Sunday, June 30, 2019

वो सृष्टि का कर्ता है सृष्टि का कारण .....अजय अमिताभ 'सुमन'

ख़ुदा की दवा  को जफ़ा मानते हो,
है उसकी अता ये ना पहचानते  हो।

ये उसकी नहीं  बन्दे  तेरी ख़ता है,
ख़फ़ा है अकारण तुझे क्या पता है।

सज़ा है ये तेरी या तुझ पे भरोसा,
जाने ये कैसे क्या है तू ख़ुदा सा?

क्या जाने ख़ुदा  की नई सी  दुआ है,
तू नाहक़ समझता ग़लत सा हुआ है।

जब न रहेगा इस जग में अँधेरा,
जाने जग कैसे सूरज का बसेरा।

जब प्यूपा रगड़ता है ख़ुद के बदन को,
तभी जाके पाता है, पूर्ण अपने तन को।

जो हल को न राज़ी, आकांक्षी है छाया,
उन्हें तो बस मिलती है कोमल ही काया।

गर तुझको मोहब्बत है ख़ुद के ख़ुदा से,
तो लानत फिर कैसी शिकायत ख़ुदा से?

है ठीक औ ग़लत क्या ये सब जानते हैं,
बामुश्क़िल ही पर  उसको पहचानते हैं।

वो सृष्टि का कर्ता है सृष्टि का कारण,
करे कोई कैसे  भी उसका निर्धारण?
-अजय अमिताभ 'सुमन'

Saturday, June 29, 2019

सुनो ज़िंदगी ....निधि सक्सेना

नहीं ज़िंदगी
यूँ नग्न न चली आया करो 
कुरूप लगती हो 
बेहतर है कि कुछ लिबास पहन लो
कि जब शिशुओं के पास जाओ
तो तंदुरुस्ती का लिबास ओढ़ो..

जब बेटियों के पास जाओ
तो यूँ तो ओढ़ सकती हो गुलाबी पुष्पगुच्छ से सजी चुनरी
या इंद्रधनुषी रंगों से सिली क़ुर्ती
परंतु सुनो 
तुम सुरक्षा का लिबास ओढ़ना..

जो गर इत्तफ़ाक़न किसी स्त्री के पास पहुँचो
तो पहन कर जाना प्रेम बुना झालरदार सम्मान ..

जब बेटों के पास जाओ
तो समझ कर लिबास पहनना 
मत पहनना उन्माद आक्रोश
पहनना ज़िम्मेदारी वाली उम्मीद ..

पुरुषों के पास संवेदनाओं से भरा पैरहन पहन कर जाना
जिसमें ईमानदारी के बटन लगे हो ..

सुनो ज़िंदगी
किसी आँख में आँसू का आवरण मत बनना 
हाथों में मत उतरना गिड़गिड़ाहट बन कर ..

कि सुनो 
शिशु की किलकारी
बालकों की खिलखिलाहट 
बारिश का पानी
गीतों की सरगम 
घर पहुँचने की ठेलमठेल 
ये सब ख़ूबसूरत है
इन्हें पहन कर किसी का भी दरवाज़ा खटखटाओ..
फिर सुनो फुसफुसाहट वाली हँसी..
-निधि सक्सेना

Friday, June 28, 2019

असहिष्णु बादल.....लक्ष्मीनारायण गुप्ता

अषाढ़, सावन भादों निकले
रिमझिम बरसे बादल।
अपना नाम लिखाती वर्षा
निकली झलका छागल।
हिनहिनाते घोड़े जैसे, बादल निकल गये।

जाने कब से बैर बाँचते
राजनीति के पिट्ठू।
खोज रहे थे अवसर बैठे
वाज दौड़ के टट्टू।
देख बिगड़ता मौसम घोड़े, तिल से ताड़ हुए।

गत वर्षों के चलते चलते
घटित हुआ कुछ ऐसा।
अर्ध सत्य वे लिखकर गाकर
पाये आदर पैसा।
दाता का जब हुआ इशारा, वे  बलिदान किये।

मानवता की परख पखरते
अर्ध सत्य उद्घोषक।
सहिष्णुत को गाली देकर
पक्के बने विदूषक।
जिनसे थी अपेक्षित समता, वे विग्रह दूत हुए।
-लक्ष्मीनारायण गुप्ता

