पेंचर हुए टायर में
हवा भरते देखने की साक्षी
बचपन में रह चुकी हूँ।
इसलिए आजतक
किसी के नुकीले शब्द,
किसी की बेवजह घूरती निगाहें,
बेवजह के ठहाके और रुदन भी
मेरा आत्मबल-मनोबल नहीं गिरा सके।
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तूफ़ानों में हवा का रुख देखा है, देखा है
तो तूफ़ानों में हवा बन जाओ, लहराओ ऊंचे ऊंचे
जितना ऊंचे जा सकें जाओ।
तूफ़ान ख़त्म होने पर
धीरे धीरे ज़मीन पर आ जाओ
अगले तूफ़ान की तैयारी में
अपने भीतर उड़ने की क्षमता लाओ
जब भी आ जाए तूफ़ान
बस हवा बन जाओ।
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एक समय था,
कुछ न था,
बस अरमान ही थे।
एक समय है,
सब कुछ है,
अरमान नदारद हैं।
-सविता चड्ढा