Saturday, August 31, 2013

विरह-वेदना..................... शैफाली गुप्ता



1)  
चांद सजाऊं
 या आकाश बिछाऊं
न पाती तुम्हें

2)
 
तुम हो आत्मा
 तुम्हीं हो धड़कन
फिर भी कहां?

3)
 
नीला आकाश- 
उसके विस्तार में 
डूबती-सी मैं

4)

क्या याद तुम्हें 
आसमान का रंग 
नीलिमा-सी मैं

5)

स्याही का रंग 
उकेरती पन्नों पे 
सोचती तुम्हें

6)

स्पर्श तुम्हारा
 स्पंदन बन जीता 
आत्मा में मेरी

7)

रंग-विहीन 
जो जीवन हो मेरा
 रंग तुम्हीं तो

8)
 
तेरा न होना 
या तेरा क्यूं न होना 
प्रश्न ये मेरा

9)

नए-पुराने 
शब्द-ग्रंथ तुम्हीं हो 
फिर भी कहां।


--शैफाली गुप्ता
एन.आर. आई.

Friday, August 30, 2013

फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार..............भारती दास



अभी अचानक नहीं है निकला,
मानव हृदय को जिसने कुचला,
विविध रूपधर भर धरती में,
अवलोक रहा है वारम्बार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है,
जन है जग है मोह कई है,
कला नहीं है भाव विवेचन,
दयनीय है जीवन के सार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

कौन सन्देशा बांटें घर घर,
किसके भरोसे चले हम पथ पर,
किसके जीवन का हो उपकार,
नष्ट-भ्रष्ट है ब्यक्ति संसार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

जोर-शोर से कभी चिल्लाकर,
कभी हवा में महल बनाकर,
फिर विलीन हो जाते सहसा,
घोष भरा विप्लव अपार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

निर्भयता थी जिनकी विभूति,
पावनता अबोध थी जिनकी,
जो शिवरूप सत्य था सुन्दर,
विखर गए जग के श्रृंगार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

आह्लाद कभी तो अश्रुविशाद,
वेद विख्यात मिथ्या नहीं बात,
काल को नहीं किसी की याद,
जगत की कातर चीत्कार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

लूटकर परसुख सदा निरंतर,
जीविका हरते मूढ़ सा मर्मर,
मानव मन कुछ तो चिंतन कर,
जीवन के सन्देश थे चार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

जीवन हो रहा उपेक्षित,
निज लक्ष्य कर्म दृष्टि से वर्जित,
प्रेरणाशक्ति से क्यूँ है वंचित,
कल को रच दो  नवसंसार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

गिनके हैं सबके दिनचार,
फिर भी मची है हाहाकार,
युग-युग के अमृत आदर्श,
विम्बित करती है जीवन भार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

कर्मठ विनम्र मंगलपथ साधक,
सत्य न्याय सदगुण आराधक,
जन जन बने गर आविष्कारक,
लोकहित का जो करे विस्तार,
फ़ैल रहा  है भ्रष्टाचार |

हे विधि फिर सुवासित कर दो,
इस जग को अनुशासित कर दो,
हे दयामय फिर लौटा दो,
आंनंद उमंग और शिष्टाचार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार ‌‍ |

--भारती दास

Thursday, August 29, 2013

हम आपकी नज़रों में जीते हैं...........अस्तित्व "अंकुर"


तुम्हारे साथ गुज़री याद के पहरों में जीते हैं,
हमें सब लोग कहते हैं कि हम टुकड़ों में जीते हैं,

हमें ताउम्र जीना है बिछड़ कर आपसे लेकिन,
बचे लम्हों की सौगातें चलो कतरों में जीते हैं,
 

वही कुछ ख्वाब जिनको बेवजह बेघर किया तुमने,
दिये उम्मीद के लेकर मेरी पलकों पे जीते हैं,

तुम्हारी बेरुखी पत्थर से बढ़कर काम आती है,
मेरे अरमान फिर भी काँच के महलों में जीते हैं,

जमाने की नज़र में हो चुके हैं खाक हम लेकिन,
हमें मालूम है हम आपकी नज़रों में जीते हैं,

मेरे हर शेर पर “अंकुर” यहाँ कुछ दिल धड़कते हैं,
यहाँ सब ज़िंदगी को हो न हो खतरों में जीते हैं,

-अस्तित्व "अंकुर"
सौजन्यः फेसबुक पेज तेरे नाम से

Wednesday, August 28, 2013

उमड़ते आते हैं शाम के साये..........इब्ने इंशा


उमड़ते आते हैं शाम के साये
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?
 
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?

-इब्ने इंशा
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक 

इब्ने इंशा
जन्म: 15 जून,1927, फ़िल्लौर, जिला जालंधर, पंजाब
निधन: 11 जनवरी,1978, लन्दन, यू के


कुछ प्रमुख कृतिः    
इस बस्ती के एक कूचे में, चाँद नगर, दुनिया गोल है, 
उर्दू की आख़िरी किताब

ये रचना सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर
 

Tuesday, August 27, 2013

पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का लेबल लगा रहा है....सौजन्यः बलवीर कुमार


वेदों में ज्ञान-विज्ञान की बहुत सारी बातें भरी पड़ी हैं। आज का विज्ञान जो खोज रहा है वह पहले ही खोजा जा चुका है। बस फर्क इतना है कि आज का विज्ञान जो खोज रहा है उसे वह अपना आविष्कार बता रहा है और उस पर किसी पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का लेबल लगा रहा है। 

हालांकि यह इतिहास सिद्ध है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान पहुंचा और यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर जो आविष्कार किए और सिद्धांत बनाए उससे आधुनिक विज्ञान को मदद मिली। यहां प्रस्तुत है भारत के उन दस महान ऋषियों और उनके आविष्कार के बारे में संक्षिप्त में जानकारी। दसवें ऋषि के बारे में जानकार निश्चित ही आपको आश्चर्य होगा। 

1.  भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक
परमाणु सिद्धांत के आविष्कारक : परमाणु बम के बारे में आज सभी जानते हैं। यह कितना खतरनाक है यह भी सभी जानते हैं। आधुनिक काल में इस बम के आविष्कार हैं- जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर। रॉबर्ट के नेतृत्व में 1939 से 1945 कई वैज्ञानिकों ने काम किया और 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया।हालांकि परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है, लेकिन उनसे भी 2500 वर्ष पर ऋषि कणाद ने वेदों वे लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।

भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे।

विख्यात इतिहासज्ञ टीएन कोलेबु्रक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे।


2.  2500 वर्ष पूर्व वायुयान की खोज भारद्वाज ऋषि ने कर ली थी। 
ऋषि भारद्वाज : राइट बंधुओं से 2500 वर्ष पूर्व वायुयान की खोज भारद्वाज ऋषि ने कर ली थी। हालांकि वायुयान बनाने के सिद्धांत पहले से ही मौजूद थे। पुष्पक विमान का उल्लेख इस बात का प्रमाण हैं लेकिन ऋषि भारद्वाज ने 600 ईसा पूर्व इस पर एक विस्तृत शास्त्र लिखा जिसे विमान शास्त्र के नाम से जाना जाता है।

प्राचीन उड़न खटोले : हकीकत या कल्पना?


भारद्वाज के विमानशास्त्र में यात्री विमानों के अलावा, लड़ाकू विमान और स्पेस शटल यान का भी उल्लेख मिलता है। उन्होंने एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर उड़ान भरने वाले विमानों के संबंध में भी लिखा है, साथ ही उन्होंने वायुयान को अदृश्य कर देने की तकनीक का उल्लेख भी किया।



3.  बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता 
बौधायन : बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व में यूनानी ज्या‍मितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए जाते हैं।दरअसल, 2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।

शुल्व शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौधायन ने सुलझाया।


4. न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था
भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई., मृत्यु- 1179 ई.) : प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' में इसका उल्लेख भी किया है।गुरुत्वाकर्षण के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है, 'पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्वशक्ति से अपनी ओर खींच लेती है। इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है।' इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी में गुत्वाकर्षण की शक्ति है।

भास्कराचार्य द्वारा ग्रंथ ‘लीलावती’ में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जबकि लोगों को गुरुत्वाकर्षण, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी थी। 


5.   पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है।
 
पतंजलि : योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चर्चा में थे। पतंजलि के लिखे हुए 3 प्रमुख ग्रंथ मिलते हैं- योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रंथ। पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है। पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली दफे व्यवस्था दी और उसे चिकित्सा और मनोविज्ञान से जोड़ा। आज दुनियाभर में योग से लोग लाभ पा रहे हैं।पतंजलि एक महान चिकित्सक थे। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे- अभ्रक, विंदास, धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (195-142 ईपू) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) ने 5 वर्षों के अपने शोध का निष्कर्ष निकाला कि योगसाधना से कर्करोग से मुक्ति पाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है।
6.   दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया
आचार्य चरक : अथर्ववेद में आयुर्वेद के कई सूत्र मिल जाएंगे। धन्वंतरि, रचक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक चिकित्साशास्त्र दिया। आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। ऋषि चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चरक संहिता' लिखा था। उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया।

