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Saturday, October 20, 2018

शब्द... राजेन्द्र जोशी


लड़ते हैं, झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं

डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,

कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.

मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.
- राजेन्द्र जोशी


Friday, September 12, 2014

ये शब्द मेरी धरोहर हैं .........यशवन्त यश©










शब्द !
जो बिखरे रहते हैं
कभी इधर
कभी उधर
धर कर रूप मनोहर
मन को भाते हैं
जीवन के
कई पलों को साथ लिये
कभी हँसाते हैं
कभी रुलाते हैं ....
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।

~यशवन्त यश©