Thursday, June 27, 2019

जो होता है वो सोचा तो नहीं है.....कंचनप्रिया त्रिवेदी

जो दिखता है वो होता तो नहीं है
जो होता है वो सोचा तो नहीं है

चमकती दूर की हर चीज अक्सर
दिखे सोना वो सोना तो नहीं है

हमेशा मुस्कुराता देखा जिसको
वही छुप-छुप के रोता तो नहीं है

मुहब्बत से बने इक आशियाँ में
कोई तन्हा भी खोया तो नहीं है

नज़र बोतते हैं बात दिल की
ज़ुबां अबतक ये खोला तो नहीं है

हमारा दूर का क्या उससे नाता
करीबी उसने बोला तो नहीं है

हमारे साथ जगने की तमन्ना
ले अबतक चाँद सोया तो नहीं है

Wednesday, June 26, 2019

कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी.....दिगंबर नासवा

पत्थर मिलेंगे टूटे, तन्हाइयां मिलेंगी
मासूम खंडहरों में, परछाइयां मिलेंगी

इंसान की गली से, इंसानियत नदारद
मासूम अधखिली से, अमराइयां मिलेंगी

कुछ चूड़ियों की किरचें, कुछ आंसुओं के धब्बे
जालों से कुछ लटकती, रुस्वाइयां मिलेंगी

बाज़ार में हैं मिलते, ताली बजाने वाले
पैसे नहीं जो फैंके, जम्हाइयां मिलेंगी

पहले कहा था अपना, ईमान मत जगाना
इंसानियत के बदले, कठिनाइयां मिलेंगी

बातों के वो धनी हैं, बातों में उनकी तुमको
आकाश से भी ऊंची, ऊंचाइयां मिलेंगी

हर घर के आईने में, बस झूठ ही मिलेगा
कचरे के डस्टबिन में, सच्चाइयां मिलेंगी !!


लेखक परिचय -  दिगंबर नासवा

Tuesday, June 25, 2019

समझौतों की कोई जु़बान नहीं होती...सीमा सिंघल सदा


तल्‍लीन चेहरों का सच 
कभी पढ़कर देखना 
कितने ही घुमावदार रास्‍तों पर 
होता हुआ यह 
सरपट दौड़ता है मन 
हैरान रह जाती हूँ कई बार 
इस रफ्त़ार से
 .... 

अच्‍छा लगता है शांत दिखना 
पर कितना मुश्किल होता है 
भीतर से शांत होना 
उतनी ही उथल-पुथल 
उतनी ही भागमभाग 
जितनी हम 
किसी व्‍यस्‍त ट्रैफि़क के 
बीच खुद को खड़ा पाते हैं . 
समझौतों की कोई जु़बान नहीं होती 
फिर भी वे हल कर लेते 
हर मुश्किल को !!!
लेखक परिचय - सीमा सिंघल सदा 

Monday, June 24, 2019

मुहब्बत का श्री गणेश.....नवीन मणि त्रिपाठी

2122 2122 212

हुस्न का बेहतर नज़ारा चाहिए ।
कुछ तो जीने का सहारा चाहिए ।।

हो मुहब्बत का यहां पर श्री गणेश ।
आप का बस इक इशारा चाहिए ।।

हैं टिके रिश्ते सभी दौलत पे जब ।
आपको भी क्या गुजारा चाहिए ।।

है किसी तूफ़ान की आहट यहां ।
कश्तियों को अब किनारा चाहिए ।।

चाँद कायम रह सके जलवा तेरा ।
आसमा में हर सितारा चाहिए ।।

फर्ज उनका है तुम्हें वो काम दें ।
वोट जिनको भी तुम्हारा चाहिए ।।

अब न लॉलीपॉप की चर्चा करें ।
सिर्फ हमको हक़ हमारा चाहिए ।।

कब तलक लुटता रहे इंसान यह ।
अब तरक्की वाली धारा चाहिए ।।

जात मजहब।से जरा ऊपर उठो ।
हर जुबाँ पर ये ही नारा चाहिए ।।

अम्न को घर में जला देगा कोई ।
नफरतों का इक शरारा चाहिए ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
शब्दार्थ - शरारा - चिंगारी 


Sunday, June 23, 2019

पास बैठो तुम...रश्मि शर्मा


आओ न

पास बैठो तुम
तुम्‍हारे मौन में
मैं वो शब्‍द सुनूंगी
जो जुबां कहती नहीं
दि‍ल कहता है तुम्‍हारा....