चरक एवं सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त करके 3 खंडों में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे। उन्होंने दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया, साथ ही उन्होंने अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवनशैली का वर्णन किया जिसमें कि कोई रोग और शोक न हो।

आठवीं शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा। चरक के ग्रंथ की ख्याति विश्वव्यापी थी।

7.  जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत
 
महर्षि सुश्रुत : महर्षि सुश्रुत सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं। 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए।आधुनिक विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।

महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता है।

8. नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया
नागार्जुन : नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध हैं।रसायनशास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ-साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझ-बूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार कीं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' हैं।

नागार्जुन द्वारा विशेष रूप से सोना धातु एवं पारे पर किए गए उनके प्रयोग और शोध चर्चा में रहे हैं। उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर सतत 12 वर्ष तक संशोधन किया। नागार्जुन पारे से सोना बनाने का फॉर्मूला जानते थे। अपनी एक किताब में उन्होंने लिखा है कि पारे के कुल 18 संस्कार होते हैं। पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत के अनुसार ही रखा गया।

नागार्जुन की जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार इनका जन्म 2री शताब्दी में हुआ था तथा अन्य मतानुसार नागार्जुन का जन्म सन् 931 में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था। बौद्धकाल में भी एक नागार्जुन थे।

9.  अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। 
पाणिनी : दुनिया का पहला व्याकरण पाणिनी ने लिखा। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा का व्याकरणबद्ध किया। इनके व्याकरण का नाम है अष्टाध्यायी जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं। व्याकरण के इस महनीय ग्रंथ में पाणिनी ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं।अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।

इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था, जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के करीब तत्कालीन उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। हालांकि पाणिनी के पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ।

19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791- 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया। उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले। आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली। दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का योगदान है।

10.तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा
महर्षि अगस्त्य : महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। निश्चित ही बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया लेकिन एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की।

आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विधुत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-



संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
-अगस्त्य संहिता



अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा। 

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।

--सौजन्यः बलवीर कुमार

Monday, August 26, 2013

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं.....एक प्रचलित रचना


अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं,
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं,
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वेणुर्मधुरो रेनुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ,
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं,
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं,
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीचीर्मधुरा,
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं,
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा,
दलितं मधुरं फ़लितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

-एक प्रचलित रचना........
इस ब्लाग की 300वीं पोस्ट


कभी मोम बनकर पिघल गया कभी गिरते गिरते संभल गया
वो बन के लम्हा गुरेज़ का मेरे पास से निकल गया

उसे रोकता भी तो किस तरह वो सख्श इतना अजीब था !
कभी तड़प उठा मेरी आह से कभी अश्क से न पिघल सका

सरे-राह मे मिला वो अगर कभी तो नज़र चुरा के गुज़र गया
वो उतर गया मेरी आँख से मेरे दिल से क्यूँ न उतर सका

वो चला गया जहां छोड़ के मैं वहां से फिर ना पलट सका
वो संभल गया था 'फराज़' मगर मैं बिखर के ना सिमट सका

-अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़
जन्मः 14 जनवरी, 1931. कोहत, पाकिस्तान
मृत्युः 25 अगस्त, 2008. इस्लामाबाद, पाकिस्तान

ये रचना सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर से

Sunday, August 25, 2013

'अब्बू खां की बकरी' भी उन से अच्छी है...........सहबा जाफ़री


आज़ादी की कीमत उन चिड़ियों से पूछो
जिनके पंखों को कतरा है, आ'म रिवाज़ों ने
आज़ादी की कीमत, उन लफ़्ज़ों से पूछो
जो ज़ब्तशुदा साबित हैं सब आवाज़ों में

आज़ादी की क़ीमत, उन ज़हनों से पूछो
जिनको कुचला मसला है, महज़ गुलामी को
आज़ादी की क़ीमत, उस धड़कन से पूछो
जिसको ज़िंदा छोड़ा है, सिर्फ सलामी को

आज़ादी की क़ीमत उन हाथों से पूछो
जिनको मोहलत नहीं मिली है अपने कारों की
आज़ादी की क़ीमत उन आंखों से पूछो
जिनको हाथ नहीं आई है, रोशनी तारों की

जो ज़िंदा होकर भी भेड़ों सी हांकी जाती है
आज़ादी भी रस्सी बांध के जिनको दी जाती है
जिस्मों से तो बहुत बड़ी जो मन से बच्ची हैं
'अब्बू खां की बकरी' भी उन से अच्छी है...

