
सच  कहूँ  शाइरी  नहीं  होती ।।

तुम  अगर ख़्वाब  में नहीं आते ।
लेखनी   यूँ  चली  नहीं   होती ।।

जो न  अंजाम  तक पहुंच  पाए ।
वो  मुहब्बत  भली  नहीं  होती ।।

क़ैद ए उल्फ़त से छूट जाता मैं।
काश  नजरें  पढ़ी  नहीं  होती ।।

रोज़  जाता  हूँ  मैकदे  तक  मैं ।
पर  कोई  मयकशी नहीं  होती ।।

उनसे इज़हारे इश्क़ कर लूं मैं ।
मेरी हिम्मत कभी नहीं होती ।।

कुछ तो तुम भी क़रीब आ जाओ ।
बारहा बेबसी नहीं होती ।।

 चैन से रात भर मैं सो लेता ।
गर वो खिड़की खुली नहीं होती ।।

स्याह रातों का है असर साहिब ।
चाँद की बन्दगी नहीं होती ।।
-डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी