पिछले दिनों देश के एक प्रदेश में कुछ व्यक्तियों को इसलिए सरेआम डण्डों से मारा-पीटा गया, क्योंकि वह गाय की खाल उतार रहे थे. मरे हुए जानवरों की खाल निकालना उनका पुश्तैनी कर्म था. इसके बावजूद गौ रक्षकों ने उनको बेरहमी से पीटा. इस बात को लेकर प्रदेश में बवाल मच गया. देश की संसद में भी हंगामा हुआ.
इसी बीच प्रदेश के एक गांव में पंडित जी की गाय बीमार पड़ गयी. बहुत इलाज कराने के बावजूद वह नहीं बची और मर गयी. पंडितजी स्वयं उसे उठाकर नहीं फेंक सकते थे, अतः वह रामदास रैदास के घर गए. उससे मृत गाय को उठाकर गांव से बाहर फेंकने के लिए कहा. वह तैयार हो गया, परन्तु उसी समय रामदास का बेटा वहां आ गया. वह शहर में पढ़ता था और देश के हालात से अवगत था.
मामला समझकर पंडितजी से बोला, ‘‘पंडितजी, एक बात बताइए, आप गाय को क्या मानते हैं?’’
पंडित जी पहले तो चौंके, फिर संभलकर बोले, ‘‘गाय हमारी माता है.’’
‘‘गाय आपकी माता है, तो आप स्वयं उसका दाह-संस्कार क्यों नहीं करते?’’
‘‘क्या मतलब?’’ पंडित जी हैरान रह गये.
‘‘मतलब बहुत साफ है. गाय आपकी मां है, तो उसकी अंतिम क्रिया आप ही करेंगे. हम क्यों करेंगे? आप लोगों ने जगह-जगह गौ रक्षक समितियां खोल रखी हैं. फिर मृत गाय को उठाने के लिए हमारे पास क्यों आए हैं?
वह आपकी माता है, आप ही उसे उठाइए...फेंकिए या जलाइए. हम आपकी माता को क्यों हाथ लगाएं. आप कहते हैं कि हम लोगों की छाया पड़ने मात्र से आप अपवित्र हो जाते हैं. तब अगर हम आपकी माता को छुएंगे, तो क्या पाप के भागी नहीं बनेंगे.
आप अपने हाथों अपनी माता का अंतिम संस्कार करके उसे स्वर्ग भेजिए और हमें नर्क जाने से बचाइए.’’
पंडितजी के पास कोई उत्तर नहीं था. वह पिटा हुआ-सा मुंह लेकर घर लौट आए.
-राकेश भ्रमर,
रचनाकार