-सहबा जाफ़री

Saturday, August 24, 2013

ये दुनिया मैंने बनाई है विश्वास नहीं होता..............बलवीर कुमार



तवायफ की मांग में सिंदूर,
लंगूर के हाथ में अंगूर।

बगुले की चोंच में हीरा,
ऊंट के मुहं में जीरा।

बंदरों के पास कार,
गधों के हाथ में सरकार।...

कैसे-कैसे कारनामे हो रहे हैं,
और आप रजाई ओढ़ के सो रहे हैं।

बोले प्रभु : मैं अपने काम में सिद्ध हस्त हूं,
पर आजकल थोड़ा व्यस्त हूं।
फिर भी दिन रात आगे बढ़ रहा हूं,
फिलहाल तो चार-पांच केस लड़ रहा हूं।

मैं बोल्योः
प्रभु ! महंगाई बहुत बढ़ रही है,
सलमान खान की लोकप्रियता की तरह
म्हारे माथे पर चढ़ रही है।
अक्षय कुमार की तरह ठंडा पीजिए और
एक बार फिर अवतार लीजिए।

बोले प्रभु : 
एक बार हम धरती पर विचरण करने निकले थे।
दो नेताओं ने हमारी जेब काट ली,
आधी-आधी दौलत दोनों पार्टियों ने बांट ली।


ये कलयुग है यहां देवताओं का वास नहीं होता।
ये दुनिया मैंने बनाई है विश्वास नहीं होता...

-बलवीर कुमार

Friday, August 23, 2013

चलो मोदी को नहीं लाते..................बलवीर कुमार


चलो मोदी को नहीं लाते हैं.....|
कोई और विकल्प बताते है.....||

चलो नेहरु को ले आते हैं, 
एक और पाकिस्तान बनाते हैं.....|

हम खून पसीना बहा कर आयकर चुकायेगे,
और वो अपना कोट विदेश में धुलवायंगे......||

चलो हाथी पर भरोसा जताते हैं, 
जो लडते हैं धर्म के नाम पर.....|
उन्हें जात के नाम पर लड़वाते हैं......||

चलो साइकल में हवा भरवाते हैं, 
शहर में जंगल राज चलवाते हैं.....|
अनपढ़ से आइयाशी और पढ़े लिखो से
रिक्शा चलवाते है.....||

या सर्वोतम विकल्प फिर से कांग्रेस को लाते हैं,
बच्चों से राहुल की जीवनी पढवाते हैं....|
आँखों पर पट्टी बांध कर खाई में कूद जाते है.......||

आज समझ आया क्यूँ अक्सर विदेशी,
कुत्तों और भारतीयों पर रोक लगाते हैं.....|
क्यूंकि कुत्ते घी और हम शांति, सत्य,सकून
और इज्ज़त हजम नहीं कर पाते हैं....||

एक आजम खां जो भारत माँ को डायन कहता है.....|
एक दिग्विजय जो हर औरत को टंच समझते हैं.....||

किसी को भी सत्ता में लाते हैं, 
बाऊ बाऊ चिलाते है....|
नहीं मोदी को नहीं लाते हैं, 
कोई और विकल्प बताते है.....||

--बलवीर कुमार
balvir.kumar@expressindia.com

समन्दर हो के भी सहरा है आँसू..............अन्सार कम्बरी



तेरी पलकों पे जो ठहरा है आँसू
समन्दर से भी वो गहरा है आँसू

कहा था घर से मत बाहर निकलना
अजी सुनता नहीं बहरा है आँसू

ख़ुशी दिल में कोई आये तो कैसे
लगाये आँख पर पहरा है आँसू

समन्दर हो के भी प्यासी हैं आँखे
समन्दर हो के भी सहरा है आँसू

अरे सुन ‘क़म्बरी’ दिल के महल पर
कोई परचम नहीं फहरा है आँसू

-अन्सार कम्बरी

Tuesday, August 20, 2013

कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं.............वज़ीर आगा


 

सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं
कहां से लाऊं वो झोंका जो मेरे पास नहीं