आओ न

फि‍र कभी मेरे इंतजार में
तुम तन्‍हा उदास बैठो
और दूर खड़ी होकर
मैं तुम्‍हारी बेचैनी देखूंगी...

आओ न...

मि‍ल जाओ कभी
राहों में बाहें फैलाए
मैं नि‍कल जाऊँगी कतराकर मगर
खुद को उनमें समाया देखूंगी......

आओ न...

फि‍र से अजनबी बनकर
मेरा रास्‍ता रोको..मुझसे बात करो
मुझे लेकर दूर कहीं नि‍कल जाओ
वादा है मेरा, झपकने न दूंगी पलकें
बस, तुममें ही डूबकर जिंदगी बसर करूंगी......।

Saturday, June 22, 2019

ज़िंदगी और मौत ....इन्द्रा

मौत ने पूछा
ज़िंदगी एक छलावा है
एक झूठ है
हर दिन हर पल तुम्हारा साथ छोड़ती जाती है
फिर भी तुम उसे प्यार करते हो
मैं एक सच्चाई हूँ अंत तक तुम्हारा साथ निभाती हूँ
पर फिर भी तुम मुझसे नफरत करते हो
मुझसे डरते हो
मुझसे समझौता कर लो
फिर कोई डर तुम्हें डरा न पायेगा
मैंने कहा
तुम सत्य हो शाश्वत हो
अनिवार्य हो
पर तुमसे कैसे समझौता करलूं
तुम्हारी टाइमिंग बहुत गलत होती है
तुम गलत समय पर गलत लोगों को ले जाती हो
तुम गलत समय पर गलत तरीके से आती हो
पूछो उन बदनसीब अभिवावकों से
जिन्होंने खोय अपने लाल असमय
पूछो उन से ,
जिन्होंने ने गवाए अपने परिजन
आतंकवादियों के हाथों
उम्र थी जान गवाने की
फिर जो मजबूर, पीड़ित , बीमार
मरने की प्रार्थना करते हैं
उन्हें तुम तड़पने को छोड़ देती हो
बच्चों ,जवानों को अपना शिकार बनाती हो
कैसे करलूं तुमसे समझौता
तुम कड़वा सच हो, अनिवार्य हो पर
न्यायसंगत नहीं
काम से काम मेरी नज़र में तो नहीं
ज़िन्दगी लाख छलावा सही
मीठा झूठ सही
पर सुन्दर है जीने का,
लड़ने का हौसला देती है

-इन्द्रा


Friday, June 21, 2019

ज़माने का चलन .....डॉ. ऋचा सत्यार्थी

हर दिशा में लम्हा-लम्हा बो गया है
कह के हमसे अलविदा वह जो गया है

कर लिए सूरज से समझौते घटा ने
उजली सुबह का वादा सो गया है

इस शहर में ख़ुशनुमा है आज मौसम
यह समां रंगीन, लेकिन, खो गया है

था किनारे का हंसी मंज़र छलावा
गम के सागर में डुबो हमको गया है

दुश्मनों से प्यार, नफ़रत दोस्तों से
यह ज़माने का चलन हो गया है

-डॉ. ऋचा सत्यार्थी

Thursday, June 20, 2019

कुछ शेर हवाओं के नाम …मंजू मिश्रा

हवाओं की..  कोई सरहद नहीं होती
ये तो सबकी हैं बेलौस बहा करती हैं
**
हवाएँ हैं, ये कब किसी से डरती हैं
जहाँ भी चाहें बेख़ौफ़ चला करती हैं
**
चाहो तो कोशिश कर के देख लो मगर
बड़ी ज़िद्दी हैं कहाँ किसी की सुनती हैं
**
हवाएँ न हों तो क़ायनात चल नहीं सकती 
इन्ही की इनायत है कि जिंदगी धड़कती है 
- मंजू मिश्रा
बेलौस - निस्वार्थ, बिना किसी भेदभाव के

