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Thursday, July 11, 2019
Wednesday, July 31, 2013
सावन मेरे................'वीर'
लौटे नहीं हैं परदेस से साजन मेरे,
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे|
अब आये हो तो दर पर ही रुकना,
पांव ना रखना तुम आँगन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी ये गड़गड़ाहट, तेरी ये अंगडडाईयां,
इनसे मुख्तलिफ नहीं हैं मेरी तन्हाईयां,
चाहे तो बहा ले कुछ आंसूं दामन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी बूंदों से मेरी तिश्नगी ना मिटेगी,
तेरी कोशिशों से ये आग और बढ़ेगी|
तुझसे ना संभलेंगे तन मन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
--'वीर'
श्री वीरेंद्र शिवहरे 'वीर' की एक काफी पुरानी रचना
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