Showing posts with label मेहदी अब्बास रिज़वी. Show all posts
Showing posts with label मेहदी अब्बास रिज़वी. Show all posts

Tuesday, August 28, 2018

हाय रे बैरी सावन......मेहदी अब्बास रिज़वी

सारे  सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय रे बैरी  सावन में,
बहते  नाले  घर  में  ढह  गए  हाय। रे  बैरी सावन में।

पहले  तो  छप्पर  छानी  ही टप  टप टपका करते थे,
कच्ची  दीवारों  से  सट  कर   दुखिया  बैठे  रहते  थे,

आज महल भी पल में ढह  गए हाय रे बैरी सावन में।
सारे  सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय रे  बैरी सावन में।

कवियों ने कविता  में लिक्खा  सावन मस्त महीना है,
जो  सावन  को न समझे उस का जीना क्या जीना है,

जाने  कौन  सी धुन  में कह गए हाय रे बैरी सावन में।
सारे  सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय  रे बैरी सावन में।

सड़कों  में  गड्ढे  हैं  पुल  पर   नदियां  झूम  बहती   हैं,
सावन  मास  तुम्हारे  हमले  जनता   रो  रो  सहती  है,

सपने  देखे  थे  जो  रह  गए  हाय   रे  बैरी  सावन  में।
सारे  सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय  रे  बैरी सावन में।

कहीं  मौत  की  चीख़ें  उठती  कहीं  गृहस्ती  बहती  है,
आशाओं   पर   फिरता  पानी  साँसे  उखड़ी  रहती  हैं,

आंसू  ही  आँखों  में  रह  गए   हाय  रे  बैरी  सावन  में।
सारे  सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय  रे  बैरी  सावन  में।

जाओ सावन अब  न आना  दुखियों  के  संसार  में तुम,
न मिलना इस पार कभी और न मिलना उस पार में तुम,

प्रीत  विरीत के किस्से बह  गए  हाय  रे  बैरी  सावन  में।
सारे   सपने  ढह  गए  बह  गए  हाय  रे  बैरी  सावन  में।

-मेहदी अब्बास रिज़वी
  ” मेहदी हललौरी “