Wednesday, June 19, 2019

जीवन बड़ा रचनाकार है ....राहुलदेव गौतम

जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।
असत्य के शब्दों से,
सत्य का अर्थ रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

जो कभी शाश्वत हुआ न हो,
ऐसे कल्पनाओं का भरमार रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

जो बिखरा हुआ है,
ख़ुद ज़िम्मेदारियों के शृंखला में,
वो टूटे हुए सपनों का हार रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

फँस जाते है स्वयं इसमें,
लक्ष्यों का अरमान,
ऐसे जालों का जंजाल रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

ख़ुद में खो जाता है,
ख़ुद में पा जाता है,
ऐसे इच्छाओं का संसार रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

जिससे मतलब की बात निकले,
जितना जिससे परिहास निकले,
ऐसे शख़्सों का अम्बार रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

पल में रूप,
पल स्वरूप,
ऐसे सच-झूठ का नक़ाब बुनता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।

जितना घावों में ठीक लगे,
उतना ही गुनगुना लेता है,
ऐसे ही नग़मों की आवाज़ रचता है।
जीवन क्षण-क्षण,
स्वांग रचता है।
-राहुलदेव गौतम

Tuesday, June 18, 2019

क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम .....हरिपाल सिंह रावत

उकेर लूँ, काग़ज़ पर,
जो तू आए, 
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।
बस...
क़लम, काग़ज़, स्याही...
और तुम,
मैं बह जाऊँ... भावों में, 
अहा!
जो तू‌ आये...

भाव... 
रचना की आत्मा से मिल,
बुन आयें, पश्मीनी... 
ख़्वाबों का स्वेटर,
ओढ़ता फिरूँ जिसे, 
दर्द की सर्द सहर में,
जो दे जाए सर्द में गरमाहट... 
दर्द में राहत, 
अहा!

क़लम, काग़ज़, स्याही और तुम

जो तू आए, 
ख़्वाबों में ए ख़्याल ।
-हरिपाल सिंह रावत

Monday, June 17, 2019

इंसानियत का आत्मकथ्य .........अनुपमा पाठक

गुज़रती रही सदियाँ
बीतते रहे पल
आए
कितने ही दलदल
पर झेल सब कुछ
अब तक अड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !

अट्टालिकाएँ करें अट्टहास
गर्वित उनका हर उच्छ्वास
अनजान इस बात से कि
नींव बन पड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !

देख नहीं पाते तुम
दामन छुड़ा हो जाते हो गुम
पर मैं कैसे बिसार दूँ
इंसानियत की कड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !

जब-जब हारा तुम्हारा विवेक
आए राह में रोड़े अनेक
तब-तब कोमल एहसास बन
परिस्थितियों से लड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !

भूलते हो जब राह तुम
घेर लेते हैं जब सारे अवगुण
तब जो चोट कर होश में लाती है
वो मार्गदर्शिका छड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !

मैं नहीं खोई, खोया है तुमने वजूद
इंसान बनो इंसानियत हो तुममें मौज़ूद
फिर धरा पर ही स्वर्ग होगा
प्रभु-प्रदत्त नेमतों में, सबसे बड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !
-अनुपमा पाठक
जमशेदपुर, झारखण्ड

Sunday, June 16, 2019

ये घट छलकता ही रहेगा ......निधि सक्सेना

मेरी ही करुणा पर
टिकी है ये सृष्टि ..
मेरे ही स्नेह से 
उन्मुक्त होते हैं नक्षत्र..
मेरे ही प्रेम से
आनंद प्रस्फुटित होता है ..
मेरे ही सौंदर्य पर 
डोलता है लालित्य ..
और मेरे ही विनय पर 
टिका है दंभ..

