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Saturday, July 13, 2019

माँ तेरा बचपन देख आया हूँ .... शिवनाथ कुमार


माँ तेरा बचपन देख आया हूँ 
माँ तुझे खेलता देख आया हूँ 
मैंने देखा तुम्हें 
अपनी माँ की गोद में रोते 
देखा तुम्हें थोड़ा बड़ा होते 
मिटटी सने हाथ देखे तुम्हारे 
खिलौने भरे हाथ देखे तुम्हारे 
तुम्हारी मासूम हँसी देखी 
तुम्हारा रोना देखा 
पापा का तुमपर बरसता प्यार देखा 
माँ का तुम्हारे लिए दुलार देखा 
तुम्हें पग पग बढ़ते देखा 
मेंहदी लगे तेरे हाथों में 
शादी के जोड़े में 
सजा श्रृंगार देखा 
आँखों में विदाई की पीड़ा 
माँ पापा भाई बहन अपनों से 
दूर जाने की पीड़ा 
तेरा अलग बनता एक संसार देखा 
तुम्हारी नयी दुनिया देखी 
पराये थे जो कल तक 
उनके लिए अपनेपन का भाव देखा 
लाखों दर्द छुपाए 
जिम्मेदारियों को ढोने का अंदाज देखा
ससुराल में रहकर भी  
मायका के लिए अटूट प्यार देखा 
माँ फिर मैंने खुद को देखा 
तुम्हारी गोद में 
तुम्हारी ममतामयी गोद में
तुम्हें मुझे खिलाते हुए  
और माँ 
अब तुम मुझे देख रही हो 
खेलते हुए 
बड़े होते हुए 
बूढ़े होते हुए !


लेखक परिचय - शिवनाथ कुमार 

Saturday, November 3, 2018

माँ है अनुपम....डॉ. कनिका वर्मा

माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत


माँ ने नीर बन
मेरी जड़ों को सींचा
और उसी पानी से
मेरे कुकर्म धोए


माँ ने वायु बन
मेरे सपनों को उड़ान दी
और उसी हवा से
मेरे दोषों को उड़ा दिया


माँ ने अग्नि बन
मेरी अभिलाषाओं को ज्वलित किया
और उसी अनल में
मेरी वासनाओं को दहन किया


माँ ने वसुधा बन
मेरी आकांक्षाओं का पालन किया
और उसी भूमि में
मेरे अपराधों को दबा दिया


माँ ने व्योम बन
मेरी आत्मा को ऊर्जित किया
और उसी अनन्त में 
मुझे बोझमुक्त किया


माँ है अनुपम
माँ है अद्भुत

-डॉ. कनिका वर्मा