पिघल चुका हूँ तमाज़त में आफताब की मैं
मेरा वज़ूद भी अब मेरे आस-पास नहीं

मेरे नसीब में कब थी बरहनगी अपनी
मिली वो मुझको तम्मना की बे-लिबास नहीं

किधर से उतरे कहां आ के तुझसे मिल जाएं
अभी नदी के चलन से तू रू-शनास नहीं

खुला पड़ा है समंदर किताब की सूरत
वही पढ़े इसे आकर जो ना-शनास नहीं

लहू के साथ गई तन-बदन की सब चहकार
चुभन सबा में नहीं कली में बास नहीं

-वज़ीर आगा
जन्मः18 मई, 1922, सरगोधा, पाकिस्तान
मृत्युः जन्मः07 सितम्बर, 2010, लाहोर पाकिस्तान


तमाज़तःगर्मी
बरहनगीः नग्नता
शनासः वाकिफ़

Friday, August 16, 2013

जैसे कि प्रेम भक्ति में डूबी ..... मीरा कोई........



तेरी आरज़ू की तपिश में ऐसे पिघलती हूँ
जैसे कि इंतजार में जलती हुई शमा कोई

तेरे जिस्म से होकर ऐसे निकलती हूँ
जैसे कि दिल से गुजरी धड़कन कोई

बंद पलकों पे ख्याबों के साथ चलती हूँ
जैसे कि गुजरे हुए पलों की याद कोई

चाहत के धागे तनहाई में बुनती हूँ
जैसे कि दर्द गाती हुई बैरागन कोई

साँसों की सरगम में तेरा ही राग सुनती हूँ
जैसे कि प्रेम भक्ति में डूबी ..... मीरा कोई

तेरी बोली जानूँ .. तेरी ही भाषा सुनती हूँ
जैसे कि तेरे मोहजाल में फंसी चाह कोई

-मनीष गुप्ता

Tuesday, August 13, 2013

ऋतुयें अभिनन्दन करें, ऐसा मेरा देश.....अन्सार कम्बरी


चाँदी जैसा ताज है, सोने जैसे केश |
ऋतुयें अभिनन्दन करें, ऐसा मेरा देश ||

क्या खोकर पाया इसे, कितनी है अनमोल |
पूछो किसी शहीद से, आज़ादी का मोल ||

चंदा-सूरज से लगे, गाँधी और सुभाष |
आज़ादी का देश में, लाये नया प्रकाश ||

तब के नेता देश को, करा गये आज़ाद |
अब के नेता देश की, हिला रहे बुनियाद ||

केवल अपने देश के, नेता हुये स्वतंत्र |
जनता ही परतंत्र थी, जनता है परतंत्र ||

अंधे गद्दी पा गये, बहरे हुये महान |
हम कहते हैं खेत की, वे सुनते खलिहान ||

सावधान रहिये सदा, अब उनसे श्रीमान |
जो कोई पहने मिले, खादी का परिधान ||

इनकी टेढ़ी चाल को, नहीं सकोगे भाँप |
खादी पहने घूमते, इच्छाधारी साँप ||

मानचित्र पर लाख तुम, खींचा करो लकीर |
जिसका हिन्दुस्तान है, उसका है कश्मीर ||

चाहे बंगला देश हो, चाहे पाकिस्तान |
ये भी हिन्दुस्तान है, वो भी हिन्दुस्तान ||

नेता करें विकास का, बस्ती-बस्ती शोर |
देखा किसने ‘क़म्बरी’, वन में नाचा मोर ||

-अन्सार कम्बरी

Monday, August 12, 2013

नेह गंगा जल तुम्हारे पास है............अन्सार कम्बरी

नारी जाति के सम्मान में अन्सार भाईजान की ये ग़ज़ल
आँख का काजल तुम्हारे पास है,
पाँव की पायल तुम्हारे पास है !

माँ की ममता बाँटने के वास्ते,
प्यार का आँचल तुम्हारे पास है !

बाँध कर धागा किसी के हाथ में,
भाई का सम्बल तुम्हारे पास है !

मातृ भाषा बोलता है हर कोई,
आने वाला कल तुम्हारे पास है !

सुख में, दुख में आचमन के वास्ते,
नेह गंगा जल तुम्हारे पास है !

इस समय की, उस समय की बात क्या,
हर सदी का पल तुम्हारे पास है !

जन्म लेते वीर तेरी कोख से,
ऐसा बाहु-बल तुम्हारे पास है !

खिलखिलाते फूल ये किलकारियाँ,
ज़िन्दगी का फल तुम्हारे पास है !

