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Friday, April 12, 2019

टीस....विजय शंकर प्रसाद

बिन मौसम बारिश का पानी,
कागज की नैया किसकी दीवानी ?

नभ के पत्थर धरा पर कहानी ,
कठोर गड्ढा सड़क पर विवश  जवानी ।

बचपन की याद और मौन वाणी, 
बुढापा तक तो बोल उठा ज्ञानी ।

नदी रचें यात्रा में न आनाकानी,
सिंधु तक जा न शेष मनमानी ।।

प्रकृति तो नहीं कभी भी बेपानी,
गुलाब और शूल से प्रकट नादानी ।

धूल,कीचड़,हवा भी है खानदानी,
धूप और पसीना की भी  मेहरबानी ।।

कुछ तो रहने दो अपनी निशानी,
तनातनी में हर आहट है गुमानी ।

निर्मल निशा भी  सरल नहीं अनजानी , 
तन- मन में पीड़ादायक है भाव बदजुबानी ।‌‌।

आह से वाह रे चाह प्राणी,
अश्क और इश्क क्या स्वप्न अज्ञानी ??

गुलाम की टीस भी पुरानी ,
अभिसारिका अब क्या है ठानी ???

- विजय शंकर प्रसाद.