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Friday, June 22, 2018

रहम मेरे यार कर.......श्वेता

मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर
पलकों की दुनिया में जी भर दीदार कर

न देख मेरे दर्द ऐसे बेपर्दा हो जाऊँगी
न गिन जख़्म दिल के,रहम मेरे यार कर

बेअदब सही वो क़द्रदान है आपके 
न तंज की सान पर लफ़्ज़ों को धार कर

और कितनी दूर जाने आख़िरी मुक़ाम है
छोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर

चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
 ज़िंदा ख़ुद को कहते हो,ज़मीर अपने मारकर
-श्वेता सिन्हा

Thursday, July 17, 2014

तो घर नहीं लौटी..........ज़हीर कुरेशी

 















मैं जानता हूं कि
फिर उम्र भर नही लौटी
नदी पहाड़ से बिछुड़ी
तो घर नहीं लौटी।

लहर ने वादा किया था कि
तट को छुएगी ज़रूर,
है तट प्रतीक्षा में,
लहर नहीं लौटी।

खिले हजारों की संख्या में
फूल सूर्यामुखी,
फिर उस तरह की
कभी दोपहर नहीं लौटी।

इतना तो तय था कि
अस्मत लुटा के लौटेगी,
सुबह की भूली
अगर रात भर नहीं लौटी।

वो कर रही है परिस्कार
भूल अपनी का,
उधर से चल पड़ी थी,
इधर नहीं लौटी।

विचारने के अलावा भी
क्या किया जाए,
हमारी आँखो तलक नींद
अगर नहीं लौटी।

मनुष्य-लोक को दौड़ा
तो स्वर्ग-लोक गए,
वहां पहुंचने की
अब तक खबर नहीं लौटी।

-ज़हीर कुरेशी

स्रोतः मधुरिमा

Sunday, January 19, 2014

धूप और छांव की दोस्ती अज़ब गुजरी....ज़हूर नज़र

* फ़स्ले-गुल *
हर घड़ी कयामत थी, ये न पूछ कब गुज़री
बस यी गनीमत है, तेरे बाद शब गुज़री

कुंजे-गम में एक गुल भी न खिल सका पूरा
इस बला की तेज़ी से सरसरे-तरब गुज़री

तेरे गम की खुशबू से ज़िस्मों-ज़ां महक उट्ठे
सांस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुजरी

एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम-तुम
धूप और छांव की दोस्ती  अज़ब गुजरी

जाने क्या हुआ हमको अब के फ़स्ले-गुल में भी
बर्गे-दिल नहीं लरज़ा, तेरी याद जब गुज़री

बेक़रार, बेकल है ज़ां सुकूं के सहरा में
आज तक न देखी थी ये घड़ी जो अब गुजरी

बादे-तर्के-उलफ़त भी यूं न जिए, लेकिन
वक़्त बेतरह बीता,उम्र बेसबब गुज़री

किस तरह तराशोगे, तुहमते-हवस हमपर
ज़िन्दगी हमारी तो सारी बेतलब गुज़री

सरसरे-तरबः आनंद की हवा, फ़स्ले-गुलः वसंत ऋतु,
बर्गे-दिलः दिल का पता, बादे-तर्के-उलफ़तः प्रेम विच्छेदन का पश्चात, 
तुहमते-हवसः लोलुपता का आरोप

-ज़हूर नज़र
जन्मः 22 अगस्त, 1923, मिंटगुमटी, साहीवाल

Tuesday, September 3, 2013

चलाए तीर जितने सब हुए अब बेअसर उनके..........डॉ. लोक सेतिया 'तन्हा'


उड़ाने ख्वाब में भरते, कटे जब से हैं पर उनके
अभी तक हौसला बाकी, नहीं झुकते हैं सर उनके।

यही बस गुफ्तगू करनी, अमीरों से गरीबों ने
उन्हें भी रौशनी मिलती, अंधेरों में घर उनके।

उन्हें सूली पे चढ़ने का तो कोई गम नहीं था पर
यही अफसोस था दिल में, अभी बाकी समर उनके।