-अन्सार कम्बरी

Friday, August 9, 2013

झरता जाये झर-झर.......उर्मि चक्रवर्ती


परसों से ईद पर रचनाएं तलाशते हुए मेरी नजर इस ब्लाग पर पड़ी 2012 को बाद इस ब्लाग में कोई पोस्ट नहीं है , आप भारत में नहीं रहती 
वे पर्थ, आस्ट्रेलिया में रहती हैं.आपने पांच ब्लाग बनाए हैं और लगभग 1000 ब्लाग्स फॉलो किये हैं...सादर प्रस्तुत है इनकी रचना

झरता जाये,
झरना निरंतर,
गाता सस्वर !

गीत गूंजते,
मिल नाचे उर्मियाँ,
खिले नयन !

सुन्दर शोभा,
बहे पानी निर्मल,
जगे झरना !

खूब नहाये,
है आनंद मनाये,
खिलखिलाएँ !

मधुर गीत,
झरने के संग में,
गाये पंछी !

निहारूँ इसे,
ये बच्चों-सा उछले,
अपूर्व दृश्य !

उमंग भरा,
परिवार लगता,
सदा अनूठा !

-उर्मि चक्रवर्ती
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.in/

Thursday, August 8, 2013

जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी.........नज़ीर अकबराबादी


है आबिदों को त‘अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को जुहाद की तमहीद की ख़ुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
आबिद=उपासक; त‘अत=उपासना; तजरीद=एकान्त;
ज़ाहिद=धर्मोपदेशक; जुहद की तमहीद=धार्मिक बात का आरम्भ


ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है
शीर-ओ-शकर सिवईयाँ पकाने की धूम है
पीर-ओ-जवान को नेम‘तें खाने की धूम है
लड़कों को ईद-गाह के जाने की धूम है
पीर=बूढ़े; नेम‘तें=पकवान

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

कोई तो मस्त फिरता है जाम-ए-शराब से
कोई पुकारता है कि छूटे अज़ाब से

कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाब से
चटकारें जी में भरते हैं नान-ओ-कबाब से
अज़ाब=पीड़ा,कठिनाई; कल्ला=गाल

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

क्या है मुआन्क़े की मची है उलट पलट
मिलते हैं दौड़ दौड़ के बाहम झपट झपट
फिरते हैं दिल-बरों के भी गलियों में गट के गट
आशिक मज़े उड़ाते हैं हर दम लिपट लिपट
मुआनिक़=आलिंगन; गट=भीड़

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

\काजल हिना ग़ज़ब मसी-ओ-पान की धड़ी
पिशवाज़ें सुर्ख़ सौसनी लाही की फुलझड़ी
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी
कह “ईद ईद” लूटें हैं दिल को घड़ी घड़ी
पिशवाज़=घाघरा

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

रोज़े की ख़ुश्कियों से जो हैं ज़र्द ज़र्द गाल
ख़ुश हो गये वो देखते ही ईद का हिलाल
पोशाकें तन में ज़र्द, सुनहरी सफेद लाल
दिल क्या कि हँस रहा है पड़ा तन का बाल बाल
रोज़ा=उपवास; हिलाल=ईद का चाँद

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जो जो कि उन के हुस्न की रखते हैं दिल से चाह
जाते हैं उन के साथ ता बा-ईद-गाह
तोपों के शोर और दोगानों की रस्म-ओ-राह
मयाने, खिलोने, सैर, मज़े, ऐश, वाह-वाह

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

रोज़ों की सख़्तियों में न होते अगर अमीर
तो ऐसी ईद की न ख़ुशी होती दिल-पज़ीर
सब शाद हैं गदा से लगा शाह ता वज़ीर
देखा जो हम ने ख़ूब तो सच है मियां ‘नज़ीर‘
दिल-पज़ीर=दिल पर समायी हुई; गदा=गरीब

ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

--नज़ीर अकबराबादी

सौजन्यः साहित्य कुंज 

सौग़ात है यही मेरी सब को बराए ईद.......दानिश भारती



घर-घर को कर रही है मुअत्तर हवा ए ईद
सूझे न आज और तो कुछ भी सिवाए ईद

खुशहाल ज़िन्दगी हो, मुबारक हो हर घड़ी
सौग़ात है यही मेरी सब को बराए ईद

खुशियाँ बढें जहान में, रौशन हो क़ायनात
बेशक, यही रही है हमेशा नवा-ए ईद

अम्नो अमान, जज्बा ए इंसानियत, ख़ुलूस ,
इन सब का तर्जुमा है, यक़ीनन, सना ए ईद

- दानिश भारती

Wednesday, August 7, 2013

कुछ हाईकू.................सदा



 एक मिठास
मन की मन से है
जश्‍न ईद का
............
ईदी ईद की
संग आशीषों के ये
जो नवाजती
...
चाँद ईद का
नज़र जब आये
ईद हो जाए
..
पाक़ीजा रस्‍म
निभाओ गले मिल
ईद  के दिन
.....
नेकअमल
रोज़ेदार के लिए
जश्‍न ईद का
..........