कि प्रेम स्नेह और करुणा का अक्षय पात्र हूँ मैं 
जितना उलीच लो 
ये घट छलकता ही रहेगा ..
-निधि सक्सेना

Saturday, June 15, 2019

घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में - यशु जान

पढ़ने में मज़ा तो है आता इन छाओं में, 
घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में 

पहली अशुद्धि सच लिखना, 
है दूसरी इनका ना बिकना, 
चोर ना छिप सकता है इनके गांव में, 
घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में 

तीसरी अशुद्धि चुभते शब्द, 
इनमें सब कुछ है उपलब्ध, 
जो होना चाहिए देश के इन युवाओं में, 
घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में 

और पांचवीं इनमें देश-भक्ति, 
छटी तेरे गुरुदेव की शक्ति, 
छिपा बहुत कुछ है इनकी अदाओं में, 
घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में 

सातवीं इनका जोश दिखाना, 
आठवीं सच पर मर मिट जाना, 
यशु जान तू मरेगा सब खताओं में, 
घनघोर अशुद्धियां हैं तेरी कविताओं में, 
पढ़ने में मज़ा तो है आता इन छाओं में - 
-यशु जान
यशु जान एक पंजाबी कवि और लेखक हैं। वे जालंधर शहर के रहने वाले हैं। उन्हें बचपन से ही कला से प्यार है। आप गीत, कविता और ग़ज़ल विधा में लिखते है | आपकी एक पुस्तक 'उत्तम ग़ज़लें और कविताएं' नाम से प्रकाशित हो चुकी है | फिलहाल आप जे. आर. डी. एम. कंपनी में बतौर स्टेट हैड बतौर काम कर रहे हैं |

Friday, June 14, 2019

सिखाया गया बहना धीरे धीरे ....निधि सक्सेना

बचपन से ही मुझे पढ़ाये गए थे संस्कार
याद कराई गईं मर्यादाएँ
हदों की पहचान कराई गई 
सिखाया गया बहना
धीरे धीरे 
अपने किनारों के बीच
तटों को बचाते हुए..
मन की लहरों को संयमित रख कर 
दायित्व ओढ़ कर बहना था 
आवेग की अनुमति न थी मुझे
अधीर न होना था 
हर हाल शांत रहना था ..

उमड़ना घुमड़ना नहीं था 
धाराएँ नहीं बदलनी थीं 
हर मौसम ख़ुद को संयमित रखना
मुझसे किनारे नहीं टूटने थे
मुझसे भूखंड नहीं टूटने थे 
मुझसे भूतल नहीं टूटने थे

कि मैं तो टूट कर प्रेम भी न कर पाई..
-निधि सक्सेना

Thursday, June 13, 2019

गूंजती है आवाज कानों में मेरी.... पूनम सिन्हा


रद़ीफ - है मुझे
क़ाफ़िया - ता(आ)

बड़ी सिद्दत से कोई चाहता है मुझे,
मुझसे भी अधिक वो जानता है मुझे।

गूंजती है आवाज कानों में मेरी,
दूर पहाड़ों से कोई पुकारता है मुझे।

मंदिरों में भी घंटे बजाता है हरदम,
जाके रब से सदा माँगता है मुझे।

खुली खिड़कियां जो कभी मेरे घर की,
छुप के पेड़ों से फिर झांकता है मुझे।

प्यार करता हूँ मैं सदियों से तुझे,
अपनी हरकतों से ये जताता है मुझे।

बड़ा मजबूर हूँ मैं, गमों से चूर हूँ मैं,
बहते हुए अश्कों से ये बताता है मुझे।

तड़प उठती हूँ मैं जब भी देखूँ उसे,
क्या है रिश्ता उससे जो सताता है मुझे।

स्वरचित,
-पूनम सिन्हा,
धनबाद,झारखंड।

Wednesday, June 12, 2019

क़रार मर के मिलेगा तो मर के देखते हैं.......हुमैरा राहत

मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं 
क़रार मर के मिलेगा तो मर के देखते हैं 

सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते 
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं 

किसी की आँख में ढल जाता है हमारा अक्स 
जब आईने में कभी बन सँवर के देखते हैं 

हमारे इश्क़ की मीरास है बस एक ही ख़्वाब 
तो आओ हम उसे ताबीर कर के देखते हैं 

सिवाए खाक के कुछ भी नज़र नहीं आता 
ज़मीं पे जब भी सितारे उतर के देखते हैं 

यह हुक्म है कि ज़मीन-ए-'फ़राज़' मैं लिखें 
सो इस मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं 
-हुमैरा राहत