कहां पूछा किसी ने आज तक साकी से पीने को
रहे सबको पिलाते पर, रहे सूखे अधर उनके।

हुई जब शाम रुक जाते, सुबह होते ही चल देते,
जरा कुछ देर बस ठहरे, नहीं रुकते सफर उनके।

दिए कुछ आंकड़े सरकार ने क्या-क्या किया हमने
बढ़ी गिनती गरीबों की, मिटा डाले सिफर उनके।

हमारे जख्म सारे वक्त ने ऐसे भरे 'तन्हा'
चलाए तीर जितने सब हुए अब बेअसर उनके।

-डॉ. लोक सेतिया 'तन्हा'

Sunday, August 4, 2013

धूप का साथ गया..........वज़ीर आगा



धूप का साथ गया, साथ निभाने वाला
अब कहां आएगा वो, लौट के आने वाला

रेत पर छोड़ गया, नक्श हजारों अपने
किसा पागल की तरह, नक़्श मिटाने वाला

सब्ज शाखें कभी, ऐसे तो नहीं चीखती हैं
कौन आया है, परिंदो को डराने वाला

आरिज-ए-शाम का सुख़ी ने, फ़ाश उसे
पर्दा-ए-अब्र में था, आग लगाने वाला

सफर-ए-सब्र का तक़ाजा है, मेरे साथ रहो
दश्त पुर-हौल है, तूफ़ान है आने वाला

मुझको दर-पर्दा सुनाता रहा, किस्सा अपना
अगले वक़्तों का, हिकायत सुनाने वाला

शबनमी घास, घने फूल, लरजती किरणे
कौन आया है, ख़ज़ानों को लुटाने वाला

अब तो आराम करें, सोचती आंखे मेरी
रात का आखिरी तारा है, जानेवाला

-वज़ीर आगा
जन्मः18 मई, 1922, सरगोधा, पाकिस्तान
मृत्युः जन्मः07 सितम्बर, 2010, लाहोर पाकिस्तान
............................................
शब्दार्थ
सब्जः हरी
आरिज-ए-शामः शाम के गाल
पर्दा-ए-अब्रः बादल के परदे


आज दैनिक भास्कर के रसरंग अंक में छपी रचना

Monday, March 26, 2012

कांपते लब , आँख नम , कहा मुस्कुराकर 'अलविदा' ........सचिन अग्रवाल 'तन्हा'

तजरुबा जो ज़िन्दगी का याद था वो लिख दिया
ज़ेहन ओ दिल में कुछ जमा 'अवसाद' था वो लिख दिया ..........

कांपते लब , आँख नम , कहा मुस्कुराकर 'अलविदा'
एक लम्हा जो बहुत बर्बाद था वो लिख दिया..........

कागजों पर कैसे कोई ज़िन्दगी लिखता भला
हाँ मगर जो कुछ तुम्हारे बाद था वो लिख दिया ..............

कम नज़र आती है अब पत्थर उठाने की उम्मीद
सीने में थोडा बहुत 'फौलाद' था , वो लिख दिया ......................

----------सचिन अग्रवाल 'तन्हा'


Tuesday, March 20, 2012

इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं............हेमज्योत्सना 'दीप'

सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं
ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं

जिन आँखों में हँसी का धोखा हो
उनके मोती चुराने ज़रूरी हैं

माना के तबाह किया उसने मुझे,
मगर रिश्ते निभाने ज़रूरी हैं

ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए
मरहम इन पर लगाने ज़रूरी हैं

माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन,
पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं

इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं,
इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं

महफ़िल में रंग ज़माने के लिए,
दर्द के गीत गुनगुनाने ज़रूरी है

रात रोशन हुई जिनसे सारी,
सुबह वो 'दीप' बुझाने ज़रूरी हैं।

--------हेमज्योत्सना 'दीप'

Friday, February 17, 2012

दुनिया से खो गया हूँ तुम्हारे ख़याल में...............बहज़ाद लखनवी


अब है ख़ुशी ख़ुशी में न ग़म है मलाल में
दुनिया से खो गया हूँ तुम्हारे ख़याल में

मुझ को न अपना होश न दुनिया का होश है
मस्त होके बैठा हूँ तुम्हारे ख़याल में

तारों से पूछ लो मेरी रुदाद-ए-ज़िन्दगी
रातों को जागता हूँ तुम्हारे ख़याल में

दुनिया को इल्म क्या है ज़माने को क्या ख़बर
दुनिया भुला चुका हूँ तुम्हारे ख़याल में

दुनिया खड़ी है मुन्तज़िर-ए-नग़्मा-ए-अलम
'बेहज़द' चुप खड़े हैं किसी के ख़याल में...


