
लड़ते हैं, झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं
डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,
कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.
मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.
- राजेन्द्र जोशी