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Wednesday, February 1, 2017

फिर से चांदी उग आई है...शम्भू नाथ

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अलौकिक आनंद अनोखी छटा।  
अब बसंत ऋतु आई है।  
कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती।  
पुरवा पंख डोलाई है।  

महक उड़ी है चहके चिड़िया।
भंवरे मतवाले मंडरा रहे हैं।  
सोलह सिंगार से क्यारी सजी है।  
रस पीने को आ रहे हैं  

लगता है इस चमन बाग में। 
फिर से चांदी उग आई है।। 
अलौकिक आनंद अनोखी छटा।  
अब बसंत ऋतु आई है।    

कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती।  
पुरवा पंख डोलाई है।

-शम्भू नाथ