----बहज़ाद लखनवी

प्रस्तुतिकरणः श्याम सुन्दर सारस्वत

Thursday, January 19, 2012

ये अशआर भी है नम...............देवी नागरानी

बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
आँखें भी रो रही हैं, ये अशआर भी है नम।

जिस शाख पर खड़ा था वो, उसको ही काटता
नादां न जाने खुद पे ही करता था क्यों सितम।

रिश्तों के नाम जो भी लिखे रेगज़ार पर
कुछ लेके आँधियाँ गई, कुछ तोड़ते हैं दम।

मुरझा गई बहार में, वो बन सकी न फूल
मासूम-सी कली पे ये कितना बड़ा सितम।

रोते हुए-से जशन मनाते हैं लोग क्यों
चेहरे जो उनके देखे तो, असली लगे वो कम।

---------देवी नागरानी

Tuesday, January 3, 2012

छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा.........................मीना कुमारी


चाँद तन्हा है आस्माँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा

जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकाँ तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा

----------मीना कुमारी

Friday, December 30, 2011

चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक............कुंवर बेचैन


दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक

हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक

जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक

-कुंवर बेचैन

Wednesday, December 28, 2011

मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ................कातिल सैफ़ी

अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर

बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको

अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा

रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ 

----------कातिल सैफ़ी

‘मीरो-ग़ालिब’ की शाइरी रखना........................चाँद शेरी

अपने जीवन में सादगी रखना
आदमियत की शान भी रखना

डस न ले आस्तीं के सांप कहीं
इन से महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना

हों खुले दिल तो कुछ नहीं मुश्किल
दुश्मनों से भी दोस्ती रखना

मुस्तक़िल रखना मंज़िले-मक़सूद
अपनी मंज़िल न आरज़ी रखना

ए सुख़नवर नए ख्यालों की
अपने शेरों में ताज़गी रखना

अपनी नज़रों के सामने ‘शेरी’
‘मीरो-ग़ालिब’ की शाइरी रखना

---------चाँद शेरी

Friday, December 23, 2011

हुस्न ओ शबाब धोका है ........................आदिल रशीद तिलहरी

ये चन्द रोज़ का हुस्न ओ शबाब धोका है
सदाबहार हैं कांटे गुलाब धोका है

मिटी न याद तेरी बल्कि और बढती गई
शराब पी के ये जाना शराब धोका है

तुम अपने अश्क छुपाओ न यूँ दम ए रुखसत
उसूल ए इश्क में तो ये जनाब धोका है

ये बात कडवी है लेकिन यही तजुर्बा है
हो जिस का नाम वफ़ा वो किताब धोका है

तमाम उम्र का वादा मैं तुम से कैसे करूँ
ये ज़िन्दगी भी तो मिस्ल ए हुबाब धोका है

पड़े जो ग़म तो वही मयकदे में आये रशीद
जो कहते फिरते थे सब से "शराब" धोका है .... 




















----आदिल रशीद तिलहरी

Sunday, December 11, 2011

तुझको यूँ चाहा है....................कैफे आजमी ब्लाग "दरीचा" से

तुझको यूँ चाहा है

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है

तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

बेख़ता रूठ गई रूठ के दिल तोड़ दिया

क्या सज़ा देती अगर कोई ख़ता हो जाती

हाथ फैला दिये ईनाम-ए-मोहब्बत के लिये
ये न सोचा कि मैं क्या, मेरी मोहब्बत क्या है
रख दिया दिल तेरे क़दमों पे तब आया ये ख़याल
तुझको इस टूटे हुए दिल की ज़रूरत क्या है

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है
तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