दुआ के संग
जब भी ईदी मिले
चेहरा खिले

-सदा

ख़त्म सारे फ़साने हुए..........दानिश भारती



शौक़ दिल के पुराने हुए
हम भी गुज़रे ज़माने हुए

बात, आई-गई हो गई
ख़त्म सारे फ़साने हुए

आपसी वो कसक अब कहाँ
बस बहाने , बहाने हुए

दूरियाँ और मजबूरियाँ
उम्र-भर के ख़ज़ाने हुए

आँख ज्यों डबडबाई मेरी
सारे मंज़र सुहाने हुए

याद ने भी किनारा किया
ज़ख्म भी अब पुराने हुए

दिल में है जो, वो लब पर नहीं
दोस्त सारे सयाने हुए

भूल पाना तो मुमकिन न था
शाइरी के बहाने हुए

ख़ैर , 'दानिश' तुम्हे क्या हुआ
क्यूँ अलग अब ठिकाने हुए

--दानिश भारती


Tuesday, August 6, 2013

टूटी कश्ती भी पार लगती है...........दानिश भारती

 

जो तेरे साथ-साथ चलती है
वो हवा, रुख़ बदल भी सकती है


क्या ख़बर, ये पहेली हस्ती की
कब उलझती है, कब सुलझती है


वक़्त, औ` उसकी तेज़-रफ़्तारी
रेत मुट्ठी से ज्यों फिसलती है


मुस्कुराता है घर का हर कोना
धूप आँगन में जब उतरती है


ज़िन्दगी में है बस यही ख़ूबी
ज़िन्दगी-भर ही साथ चलती है


ज़िक्र कोई, कहीं चले , लेकिन
बात तुम पर ही आ के रूकती है


ग़म, उदासी, घुटन, परेशानी
मेरी इन सबसे खूब जमती है


अश्क लफ़्ज़ों में जब भी ढलते हैं
ज़िन्दगी की ग़ज़ल सँवरती है


नाख़ुदा, ख़ुद हो जब ख़ुदा 'दानिश'
टूटी कश्ती भी पार लगती है

-दानिश भारती

Sunday, August 4, 2013

धूप का साथ गया..........वज़ीर आगा



धूप का साथ गया, साथ निभाने वाला
अब कहां आएगा वो, लौट के आने वाला

रेत पर छोड़ गया, नक्श हजारों अपने
किसा पागल की तरह, नक़्श मिटाने वाला

सब्ज शाखें कभी, ऐसे तो नहीं चीखती हैं
कौन आया है, परिंदो को डराने वाला

आरिज-ए-शाम का सुख़ी ने, फ़ाश उसे
पर्दा-ए-अब्र में था, आग लगाने वाला

सफर-ए-सब्र का तक़ाजा है, मेरे साथ रहो
दश्त पुर-हौल है, तूफ़ान है आने वाला

मुझको दर-पर्दा सुनाता रहा, किस्सा अपना
अगले वक़्तों का, हिकायत सुनाने वाला

शबनमी घास, घने फूल, लरजती किरणे
कौन आया है, ख़ज़ानों को लुटाने वाला

अब तो आराम करें, सोचती आंखे मेरी
रात का आखिरी तारा है, जानेवाला

-वज़ीर आगा
जन्मः18 मई, 1922, सरगोधा, पाकिस्तान
मृत्युः जन्मः07 सितम्बर, 2010, लाहोर पाकिस्तान
............................................
शब्दार्थ
सब्जः हरी
आरिज-ए-शामः शाम के गाल
पर्दा-ए-अब्रः बादल के परदे


आज दैनिक भास्कर के रसरंग अंक में छपी रचना

राह देखा करेगा सदियों तक............मीना कुमारी



चांद तन्‍हा है आसमां तन्‍हा
दिल मिला है कहां कहां तन्‍हा

बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआँ तन्हा

जिंदगी क्‍या इसी को कहते हैं
जिस्‍म तन्‍हा है और जहां तन्‍हां

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्‍हा तन्‍हा

जलती बुझती सी रोशनी के परे
सिमटा सिमटा सा इक मकां तन्‍हां

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्‍हा

-मीना कुमारी 

सुनिये ये ग़ज़ल उन्हीं का आवाज में..



मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है
हुकूमत के इशारे पे तो मुर्दा बोल सकता है

यहाँ पर नफ़रतों ने कैसे कैसे गुल खिलाये हैं
लुटी अस्मत बता देगी दुपट्टा बोल सकता है

हुकूमत की तवज्जो चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है

कई चेहरे अभी तक मुँहज़बानी याद हैं इसको
कहीं तुम पूछ मत लेना ये गूंगा बोल सकता है

बहुत सी कुर्सियाँ इस मुल्क में लाशों पे रखी हैं
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है

सियासत की कसौटी पर परखिये मत वफ़ादारी
किसी दिन इंतक़ामन मेरा गुस्सा बोल सकता है

-मुनव्वर राना


श़ायर ज़नाब मुनव्वर राना
उर्दू साहित्य की दुनिया में मुनव्वर राणा एक आधार स्तम्भ हैं  
उनकी नज्मों व ग़ज़लो को लोगों ने हाँथो-हाँथ लिया
श्री राणा ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्म लिया एवं
उन्होंनें अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा कोलकाता में गुजारा

Saturday, August 3, 2013

आदमी, यूँ सोचता कुछ और है..............दानिश भारती



चार:गर का फैसला कुछ और है
दर्द की मेरे दवा , कुछ और है

आदमी, यूँ सोचता कुछ और है
वक़्त की लेकिन रज़ा कुछ और है

थी कभी शर्मो-हया सबको अज़ीज़
अब ज़माने की हवा, कुछ और है

साँस लेना ही फ़क़त, जीना नहीं
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कुछ और है


होती होंगीं, पुर-सुकूँ, आसानियाँ
इम्तेहानों का नशा, कुछ और है

है बहुत मुश्किल भुला देना उसे
लेकिन उसका सोचना कुछ और है

है तक़ाज़ा, सच को सच कह दूँ, मगर
मशविरा हालात का कुछ और है

लफ़्ज़ तू, हर लफ़्ज़ का मानी भी तू
क्या सुख़न इसके सिवा कुछ और है?

जो बशर मालिक की लौ से जुड़ गया
"दानिश" उसका मर्तबा कुछ और है

--दानिश भारती





----------------------------------------------------
चार:गर(चारागर)=ईलाज करने वाला 
रज़ा=मर्ज़ी          
पुर-सुकूँ=चैन देने वाली
मशविरा=राए/ज़रूरत
सुख़न=काव्य       
मर्तबा=रुतबा       

Friday, August 2, 2013

हम तुमको पहचान गये............दिनेश पारीक "मेरा मन"


नजर मिलते ही ,हमारे ईमान गये
ऐ मोहब्बत ! हम तुमको पहचान गये

तुमको पाने, बेताब है हर शख्स यहाँ
कितने ही होकर यहाँ से परेशान गये

तेरा कहना कि समंदर, एक बूँद
पानी में है बंद, हम मान गये

देखकर तस्वीर तुम्हारी ,हमारे 
दिल में देखने वाले सभी हैरान गये

ऐसे ही नहीं, तुम्हारी हसरतों के 
काफ़िले से लुटकर सभी मेहमान गये

-दिनेश पारीक "मेरा मन"

http://facebook.com/dineshsgccpl

इक तेरी ज़ात है.............मेगी आसनानी


रात तो रात है
कैसे ज़ज़्बात है

वो मिले है कहाँ ?
बस मुलाकात है

ज़िन्दगी, प्यार, तुम
सब खयालात है

दिन को छेड़ो ना वो
रात की बात है

ये जहाँ, वो जहाँ
इक तेरी ज़ात है

-मेगी आसनानी

Thursday, August 1, 2013

जर्रे-जर्रे में तुम...............शेफाली गुप्ता


हर कामयाबी अपने मायने
खो देती है
जब जेहन में तुम्हारा
नाम आता है!

हर रास्ता अपनी मंजिल
छोड़ देता है
जब दूर क्षितिज पर तुम
खड़े मिलते हो!

हर फूल अपनी रंगत पर
इठलाना भूल उठता है
जब तुम्हारे चेहरे का
नूर सूरज चमका देता है।

ऐसा नहीं
कामयाबी की मुझे चाह नहीं
या मंजिलों की तलाश नहीं
फूलों से भी कोई बैर नहीं मेरा
मैंने तो बस
अपना हर कतरा तुम्हारे 'होने'
पर वार दिया है
तुम नहीं तो कुछ भी और नहीं

-- शेफाली गुप्ता