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Friday, December 28, 2018

अश्रु नीर.....दीपा जोशी

यह नीर नही
चिर स्नेह निधि
निकले लेन
प्रिय की सुधि

संचित उर सागर
निस्पंद भए
संग श्वास समीर
नयनों में सजे

युग युग से
जोहें प्रिय पथ को
भए अधीर
खोजन निकले

छलके छल-छल
खनक-खन मोती बन
गए घुल रज-कण
एक पल में
-दीपा जोशी

Monday, August 27, 2018

बैरी उर............दीपा जोशी

बीते युग
पल-पल, गिन-गिन,
शिथिल हुई हर श्‍वास
धड़क उठा बैरी उर फिर
सुनकर किसकी पदचाप?

बह गया
रिम-झिम, रिम-झिम,
गहन घन-संताप
सजल हुआ बैरी उर फिर
सुनकर क्‍यूँ मेघ मल्‍लार?

बुझ गए
झिल-मिल, झिल-मिल,
कामनाओं के दीप
धधक उठा बैरी उर फिर
सुनकर क्‍यूँ मिलन गीत?

-दीपा जोशी