तेरी उल्फ़त के ख़रीदार तो कितने होंगे
तेरे गुस्से का तलबगार मिले या ना मिले
लिख दे मेरे ही मुक़द्दर में सज़ायें सारी
फिर कोई मुझसा गुनहगार मिले या ना मिले

तुझको यूँ देखा है, यूँ चाहा है, यूँ पूजा है
तू जो पत्थर की भी होती तो ख़ुदा हो जाती

----कैफे आजमी

प्रस्तुतिः "ज़नाब वसीम अकरम"

ब्लाग "दरीचा" 

http://dareecha.blogspot.com/ 

                                                  

Thursday, December 8, 2011

कभी कभी आईना भी झूठ कहता है.................सिकन्दर खान

कभी कभी आईना भी झूठ कहता है
अकल से शक्ल जब मुकाबिल हो
पलडा अकल का ही भारी रहता है

अपनी खूबसूरती पे ना इतरा मेरे मह्बूब
कभी कभी आईना भी झूठ कहता है

जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती है
मुर्दा है जो खामोश हो के जुल्म सहता है

काट देता है टुकडों मे संग-ए-मर्मर को
"सिकंदर" पानी भी जब रफ़्तार से बहता है.

ईशक़ में चोट खा के दीवाने हो जाते हैं जो
नशा उनपे ता उमर मोहब्बत का तारी रहता है

अकल से शक्ल जब मुकाबिल हो
पलडा अकल का ही भारी रहता है
---------सिकन्दर खान
http://forums.abhisays.com/archive/index.php/t-1587.html 

Thursday, December 1, 2011

जलाया जाएगा या दफ़न होगा .................सचिन अग्रवाल "तन्हा"

सियासत के तिलिस्मों का हरेक मंतर बताता है
कहाँ कब कितना गिरना है ये क़द्दावर बताता है

जलाया जाएगा या दफ़न होगा मौत आने पर

उसे पूछो जो इन्सां खुद को सेकूलर बताता है ............

कहाँ थे राम, क्या थे राम, ये हम क्या बताएँगे
ये बातें तैरकर पानी पे हर पत्थर बताता है ...............

बहुत तफ़सील से देखी है ये दुनिया तमाम उसने
वो बूढा नीम के पत्तों को जो शक्कर बताता है .................

एक और मतला -

ज़माने भर में हर कोई उसे शायर बताता है
वो एक पागल जो दुनिया को अजायबघर बताता है .............
---------सचिन अग्रवाल 'तन्हा'




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बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना .................परवीन शाकिर

बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मैं समन्दर देखती हूँ तुम किनारा देखना

यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना

किस शबाहत को लिये आया है दरवाज़े पे चाँद
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना

आईने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिये
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
--------परवीन शाकिर
प्रस्तुति..........ज़ारा रिज़वी

बड़ी बदनाम है मेरी मोहब्बत तेरे वास्ते..........सत्यम शिवम।

कभी जो देख लो तुम तो मेरी पहचान हो जाये,
तुम्हारी जुल्फ में ही रात से फिर शाम हो जाये।

बड़ी बदनाम है मेरी मोहब्बत तेरे वास्ते,

तू मेरा नाम ले ले तो मेरा फिर नाम हो जाये।

तरसती है नजर दीदार को बस देख ले तुमको,

कब्र में भी सब्र से फिर मुझे आराम हो जाये।

कहूँ तो क्या कहूँ हर लब्ज थोड़े फीके फीके है,

मेरी आँखों से जो तू पढ़ ले दिल का काम हो जाये।

हमे इतना ना बदलो कि कही बदलना आम हो जाये,

हमारे प्यार के चलते तुम्हारा भी नाम हो जाये।

मेरे साये में अब भी पलती है तन्हाईया तेरी,

मेरे आँसू कही बह बह के ना कोई जाम हो जाये।

चलो गर दूर तक चलना है मेरे दर्द संग हमदम,

कभी यह भी दवा मेरे मर्ज में नाकाम हो जाये।

यही तो है जो घुलता है मेरे इस रुह में हरदम,

कही ऐसा ना हो कल इसका भी कोई दाम हो जाये।


..........सत्यम शिवम।