दिल जो दीवाना नहीं आखिर को दीवाना भी था
भूलने पर उस को जब आया तो पहचाना भी था
जानिया किस शौक में रिश्ते बिछड़ कर रह गए
काम तो कोई नहीं था पर हमें जाना भी था
अजनबी-सा एक मौसम एक बेमौसम-सी शाम
जब उसे आना नहीं था जब उसे आना भी था
जानिए क्यूँ दिल कि वहशत दरमियां में आ गयी
बस यूँ ही हम को बहकना भी था बहकाना भी था
इक महकता-सा वो लम्हा था कि जैसे इक ख्याल
इक ज़माने तक उसी लम्हे को तड़पना भी था
- जॉन एलिया
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर 👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.1.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3318 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह बहुत सुंदर
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