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Sunday, July 15, 2018

क्षणिकाएँ....सविता चड्ढा


पेंचर हुए टायर में
हवा भरते देखने की साक्षी 
बचपन में रह चुकी हूँ।

इसलिए आजतक 
किसी के नुकीले शब्द,
किसी की बेवजह घूरती निगाहें,
बेवजह के ठहाके और रुदन भी
मेरा आत्मबल-मनोबल नहीं गिरा सके।  

-*-*-
तूफ़ानों में  हवा का रुख देखा है, देखा है 
तो तूफ़ानों में हवा बन जाओ,  लहराओ ऊंचे ऊंचे
जितना ऊंचे जा सकें जाओ।
तूफ़ान ख़त्म होने पर 
धीरे धीरे ज़मीन पर आ जाओ
अगले तूफ़ान की तैयारी में
अपने भीतर उड़ने की क्षमता लाओ 
जब भी आ जाए तूफ़ान 
बस हवा बन जाओ। 

-*-*-
एक समय था,
कुछ न था,
बस अरमान ही थे।

एक समय है,
सब कुछ है,
अरमान नदारद हैं। 

-सविता चड्ढा

Saturday, June 24, 2017

''शेष क्या रहना है''....सविता चड्ढा













भान हो जाता है जब यह 
''शेष क्या रहना है''
जीवन और यथार्थ,
यथार्थ और  कल्पना,
कल्पना और सच के अंतर 
दृष्टव्य हो जाते है जब,
तब शून्य रह जाती है
मन की लहरों की चंचलता,
नेति नेति का ज्ञान हो जाता है ,
टूट जाती हैं व्यर्थ सीमाएं
बंधन रहित  हो जाता  तन मन ।
तब शांतचित्त नीला आसमान,
हरी भरी फूलों से लदी सारी धरती,
चांद, तारें,सूरज और 
विश्व के सभी नक्षत्र,
मेरी धरोहर हो जाते हैं।








-सविता चड्ढा
अनहद कृति से