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Friday, November 16, 2018

नई आस्तीन - शकील आज़मी


न मेरे ज़हर में तल्ख़ी रही वो पहली सी 
बदन में उस के भी पहला सा ज़ाइक़ा/ज़ायका न रहा 

हमारे बीच जो रिश्ते थे सब तमाम हुए 
बस एक रस्म बची है शिकस्ता पुल की तरह

कभी-कभार जवाब भी हमें मिलाती है 
मगर ये रस्म भी इक रोज़ टूट जाएगी 

अब उस का जिस्म नए साँप की तलाश में है 
मिरी हवस भी नई आस्तीन ढूँढती है 
- शकील आज़मी