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Tuesday, June 5, 2018

दहलीज़.....सीमा "सदा" सिंघल


"दहलीज़"
संस्कारों की भाषा
सभ्यता की दहलीज़ लांघने से पहले
हर शब्द के आगे
एक लक्ष्मण रेखा खींच देती है
...
संवाद मन का मन से
कभी मौन रहकर,
कभी आंखों की भाषा पढ़ती आँखे
बिना कुछ कहे
कितनी ही बातों को पहुँचाते
ये मन के तार इक दूजे तक
दूरियाँ ऐसे क्षणों में बेमानी हो जाती
...
स्मृतियों के आँगन में
जब भी ख्यालों की छुपन-छुपाई होती
कोई अपना पकड़ा जाता
लेते हुये हिचकी :)
बेसबब सबका ध्यान अपनी ओर खींचता
वहाँ भी शब्दों का कोई काम नहीं होता
बस क्षण भर का अल्पविराम होता,
सारी स्मृतियाँ तितर-बितर हो
अपनी मैं का दायरा बनाती
साथ हँसती मुस्कराती
कभी गुनगुनाते हुए कोई गीत
एक दूजे का लिये हाथ में हाथ
चलती जाती साथ - साथ
सभ्यता की दहलीज़ लांघने से पहले !!!!
-सीमा "सदा" सिंघल

Friday, September 22, 2017

अहसासों की शैतानियाँ ...सीमा "सदा"


खूबसूरत से अहसास, 
शब्‍दों का लिबास पहन 
खड़े हो जाते जब
कलम बड़ी बेबाकी से 
उनको सजाती संवारती 
कोई अहसास 
निखर उठता बेतकल्‍लुफ़ हो 
तो कोई सकुचाता 
.... 
अहसासों की शैतानियाँ 
मन को मोह लेने की कला, 
किसी शब्‍द का जादू 
कर देता हर लम्‍हे को बेकाबू 
खामोशियाँ बोल उठती 
उदासियाँ खिलखिलाती जब 
लगता गुनगुनी धूप 
निकल आई हो कोहरे के बाद 
अहसासों के बादल छँटते जब भी 
कलम चलती तो फिर 
समेट लाती ख्‍यालों के आँगन में 
एक-एक करके सबको !!!!
-सीमा "सदा"

Wednesday, December 28, 2016

कुछ ईमानदार से शब्द.....सीमा "सदा" सिंघल


कुछ ईमानदार से शब्द
मेरी कलम से जब भी उतरते
मुझे उन शब्दों पर बस
फ़ख्र करने का मन करता
ईमानदारी व्यक्तित्व की हो या फिर
शब्दों की हमेशा प्रेरक होती है
व्यक्तित्व अनुकरणीय होता है
और शब्द विस्मरणीय !
....
ऐसे ही सहानुभूति भरे शब्द
कभी जब वक़्त बुरा होता है
हालातों से
समझौता करने की बात होती है
तो ये शब्द कब हौसला बन जाते हैं
पता भी नहीं चलता
सिर पर आशीष बन ठहर जाते हैं !!
...
चुनौतियां सबके जीवन में आती हैं
हाँ उनसे कोई सबक लेता है
तो कोई उन्हें आड़े हाथों लेता है
या फिर करता है कोई
उनसे जीतने के लिए संघर्ष !!!

-सीमा "सदा" सिंघल